विश्व जनसंख्या दिवस 2019
विश्व जनसंख्या दिवस 2019

आज 11 जुलाई है यानि विश्व जनसंख्या दिवस 2019. आज से ठीक 30 साल पहले 11 जुलाई 1989 को जनसंख्या को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाने की शुरुआत हुई। ताकि निकट भविष्य में दुनिया को अप्रत्यासित जनसंख्या बिस्फ़ोट से बचाया जा सके। लेकिन जैसे जैसे समय गुजरता गया ये समस्या और भी विकराल रूप धारण करती गयी। ख़ास तौर से  हिंदुस्तान की आबादी जिस प्रकार से बढ़ रही है। ये हम सब के लिए एक बहुत ही चिंता का विषय है। अगर हालत ऐसे हे चलते रहे तो भारत बहुत जड़ ही विश्व में जनसंख्या के मामले में पहले स्थान पर पहुँच जायेगा। जो इंडिया के लिए गर्व की बात नहीं। हमारे देश की जनसंख्या इतनी बढ़ गई और आदमी के लिए ज़मीन इतनी कम हो गई है। आंकड़े समझने के लिए आपको जोड़ बाकि गुणा भाग के अलावा गणित के कई सारे समीकरण लगाने पड़ेंगे।

उसके बावजूद भी हो सकता है, आप अपने लिए 25 या 30 गज के प्लॉट के लिए भी जगह ना निकाल पाए। आप मेरी प्लॉट वाली बात से काफ़ी कुछ इत्तेफ़ाक़ रख सकते हैं।

कैसे हम हिंदुस्तानी एक (100000)लाख से सवा सौ करोड़ (133.92 Crores – 2017) हो गए

इतिहास में कॉलिन पीटर मैकएवडी नाम के एक व्यक्ति हुए। जो हिस्टोरियन भी थे और डेमोग्राफर भी। डेमोग्राफी यानि आबादी से जुड़े आंकड़ों की अध्ययन। उनके अनुसार आज से 12 हज़ार साल पहले भारत की आबादी रही होगी एक लाख। जिसे 10 लाख होने में लगे 6 हज़ार साल। अगर हम मान लें कि आबादी इसी रफ़्तार से बढ़ी होगी तो 10 लाख को 1 करोड़ होने में लगे होंगे लगभग ढाई हज़ार साल। एक करोड़ को 10 करोड़ होने में लगभग तीन हज़ार साल लग गए। लेकिन इस 10 करोड़ को 100 करोड़ होने में सिर्फ 500 साल ही लगे। यानि हमारे देश की जनसंख्या तब तेज़ी से बढ़ी जब हिंदुस्तान में अंग्रेज़ आए। अंग्रेज़ आए तो अपने साथ एंटीबायोटिक्स जैसी अंग्रेज़ी दवाएं लाए। इससे बीमारी से होने वाली मौतें बहुत कम हो गईं। लेकिन पैदावार उतनी ही रही।

बच्चों को भगवान का प्रसाद मानकर पैदा करने वालों की संख्या तो नहीं है। आबादी बढ़ने का सबसे मुख्य कारण है, लोग पैदा हुए ज़्यादा और मरे कम।

15 अगस्त को जैसे हम बच्चे पैदा करने के लिए ही आज़ाद हुए थे

आज़ादी के समय हिंदुस्तान में 30 करोड़ लोग थे। आज़ादी के बाद तो हम और तेज़ी से बढ़े। इस तेज़ी ने 1952 में सरकार का ध्यान खींचा। सरकार लगा 36 करोड़ लोग हो चुके हैं अब काफ़ी है। इससे अधिक हुए तो खाने को खाना नहीं होगा, पहनने के लिए कपड़ा नहीं होगा। और तीन गुना लगान तो हम अंग्रज़ों को पहले ही दे चुके हैं। अगर देश को आगे बढ़ना है तो आबादी पर नियंत्रण रखना होगा। 60 के दशक में सरकार ने लोगों से अपील करनी शुरू की…

बच्चे दो या तीन ही अच्छे

लेकिन लोगों ने सरकार की बात को गंभीरता से नहीं लिया और 1971 आते आते हम लोग हो गए 566224800. तो सरकार ने अपील की कि अब दो के बाद पूर्ण विराम लगाओ और कहा…

हम दो, हमारे दो

लेकिन जनता है की समझ ही नहीं रही थी। लोगों को तो मज़ा लेने में मज़ा आ रहा था। तो फिर संजय गांधी के राज में आपातकाल के दौरान लोगों को घर से उठा-उठाकर नसबंदी करा दी गई। जिसका खूब विरोध हुआ।

किसी सरकार ने प्रयास किये तो नतीजा क्या रहा?

