जयपुर। राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखों को जल्द ऐलान होने वाला है। चुनाव से पहले प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी पार्टी तैयारियों में जुट गई है। प्रदेश में बीजेपी के नेता भले ही यह कहते घूम रहे हों कि चुनाव किसी चेहरे पर नहीं बल्कि कमल के निशान पर ही होगा, लेकिन चुनाव का समय पास से यह साफ लगने लगा है कि सत्ता में आना पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बिना आसान नहीं है। टिकट वितरण से पहले देव दर्शन यात्रा पर निकली वसुंधरा राजे का कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने भव्य स्वागत किया। इस दौरान राजे के साथ भारी भीड़ देखने को मिली। भीड़ जुटाकर राजे ने हाईकमान को भी बड़ा सदेश दिया है।

वसुंधरा राजे का फैक्टर तोड़ना आसान नहीं
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का फैक्टर बीजेपी के लिए एक ऐसा फच्चर बन गया है, जिसका तोड़ वह चाहकर भी निकाल नहीं पा रही है। बीजेपी आलाकमान इस संभावना पर आश्रित है कि इस बार चुनाव बेहद रोचक हो गया है। हो सकता है कि अंत में नतीजा तीन दशक से होते रहे बदलाव का रिवाज का साथ निभाता नजर आए। बीजेपी में वसुंधरा राजे ने इस पूरे चुनाव को चर्चा में ला दिया है। आलम यह है कि राजस्थान को लेकर, खासकर वसुंधरा राजे को लेकर नरेंद्र मोदी, अमित शाह और पूरी बीजेपी सतर्क है, सावधान है। राजे जमीन स्तर पर भी काफी मजबूत और लोकप्रिय नेता है। उनके एक इशारे में लोगों की भी भीड़ जमा होती है। ऐसे में मैडम को नजरअंदाज करना बीजेपी को काफी महंगा साबित पड़ सकता है।

टिकट वितरण से पहले भीड़ जुटाकर हाईकमान को दिया संदेश
एक तरफ पीएम मोदी सहित पार्टी के राष्ट्रीय नेता लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं और कमल के निशान को जिताने का आह्वान कर रहे हैं। दूसरी तरफ वसुंधरा राजे अपने स्तर पर देव दर्शन यात्राएं कर रही है। देव दर्शन यात्रा के दौरान वे लोगों से मिल रही है और उन्हें संबोधित भी कर रही है। राजे के कार्यक्रमों में सिर्फ राजे के ही जयकारे होते हैं। उनके कार्यक्रमों में राजे के समर्थक कमल के बजाय राजे को तवज्जो दे रहे हैं और उन्हें तीसरी बार प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं।

बेहद कद्दावर नेता है वसुंधरा राजे
राजस्थान में सही मायने में वसुंधरा राजे बेहद कद्दावर नेता है। इस बात में किसी को कोई शक नजर नहीं आता। फिर मोदी, शाह और नड्डा की राजे को दरकिनार करने की कोशिशों ने इस तथ्य को स्थापित भी कर दिया है। इसीलिए देखा जाए तो साफ लगता है कि वसुंधरा के राजनीतिक वर्तमान और भविष्य के बीच यह चुनाव झूल रहा है और उसी पर पहुंचकर लगभग अटक सा गया है। राजस्थान में अपने दम पर बीजेपी को बहुमत दिलाने वाली दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को एक बार फिर उनके समर्थक सीएम चेहरा देखना चाहते है।

5 बार विधायक, 5 बार सांसद और दो बार मुख्यमंत्री
वसुंधरा राजे का राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रहा है। बेटे से लेकर भतीजे तक सियासत में एक बड़ा मुकाम रखते हैं। भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की सियासत में दिग्गज नेता माने जाते हैं। पहले कांग्रेस और अब भाजपा की केंद्र सरकार में मंत्री हैं, तो वहीं उनके बेटे दुष्यंत सिंह उनके पूर्व निर्वाचन क्षेत्र झालावाड़-बारां से लोकसभा के लिए 4 बार चुने गए। वसुंधरा साल 1985 धौलपुर विधानसभा चुनाव से राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हुईं। उसके बाद लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज कीं। वसुंधरा राजे 5 बार की लोकसभा सांसद रही हैं, 5 बार विधायक और दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं। वर्तमान में वो बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर हैं।

गहलोत ने जनलाभकारी योजनाओं से खुद को किया मजबूत
अशोक गहलोत ने अपने रणनीतिक कौशल के जरिए राजनीति में खुद को इतना बड़ा बना लिया है कि पार्टी के भीतर ही कांग्रेस आलाकमान भी अब उनके लिए कोई चैलेंज नहीं है। धमाकेदार जनलाभकारी योजनाओं के जरिए जनता को अपने साथ जोड़कर खुद के लिए एक राजनीतिक कवच निर्मित कर लिया है। राजस्थान न तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गुजरात है और न ही मध्य प्रदेश, जहां पर मोदी के कहने पर विधानसभा में सीधे सीधे वोट पड़ जाएं और बीजेपी आसानी से सत्ता में आ सके। बीजेपी की सत्ता आना उतना आसान नहीं है जितना बीजेपी के नेता कह रहे हैं।

पांच साल में सत्ता बदलने का ट्रेंड
राजस्थान में वर्ष 1993 में बीजेपी के भैरोंसिंह शेखावत लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। मगर उनको हराकर वर्ष 1998 में कांग्रेस से जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने, तो उसके बाद से लगातार हर पांच साल बाद एक बार कांग्रेस, और एक बार बीजेपी की सरकारें बनने का सिलसिला चल गया। इन पांच चुनावों में तीन बार कांग्रेस से अशोक गहलोत तो दो बार बीजेपी से वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री रही हैं। हर पांच साल बाद सत्ता के बदलने की कहानी जारी रही है। जनता ने भी इसे एक ट्रेंड के रूप में अपने भीतर उतार लिया है।