वर्तमान के दौर में भारतीय राजनीति के सबसे चतुर खिलाड़ियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अग्रिम पंक्ति में माने जाते हैं। वर्ष 2014 के बाद से पार्टी का नेतृत्व करते हुए अमित शाह ने जिस राजनीतिक कौशल के साथ विस्तार किया है उसे नकारा नहीं जा सकता। इसी का परिणाम है कि आज देश के अधिकतर राज्यों में भाजपा शासित सरकार है। पार्टी में अमित शाह का निर्णय पत्थर की ऐसी लकीर के समान होता है जिसे कई दिग्गज नेता चाहकर भी नहीं मिटा सके हैं। अमित शाह को भले ही आज के दौर में चाणक्य की संज्ञा दी जाती है लेकिन राजस्थान में आकर उनके सारे दांव-पेच फुस्स हो जाते हैं। राजस्थान में चाणक्य की सभी कूटनीतियों को अपने राजनीतिक कौशल से नाकाम किया है सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने।

अक्सर यही कहा जाता रहा कि केंद्र में जैसे बीजेपी का मतलब मोदी हो गया है, वैसे ही राजस्थान में बीजेपी का मतलब वसुंधरा राजे है। हाल ही मदनलाल सैनी के निधन के बाद अब एक बार पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद खाली हो गया है। वहीं प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए खींचतान भी शुरू हो चुकी है। जल्द ही भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा कर सकता है। लेकिन पिछली बार की तरह इस बार भी प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए पार्टी नेतृत्व की राह बेहद मुश्किलों वाली है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो केन्द्रीय नेतृत्व केन्द्रीय मंत्री व जोधपुर सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को राज्य में पार्टी की कमान सौंपना चाहता है लेकिन राज्य के नेताओं के अनुसार अभी शेखावत इस पद के लिए उपयुक्त नहीं है।

इन वजहों से प्रदेशाध्यक्ष पद के योग्य नहीं हैं सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत

गजेन्द्र सिंह के राजनीतिक जीवन की बात की जाए तो वे जोधपुर से दूसरी बार सांसद चुनकर आए हैं, इसके सिवाय उनके पास कोई खास राजनीतिक उपलब्धि नहीं है। सांसद बनने के बाद वे अधिकतर समय प्रदेश के बाहर ही रहते हैं ऐसे में उन्हें प्रदेशाध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी सौंपना पार्टी नेतृत्व के लिए खतरे का सौदा साबित हो सकता है। अभी तक प्रदेश की राजनीति से शेखावत का लगाव भी बेहद कम ही देखा गया है और यहां के अधिकतर नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ भी उनकी खास नजदीकियां नहीं है। शेखावत का संसदीय क्षेत्र जोधपुर जरूर रहा है लेकिन इसके बावजूद विधानसभा चुनावों में भाजपा को यहां की अधिकतर सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसका मतलब साफ है कि शेखावत की विस सीटों पर पकड़ काफी कमजोर है। शेखावत को राज्य के राजनीतिक हालातों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, ऐसे में पार्टी आज जिस मुकाम पर खड़ी है कहीं शेखावत को कमान सौंपने के बाद में पार्टी और अधिक गर्त में नहीं चली जाएं। गजेंद्र सिंह के प्रदेशाध्यक्ष बनने पर एक बार फिर से जाट वोट बैंक बीजेपी से कांग्रेस की तरफ शिफ्ट होने की भी प्रबल संभावना है।

केन्द्रीय नेतृत्व के लिए वसुंधरा राजे ‘मजबूरी’ व ‘जरूरत’ दोनों

वहीं वसुंधरा राजे की बात की जाए तो वे अपने सांगठनिक कौशल के लिए जानी जाती हैं। दो बार सीएम पद संभाल चुकी वसुंधरा राजे प्रदेश के राजनीतिक हालातों से पूरी तरह से वाकिफ है। साथ ही उनका पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ भी बेहतर संबंध है। राजस्थान में भाजपा के अधिकतर विधायक, सांसद, जिलाध्यक्ष व अन्य छोटे-बड़े सभी नेताओं ने केन्द्रीय नेतृत्व को मंशा जता दी है कि प्रदेशाध्यक्ष पद पर उन्हें वसुंधरा राजे के सिवाय दूसरा कोई नेता स्वीकार्य नहीं होगा। सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को लेकर केन्द्रीय नेतृत्व अड़ा हुआ जरूर है लेकिन वे राज्य की जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। अगर केन्द्रीय नेतृत्व को राजस्थान में पार्टी को फिर से मजबूती से खड़ा करना है तो उनके समक्ष वसुंधरा राजे के अलावा और कोई भी विकल्प नहीं है।