जयपुर। भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक की तर्ज पर राजस्थान में भी परिवर्तन का मूड तो बना ही चुकी है। कर्नाटक के नतीजों से डरी हुई बीजेपी राजस्थान में कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है। शायद यही वजह है कि पार्टी आलाकमान जब भी दिल्ली या राजस्थान में कोई बैठक करता है तो उसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पूरी तवज्जो दी जाती है। पार्टी के आला नेता राज्य में जाकर कोई रैली, सभा या सार्वजनिक कार्यक्रम भी करते हैं तो मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री मौजूद रहती हैं। विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं होने से कथित तौर पर नाराज वसुंधरा राजे पार्टी के राज्य स्तरीय कार्यक्रमों और अभियानों से दूरी बनाती ही नजर आती हैं। इसलिए वसुंधरा के रुख को लेकर सशंकित पार्टी के आला नेता उन्हें लगातार मनाने का भी प्रयास कर रहे हैं।

राजे को बिना चेहरा घोषित किए भी पार्टी में अहमियत
प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा अपने उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति में इस बार ज्यादा प्रयोग नहीं करेगी। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को बिना चेहरा घोषित किए भी पार्टी में उनकी राय को अहमियत दी जाएगी। प्रचार अभियान में भी वह राज्य की पहले नंबर की नेता रहेंगी। पार्टी के मौजूदा विधायकों में भी करीब 25 के ही टिकट काटे जाने की संभावना है।

राजस्थान में BJP नहीं करेगा ज्यादा प्रयोग
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की सबसे मजबूत स्थिति राजस्थान में ही है। भाजपा को यहां पर सत्ता विरोधी लहर के साथ राज्य में अमूमन हर पांच साल में होने वाले बदलाव के माहौल का लाभ मिल सकता है। ऐसे में पार्टी बहुत ज्यादा प्रयोग नहीं करना चाहती है।

टिकट बंटवारे में वसुंधरा की चलेगी
राज्य के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुल 200 सीटों में से 71 सीट पर जीत मिली थी। ऐसे में पार्टी के मौजूदा विधायकों के बहुत ज्यादा टिकट काटे जाने की संभावना नहीं है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा जिताऊ फॉर्मूले पर काम करते हुए अधिकतम 25 फीसदी टिकट ही काटेगी। हालांकि, भाजपा अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी बिना किसी चेहरे के चुनाव में जा रही है। इससे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का समर्थक खेमा नाराज जरूर है। मगर, पार्टी नेतृत्व ने इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो देने की बजाय साफ संकेत दिए हैं कि वसुंधरा राजे की अहमियत बरकरार रहेगी। टिकट वितरण में उनकी राय अहम होगी और मेरिट के आधार पर ही उम्मीदवारों का चयन होगा। इसके अलावा प्रचार अभियान में भी वसुंधरा राजे प्रदेश के पार्टी नेताओं में सबसे ऊपर रहेंगी।

एक दर्जन सीट पर पेच
पार्टी सूत्रों के मुताबिक राजस्थान की लगभग एक दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिन पर पेच फंसा है। इसके अलावा प्रदेश नेताओं की राय और केंद्रीय नेतृत्व की रिपोर्ट को लेकर मतभेद है। बहरहाल, इन सीटों लेकर पार्टी के अंदर मंथन जारी है।

हारी सीटों पर कद्दावर नेताओं को उतारने की तैयारी
याद रहे कि भाजपा ने अभी राजस्थान के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। हालांकि, केंद्रीय चुनाव समिति की पिछली बैठक में राज्य के उम्मीदवारों को लेकर चर्चा हुई थी। सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने अभी करीब पचास नामों की सूची तैयार की है। इनमें कुछ सांसदों व केंद्रीय मंत्रियों के नाम भी शामिल हैं। भाजपा अन्य राज्यों की तरह यहां पर भी बड़े नेताओं को उतार कर पिछली बार हारी हुई सीटों को जीतने का दांव खेल सकती है।

सियासी गणित में वसुंधरा भारी
कर्नाटक के नतीजों से डटी हुई भाजपा राजस्थान में कोई भी रिस्क लेने को तैयार नहीं है। ऐसे में पार्टी मोदी मैजिक के साथ-साथ इन चुनावों पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रभुत्व का भी पूरा इस्तेमाल करना चाहती है। यही वजह है कि पार्टी आलाकमान जब भी दिल्ली या राजस्थान में कोई बैठक करता है तो उसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पूरी तवज्जो दी जाती है। यहां तक कि पार्टी के आला नेता राज्य में जाकर कोई रैली, सभा या सार्वजनिक कार्यक्रम भी करते हैं तो मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री मौजूद रहती हैं।