जयपुर। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का जन्‍म मुंबई में हुआ था। राजघरानों से तालुक रखने वाली राजे जीवाजी राव सिंधिया की पुत्री हैं। वसुंधरा बचपन से ही घर से दूर रहीं। उन्‍होंने अपनी स्‍कूली शिक्षा प्रेसेंटेशन कॉन्‍वेंट, कोडइकनाल से पूरी की और कॉलेज की पढ़ाई सोफिया कॉलेज मुंबई से पूरी की, जहां से उन्‍होंने अर्थशास्‍त्र और राजनीतिक शास्‍त्र में क्रमश: स्‍नातक एवं परास्‍नातक की डिग्रियां प्राप्‍त कीं। 1984 में वो अपने गृह राज्‍य राजस्‍थान वापस आयीं और बतौर भाजपा की राष्‍ट्रीय सदस्‍या के रूप में राजनीतिक पारी की शुरुआत की। 1985 में राजस्‍थान विधानसभा की सदस्‍या चुने जाने के बाद उन्‍हें भाजपा युवा मोर्चा, राजस्‍थान का उपाध्‍यक्ष नियुक्‍त किया गया। दबंग और दिग्गज महिला नेत्री लिस्ट में सबसे ऊपर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का नाम आता है।

राजनीति का रच दिया नया अध्याय
5 बार विधायक, 5 बार सांसद और 2 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाली वसुंधरा राजे अपना पहला चुनाव अपने ही गृह राज्य से हार गईं। उसके बाद जब अपने ससुराल से राजनीतिक सफर शुरू किया तो पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति का नया अध्याय रच दिया। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा के बदलते हुए स्वरूप की ऐसी मिसाल हैं, जिन्हें देख कर चाल, चरित्र और चेहरे की परिभाषा बार-बार बदलनी होती है। राजे अपने दल, देश और साथी सहयोगियों के लिए एक अजूबा हैं। दल से वफादारी का दावा करते-करते अचानक वो दल को चुनौती दे बैठती हैं। राजनीति भी अपनी शर्तों पर करती हैं।

5 बार विधायक, 5 बार सांसद और दो बार मुख्यमंत्री
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रहा है। बेटे से लेकर भतीजे तक सियासत में एक बड़ा मुकाम रखते हैं। भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की सियासत में दिग्गज नेता माने जाते हैं। पहले कांग्रेस और अब भाजपा की केंद्र सरकार में मंत्री हैं, तो वहीं उनके बेटे दुष्यंत सिंह उनके पूर्व निर्वाचन क्षेत्र झालावाड़-बारां से लोकसभा के लिए 4 बार चुने गए। वसुंधरा साल 1985 धौलपुर विधानसभा चुनाव से राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हुईं। उसके बाद लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज कीं। वसुंधरा राजे 5 बार की लोकसभा सांसद रही हैं, 5 बार विधायक और दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं। वर्तमान में वो बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर हैं।

अपनी शर्तों पर काम करने वाली नेत्री
वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी कहते हैं कि वसुंधरा राजे बीजेपी में राजस्थान में ही नहीं, बल्कि देश में भी दबंग नेत्रियों में से हैं। दबंग अंदाज में जितनी मजबूती से विपक्ष पर हमला बोलती हैं, उतनी ही ताकत से पार्टी के भीतर भी अपनी बात रखती हैं। वसुंधरा राजे ने अब तक की राजनीति अपनी शर्तों पर की है, किसी तरह का कोई समझौता उन्होंने बर्दाश्त नहीं किया।

हाइकमान को भी झुकने पर किया मजबूर
राजस्थान की राजनीति में कद्दावर नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी हों या फिर ललित किशोर चतुर्वेदी, यहां तक कि मौजूदा असम के राज्यपाल और पूर्व गृह मंत्री गुलाबचन्द कटारिया की यात्रा का मामला। राजे ने वही किया जो उन्हें ठीक लगा। 1985 के बाद से 2018 तक की राजनीतिक सफर में राजे के तेवर कई बार ऐसे रहे हैं कि उन्होंने हाइकमान को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था।

तल्ख तेवरों के लिए जानी जाती हैं वसुंधरा
पूर्व सीएम राजे की छवि एक आक्रामक नेता के तौर पर रही है। कई बार गाहे बगाहे हाइकमान के साथ खटपट की चर्चाओं को बल मिलता रहा है और हर बार वसुंधरा राजे किसी विजेता की तरह बाहर निकलीं। चाहे बात प्रदेश अध्यक्ष की रही हो या अपने करीबियों को टिकट देने की, हर बार उन्होंने अपनी बात मनवाते हुए विजेता ही साबित हुई हैं। कई बार संघ के साथ भी उनके मनमुटाव की खबरें सामने आईं, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अपनी सत्ता कायम रखा।

संबंध राजघराने से, लेकिन गरीब तक पहुंच
वैसे वसुंधरा राजे जितना आक्रामक दिखती हैं, उतना ही अंदर से मानवता से भरी हुई हैं। राजस्थान में वसुंधरा राजे की पकड़ का बड़ा कारण उनकी हर तबके तक मजबूत पकड़ है। राजे का संबंध भले ही राजघराने से हो, लेकिन वे गरीब तबके तक पहुंच कर उन्हें गले लगाने तक से पीछे नहीं हटतीं।

महिलाओं में भी राजे का खासा क्रेज
महिलाओं में राजे का खासा क्रेज आज भी दिखाई देता है, फिर बेधड़क उनके साथ बैठकर उन्हीं का अंदाज अपना लेना हो या फिर उन्हीं की वेशभूषा को धारण करना हो। राजे की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 2003 में जब वसुंधरा ने पहली बार राजस्थान की सियासत में बदलाव के लिए परिवर्तन यात्रा निकाली तो प्रदेश में मानो भाजपा की एक हवा बन गई। पहली बार प्रदेश में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ 120 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हुई। उसके बाद 2013 में सुराज संकल्प यात्रा निकाली तो 163 की अजेय बढ़त के साथ सत्ता हासिल की थीं।