आपातकाल के बाद भले ही इंदिरा गांधी की सरकार गिर गयी। लेकिन लोगों बच्चे पैदा करने की हिम्मत नहीं गिरी। फिर किसी राजनैतिक पार्टी ने ऐसा कारनामा करने की जुर्रत नहीं की। फिर वही हुआ जो होना चाहिये था। खाना, कपडा, रोज़गार, ज़मीन, साधन संसाधन सब कम पड़ने लगे। नौकरी तो सपनों से ऐसे गायब होने लगी जैसे गधे के सिर से सींग। उस समय चीन में ठीक ऐसे हे हालत थे। लेकिन वहां की सरकार ने ऐसे नियम बना दिए गए कि लोगों के लिए 1 से ज़्यादा बच्चा करना असंभव सा हो गया। मगर भारत परिवार नियोजन के नाम सिनेमाघरों में फिल्म से पहले परिवार नियोजन के विज्ञापन दिखाने और कॉन्डोम तथा गर्भनिरोधक गोलियां बांटने से आगे बढ़ ही नहीं पाया।

नतीजा ये रहा की भारत में जन्म दर तो कम हुई, पर नियंत्रित नहीं। 50 साल पहले हिंदुस्तान में हर औरत औसतन पांच से ज़्यादा बच्चे पैदा करती थी। आज ये आंकड़ा 2.4 है। लेकिन इस सफलता के बावजूद विश्व जनसंख्या दिवस 2019 तक हम 134 करोड़ हो गए। वैसे तो हम विश्व  में दूसरे नंबर पर हैं और चीन पहले पर। लेकिन हम ये भूल रहे हैं कि चीन के पास हमसे तीन गुना ज़्यादा जगह और चार गुना पैसा। इसीलिए आज चीन बच्चे तो पैदा कर ही रहा है साथ ही बच्चों की लंगोट से लेकर स्मार्ट फ़ोन, हथियार, टेक्नोलॉजी और रोबोट तक सब कुछ पैदा कर रहा है।

लोग पूछते हैं आख़िर हमारे बच्चा पैदा करने से तुम्हे क्या समस्या है?

जी हाँ बिल्कुल सही सोच रहे हो। मेरे आपके या किसी भी सामाजिक प्राणी के मन में सबसे पहले यही सवाल आता है कि भई बच्चे पैदा हम कर रहे हैं। कमा हम रहे हैं, उन्हें खिला भी हम ही रहे हैं। तो फिर ये सरकार और दुनिया को बचाने वाले बुद्दिजीवी क्यों आखिर क्यों हमारे मज़े के पीछे पड़े हैं? तो इससे सीधा और आसान सा उपाय हम अपने खुद के परिवार से ही समझ सकते हैं। माना की किसी घर में पति-पत्नी दो लोग हैं। पति कमाता है पत्नी नहीं। चलो मान लेते हैं 21वीं सदी है पत्नी भी कमाती है। एक दो साल बाद उनके एक बच्चा होता है। अब बच्चे का खर्चा भी तो होगा। उसके लिए खाना, कपडे और अन्य सुविधायें। फिर दो तीन साल बाद एक और बच्चा हो जाये तो घर की कमाई भी उसी अनुपात में बंट जाएगी।

कुछ सालों बाद ऐसे हालत हर ट्रैन में हर बार देखने को मिलेंगे
कुछ सालों बाद ऐसे हालत हर ट्रैन में हर बार देखने को मिलेंगे

अब कमाने वाले तो दो हे थे लेकिन खाने वाले चार हो गए। ऐसे में अगर वो दो पति-पत्नी ऐसे ही साल दो साल में बच्चे पैदा करते रहे तो उनकी प्रजनन क्षमता ख़त्म होने तक वो कितने बच्चे पैदा कर देंगे। और फिर इस देश में ऐसे कितने ही पति-पत्नी होने। तो आप हिसाब लगा सकते हो कि आबादी कितनी तेजी से बढेगी। फिर हमारे पास संसाधन भी तो सीमित हैं।

