जयपुर। राजस्थान में आज 25 नवंबर को 199 विधानसभा सीटों पर मतदान हो गया है। अब तीन दिसंबर को परिणाम जारी किया जाएगा। इस बार लोगों ने बढ़-चढ़कर वोटिंग में हिस्सा लिया। अधिकांश मतदान केंद्रों पर लोगों की लंबी लाइन देखी गई। इस बार प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता नजर आ रहा है। सर्वे के मुताबिक बीजेपी को 114 से 124 और कांग्रेस को 68 से 78 सीटें मिलने का अनुमान है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को एक बार फिर प्रदेश की कमान सौंपी जाएगी। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि राजे के मुकाबले प्रदेश में बीजेपी में कोई अनुभवी नेता नहीं है। वसुंधरा राजे के नाम को लेकर लोगों में उत्सुकता बनी हुई है। वसुंधरा राजस्थान बीजेपी की लोकप्रिय चेहरा हैं और पहले भी राजस्थान में बीजेपी सरकार की कमान संभाल चुकी हैं। ऐसे में वसुंधरा के नाम की घोषणा की जाएगी।

वसुंधरा राजे के गढ़ में बीजेपी की मजबूत स्थिति
टाइम्स नाऊ नवभारत और ईटीजी के लेटेस्ट ओपिनियन पोल के मुताबिक, हाड़ौती में कुल 17 सीटें हैं जिनमें बीजेपी को बढ़त मिलती हुई नजर आ रही है। बीजेपी को 11-13 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं कांग्रेस के खाते में महज 3-7 सीटें जाने की संभावना है। गौरतलब है कि हाड़ौती पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का गढ़ माना जाता है और लंबे समय से यहां बीजेपी की स्थिति मजबूत रही है।

जानिए किस रीजन में कौनसी पार्टी है मजबूत
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, ढूंढ़ाड़ रीजन में कांग्रेस को 16-20 सीटें मिलने की संभावना है। यहां बीजेपी को 36-40 सीटें मिलने का अनुमान है। इसी तरह मारवाड़ में कांग्रेस को 21-27 और बीजेपी को 31-37 सीटें मिलने की संभावना है। मेवाड़ में कांग्रेस को 15-19 और बीजेपी को 21-27 तथा शेखावाटी में यह आंकड़ा 7-11 कांग्रेस के लिए और बीजेपी के लिए 10-12 सीटों का माना जा रहा है।

बीजेपी-कांग्रेस को मिलेगा इतना वोट शेयर
राजस्थान विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत को देखा जाए तो बीजेपी को इस बार 43 .80 प्रतिशत और कांग्रेस को 41.90 वोट मिलने का अनुमान है। वहीं अन्य के खाते में 14.30 फीसदी वोट जाने की संभावना है।

क्या है झालरापाटन सीट का चुनावी समीकरण
साल 2003 में वसुंधरा राजे को झालरापाटन से टिकट दिया गया। उसके बाद से ही लगातार यहां वसुंधरा राजे जीतकर आ रही हैं। वर्ष 2003 में वसुंधरा राजे को 72760 वोट मिले और वोट प्रतिशत 59 प्रतिशत रहा। उन्होंने कांग्रेस की रामा पायलट को हराया। पायलट को 45385 वोट मिले। वोट प्रतिशत 37 रहा। वसुंधरा यहां से पहली बार 27701 वोटों से विजय घोषित की गई। उसके बाद यह कारंवा रुका नहीं और निरंतर बढ़ता चला गया।

राजे को सियासत का लंबा अनुभव
70 वर्षीय वसुंधरा राजे के पास सियासत का लंबा अनुभव है। साल 1984 में भारतीय जनता युवा मोर्चा से राजनीतिक करियर का आगाज करने वाली वसुंधरा 1985 में पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुईं और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वसुंधरा 1989 में पहली बार लोकसभा पहुंचीं और 2003 तक बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकारों में अलग-अलग मंत्रालयों के कार्यभार भी संभाले। साल 2003 के विधानसभा चुनाव से वसुंधरा राजस्थान की राजनीति में लौट आईं और पिछले 20 साल से सूबे की सियासत में ही सक्रिय हैं।

संगठन से लेकर कार्यकर्ताओं तक पकड़ मजबूत
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की इमेज जमीनी नेता की है। वसुंधरा कार्यकर्ताओं के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। लंबे समय से सियासत में सक्रिय वसुंधरा की संगठन पर भी मजबूत पकड़ है। 2018 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन के लिए भी दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की संगठन शक्ति और कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ को श्रेय दिया गया। यही वजह थी कि बीजेपी ने 2003 में वसुंधरा के राजस्थान की राजनीति में सक्रिय होने के बाद सांगठनिक नियुक्तियों में उनकी पसंद का खयाल रखा।

वोट बेस का अंब्रेला
राजे की सबसे बड़ी खासियत एक चेहरे पर वोट बेस का अंब्रेला है। उन्होंने सत्ता में रहते हुए महिलाओं के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की थी। एक तो वसुंधरा का महिला नेता होना और दूसरा उनकी सरकार की योजनाएं, ये दोनों मिलकर जाति-धर्म की भावना से ऊपर उठकर आधी आबादी का एक अलग ही वोट बैंक सेट करते हैं जिसका नतीजा है कि वसुंधरा उस झालरापाटन सीट से लगातार जीतती आ रही हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद अधिक है।

60 सीटों पर सीधा असर
वसुंधरा राजे 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा की 60 सीटों पर सीधा असर रखती हैं और ये भी एक बड़ा कारण था कि पार्टी 2018 में खराब हालात के बीच भी 70 से अधिक सीटें जीतने में सफल रही। बात सिर्फ इन 60 सीटों तक ही सीमित नहीं है। वसुंधरा राजे सभी 200 सीटों पर पार्टी की मजबूत और कमजोर कड़ी जानती हैं। उन्हें जमीनी फैक्ट पता हैं। वसुंधरा जानती हैं कि कहां कौन सा समीकरण काम कर सकता है।

यहां कोई जातिगत समीकरण काम नहीं करते
झालरापाटन विधानसभा में कई जातियां हैं लेकिन यहां जातिगत समीकरण काम नहीं करते, वसुंधरा राजे के नाम पर यहां एक तरफा वोट पड़ते हैं। कांग्रेस ने यहां जातिगत के साथ प्रभावशाली लोगों को उतारने का प्रयास किया लेकिन वह विफल रही। झालरापाटन विधानसभा बीजेपी का मजबूत गढ़ बन गई है।