रविवार को कानपुर सेंट्रल स्टेशन से लगभग 58 किलोमीटर पहले कानपुर देहात के पुखरायां स्टेशन के कुछ आगे हुए दर्दनाक इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे में 130 से ज्यादा यात्रियों की मौत हो गई जबकि घायल यात्रियों की संख्या का आंकड़ा 300 के भी पार हैं। इनमें से 60 ऐसे यात्री है जो गंभीर रुप से घायल हैं। दुर्घटना कितनी भीषण थी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तीन कोचों के तो परखच्चे उड़ गए थे। राहत कार्य के लिए एनडीआरएफ व सेना को मौके पर बुलाया गया।
इंदौर से पटना जा रही एक्सप्रेस के कानपुर के आगे पुखरायां में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की साफ वजह फिलहाल सामने नही आई हैं। इस ट्रेन हादसे की वजह को लेकर कई बातें सुनने में आ रही हैं, लेकिन इसकी हकीकत जांच के बाद ही सामने आ पाएगी। घटनास्थल कानपुर से लगभग 60 किमी और पुखरायां स्टेशन से करीब 200 मीटर दूरी पर है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इसके पीछे जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने की बात कही हैं।
ये हो सकते हैं हादसे के कारण
ट्रेन में खराबी हो सकती है हादसे की वजह
हादसे की जांच में सबसे पहली कड़ी यह आ रही है कि इंदौर-पटना एक्सप्रेस के चलने से पहले जांच की गई थी या नहीं। इस दौरान यात्रियों की उन शिकायतों को भी ध्यान में रखा जाएगा जिसमें यात्रियों ने ट्रेन से लगातार तेज आवाज आने की शिकायत टीटी को की थी। शिकायत के बाद दो बार ट्रेन को रुकवाकर देखा भी गया था, लेकिन दिक्कत का पता न चलने की वजह से इसको आगे जाने की इजाजत दी गई थी। कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी की जांच में यह भी तय किया जाएगा कि यदि ट्रेन की जांच चलने से पहले की गई थी तो यात्रियों ने इस तरह की शिकायत क्यों की। ट्रेन की जांच में कौन-कौन अधिकारी शामिल थे और उनकी रिपोर्ट इस बाबत क्या कहती है।
पटरी में दरार को भी माना जा रहा है हादसे का कारण
ट्रेन हादसे को लेकर शुरुआती कारणों में पटरी में आई दरार को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। दरअसल पटरियों की लगातार जांच की जाती है। इसके लिए अल्ट्रासाउंड मशीन का इस्तेमाल भी किया जाता है, जो ट्रेन की पटरियों में आई मामूली दरार को भी बता देती है। इसके बाद इस दरार को तुरंत मौके पर ही दुरुस्त कर दिया जाता है। रेल की पटरियों पर यह निरंतर चलने वाली प्रकिया है। यदि पटरी में आई दरार की बात सच हुई तो यह जरूर देखा जाएगा कि पटरी की नियमित जांच क्यों नहीं हुई या फिर इसमें कोताही क्यों बरती गई। कहा जा रहा है कि पटरी में दरार के लगातार बढ़ते रहने की वजह से यह हादसा हुआ है।
बोगियों को जोड़ने वाली शंटिंग का लूज होना
हादसे की वजह का तीसरा बड़ा कारण दो बोगियों को आपस में जोड़ने वाली शंटिंग का ठीक से न होना भी हो सकता है। आपने भी कई बार दो बोगियों को आपस में जोड़ने वाली इस जगह पर गौर जरूर किया होगा। यहां पर बाकायदा लिखा होता है कि ‘कृप्या लूज शंटिंग न करें’। इसकी वजह सिर्फ यही है कि ऐसा होने पर बोगियां ठीक तरह से एक दूसरे से बंधकर नहीं चल पाती हैं और ऐसे में हादसे की गुंजाइश बनी रहती है।
अधिकारियों की लापरवाही से हो सकता है यह हादसा
जिस वक्त यह हादसा हुआ उस समय ट्रेन की रफ्तार 110 किमी प्रति घंटा थी। यात्रियों के मुताबिक झांसी से चलते ही ट्रेन में तेज आवाज आने लगी थी। यात्रियों ने इसकी ट्रेन के संबंधित स्टाफ को भी दी थी। जिसके बाद दो जगहों पर ट्रेन को रोका भी गया था। लेकिन अधिकारियों ने ट्रेन को कानपुर सेंट्रल स्टेशन लाने का फरमान सुनाया था। जांच करते समय यह देखा जाएगा कि इस हादसे के पीछे कहीं अधिकारियों की लापरवाही तो नहीं रही है।
हादसे में हताहत योत्रियों को दी राहत
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने मृतकों के परिवारों को 3.5 लाख रुपए देने का ऐलान किया है। गंभीर रूप से ज़ख़्मी लोगों को 50 हज़ार और मामूली रूप से घायल यात्रियों को 25 हज़ार रुपए दिए जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिवार को 2-2 लाख रुपए और गंभीर रूप से ज़ख़्मी को 50-50 हज़ार रुपए देने का ऐलान किया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपए और गंभीर रूप से घायल हुए मुसाफ़िरों को 50-50 हज़ार रुपए देने की घोषणा की है।
मध्य प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये जबकि गंभीर रूप से घायल यात्रियों को 50-50 हजार रुपये के मुआवजे का ऐलान किया है।
भारत में वर्ष 1988 से लेकर 2016 तक हुई बड़ी ट्रेन दुर्घटनाओं का एक विवरण
20 नवंबर, 2016 : उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के पुखरायां में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतरे, 130 से ज्यादा यात्रियों की मौत जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल।
28 मई, 2010 : पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले में नक्सली हमले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतरी, कम से कम 148 लोगों की मौत।
09 सिंतबर, 2002 : बिहार के औरंगाबाद जिले में हावड़ा-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस के 14 डिब्बे धावी नदी में गिरे, 100 से ज्यादा यात्रियों की मौत। 150 से ज्यादा घायल हुए।
02 अगस्त, 1999 : असम के गायसल में करीब 2,500 यात्रियों को लेकर जा रही दो ट्रेनें आपस में टकरायीं, कम से कम 250 लोगों की मौत।
26 नवंबर, 1998 : पंजाब के खन्ना में जम्मू-तवी-सियालदह एक्सप्रेस फ्रंटियर मेल के पटरी से उतरे डिब्बों से टकराने पर कम से कम 212 लोगों की मौत।
14 सितंबर, 1997 : मध्यप्रदेश के बिलासपुर में अहमदाबाद-हावड़ा एक्सप्रेस के पांच डिब्बे नदी में गिरे, 81 लोगों की मौत।
20 अगस्त, 1995 : उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद रेलवे स्टेशन के पास पुरुषोत्तम एक्सप्रेस ने कालिंदी एक्सप्रेस को टक्कर मारी, 400 लोगों की मौत।
18 अप्रैल, 1988 : उत्तर प्रदेश में ललितपुर के पास कर्नाटक एक्सप्रेस पटरी से उतरी, कम से कम 75 लोगों की मौत।
08 जुलाई, 1988 : केरल में आईलैंड एक्सप्रेस अशतामुदी झील में गिरी, 107 लोगों की मौत।