वो बच्चे अब अपने लिए अलग घर चाहते हैं, जिसके लिए चाहिए ज़मीन। इन्हें खाने के लिए खाना चाहिए, जिसे उगाने के लिए चाहिए ज़मीन। खाकर बड़े हो जाएंगे तो बदन ढंकने के लिए कपड़ा चाहिए जिसके लिए कपास उगाना पड़ेगा, जिसके लिए चाहिए ज़मीन। खाकर निकालने के लिए भी चाहिए ज़मीन। ऐसे ही स्कूल, कंपनी, घर, श्मशान सब के लिए ज़मीन की जरुरत होती है। ज़मीन ज़रूरी संसाधन का एक उदाहरण मात्र है। ऐसे ही हवा, पानी और अन्य संसाधन भी हैं। हर पैदा होने वाले बच्चे के साथ इन पर बोझ बढ़ जाता है। और हाँ ये बहुत की कड़वी बात है कि धरती को सबसे ज़्यादा नुकसान हम इंसानों ने ही पहुंचाया है।

क्या कारण है की हम जनसंख्या दिवस 2019 तक 34 करोड़ से 134 करोड़ हो गए

पहला कारण साक्षरता नहीं शिक्षा की कमी

भारत ही नहीं पूरे विश्व में जनसंख्या वृद्धि का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है शिक्षा और जागरूकता की कमी। केवल साक्षर होना, किताबें पढ़ लेना और कोई बड़ी ड़िग्री हासिल कर लेना ही शिक्षा नहीं होता। शिक्षा का मतलब होता है जीवन और आसपास के वातावरण का भली भांति अध्ययन। जिसकी सहायता से हम अपना ही नहीं दूसरों का जीवन भी सरल, सुखमय और संपन्न बना सके। हमारे देश में आज भी ऐसे ऐसे महारथी बैठे हैं। जिन्होंने पढ़ाई लिखाई भले ही पूरी कर रखी हो लेकिन जब बात बच्चे पैदा रखने की आती है तो उनका डब्बा भी गोल हो जाता हैं। विश्व जनसंख्या दिवस 2019 तक भी लोग परिवार नियोजन को समझ ही नहीं पा रहे हैं।

दूसरा कारण सही शिक्षा और जागरूकता की कमी

हमारे यहां सेक्स एजुकेशन ही बड़ी शर्मिंदगी के साथ पढ़ा-पढ़ाया जाता है। तो फैमिली प्लानिंग का संस्कार लोगों में नहीं डल ही नहीं पाता। इसीलिए फैमिली प्लानिंग को हमारे यहां सामाजिक विषय नहीं माना जाता। यहाँ आज भी लोग अपनी हैसियत, बजट और क्षमता के हिसाब से बच्चे पैदा करते हैं।

तीसरा कारण मर्दों की झूठी मर्दानगी

परिवार नियोजन की ताली हमने एक हाथ से बजायी। पूरी ज़िम्मेदारी औरतें उठाये और मर्द जब चाहे मज़े करे। औरतें ही गर्भनिरोधक गोलियां खाएं, वही कॉपर टी लगाएं, वही नसबंदी कराएं। अगर मर्द ऐसा करंगे तो उनकी ‘मर्दानगी’ फीकी पड़ जाएगी। अभी तक कॉन्डोम छोड़ दें तो कई मर्द गर्भनिरोधक उपाय (कॉन्ट्रासेप्टिव) से बचते हैं। इसके आलावा औरतों तक गर्भनिरोधक उपायों (या सुरक्षित अबॉर्शन के उपाय) की पहुंच बहुत कम है। 2016 में गरीब देशों में जिनमें भारत आता है, 35 करोड़ महिलायें ऐसी थीं जो अपना आखिरी बच्चा नहीं चाहती थीं। फिर भी वो प्रेगनेंट हुईं और उन्हें बच्चे को जन्म देना पड़ा।

गर्व से कहो हम भारतीय हैं, और शर्म से कहो हम 134 करोड़ हो गए
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चौथा कारण सही पारिवारिक ढांचा न होना

यहाँ बच्चे तो औरतें ही पैदा करती हैं। लेकिन फिर भी उनके गर्भ पर उनका ही हक नहीं रहता। बच्चा पैदा करना एक पारिवारिक निर्णय होता है। सास ससुर ने कहा हमें खिलाने के लिए पोता चाहिए तो करो पैदा। पोते से मन भर गया अब पोती चाहिए तो करो पैदा। अब लगा की उन दोनों में नालायक निकल सकता है तो फिर तीसरा पैदा करो। तीसरा बच्चा पैदा करने के बाद भी लिंगानुपात के नाम पर चौथा बच्चा पैदा करवा दिया जाता हैं। परिवार की संस्था इस तरह बनी है कि वो अपना क्लोन तैयार करते रहना चाहती है। इसीलिए शादिशुदा जोड़ों की ज़िम्मेदारी समझी जाती है कि वो बच्चे पैदा करें। ढेर सारे बच्चे इसी तरह दुनिया में आते हैं।

पांचवा कारण कुछ दकियानूसी प्रथाएं

लगभग सभी धर्मों में पुरुषों को औरतों से श्रेष्ठ बताया गया है। कई कर्मकांड ऐसे हैं जिन्हें सिर्फ मर्द कर सकते हैं। वंश को आगे कौन बढ़ाएगा? दादा या पिता को मुखाग्नि और पिण्डदान कौन करेगा? बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा? आदि… आदि। इसलिए भी लोग बेटे की चाह में भी बच्चे पैदा करते रहते हैं।

जनसंख्या बढ़ने की इन वजहों को मात्र एक चीज़ से ख़त्म किया जा सकात है। वो है जागरूकता और भागीदारी। और ये कोई सरकार या  संस्था अकेले नहीं कर सकती।

जनसंख्या दिवस 2019 पर जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए क्या किया जा सकता है

कुदरत का नियम है। आने वाले समय में लोगों को बच्चे पैदा करने से तो रोक नहीं सकते। लेकिन ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर जरूर रोक लगायी जा सकती है। जैसे जो काम चार बच्चे करेंगे उसे एक भी कर लेगा। विश्व जनसंख्या दिवस 2019 के बाद 134 करोड़ लोगों में से अगर आधी आबादी भी एक-एक बच्चे पैदा करेगी तो मात्र तीन-चार साल में ही हमारी जनसंख्या और डेढ़ गुना बढ़ जाएगी। और अगर किसी ने एक से ज़्यादा बच्चे पैदा किये तो ये आंकड़ा जल्दी भी पूरा हो सकता हैं।

दुनियाभर में जनसंख्या को लेकर हल्ला तब मचता है, जब जनसंख्या में अरब का आंकड़ा जुड़ता है। लेकिन दुनिया की जनसंख्या में हर 14वें महीने 10 करोड़ लोग जुड़ जाते हैं। मतलब हर साल 4 नए ऑस्ट्रेलिया पैदा हो जाते हैं। चार ऑस्ट्रेलिया मतलब एक बिहार, और इन चार में ढाई ऑस्ट्रेलिया हिंदुस्तान की आबादी से जुड़ते हैं।

अभी तक ऐसे कोई आंकड़े तो बने नहीं जिनके आधार पर हम कह सकें कि जनसंख्या को इतना घटा, बढ़ा या रोक देना चाहिए। लेकिन ये आंकड़े हैं कि धरती पर संसाधनों की मात्रा सीमित हैं। ये संसाधन कितने लोगों के लिए पर्याप्त हैं, इस पर कई बार चर्चा हो सकती है। आबादी कम हों या ज़्यादा, वो संसाधनों का ज़्यादा भोग करेंगे तो जल्दी खत्म होंगे। धीमे या कम करेंगे तो देर तक चलेंगे। इसलिए जब तक एक दूसरी धरती नहीं खोज ली जाती, तब तक हमें संयम बरतना पड़ेगा। कम से कम चाँद पर प्लॉट कटने तक तो करना ही चाहिए।

वैसे भारत की जनसंख्या को लेकर समय-असमय चेतावनियां जारी होती रहती हैं। लेकिन मेरा विचार हैं कि अब विश्व जनसंख्या दिवस 2019 पर सरकार को चेतावनी नहीं धमकी देनी शुरू कर देनी चाहिये।

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