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अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री

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ठन गई! मौत से ठन गई!
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आउंगा, कूच से क्यों डरूं…

कुछ इस तरह के शब्दों के साथ हमारे प्यारे अटलजी इतिहास के पन्नों पर सदा के लिए अपनी अमिट छाप के अमर हो गए। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कल शाम दिल्ली में निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे। एक सटीक राजनीतिक, अटल कार्यकर्ता, एक लेखक, एक कवि और एक पत्रकार अटलजी हमेशा सभी के दिलों में बसे रहेंगे। 16 अगस्त, 2018 की शाम उनका बिमारी के चलते निधन हो गया। अटल बिहारी वाजपेयी को 1992 में भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण और 2014 में भारत रत्न प्रदान किया गया है।

अटलजी का बचपन व आरंभिक जीवन परिचय

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर, मध्यप्रदेश के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था। उनके पिता अध्यापक व कवि रहे। जिले के स्वरास्ती स्कूल से स्कूलिंग के बाद उन्होंने लक्ष्मीबाई कॉलेज से ग्रेजुएशन और कानपुर के डीएवी कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया। उसके बाद आरएसएस द्वारा प्रकाशित मैगज़ीन में एडिटर के तौर पर काम करने लगे। यही से उन्हें एक पत्रकार के रूप में ख्याति मिलने लगी। कवि तो पहले से थे ही।

उनका राजनीति जीवन

अटलजी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया और जेल भी गए। इसी दौरान उनकी मुलाकात भारतीय जनसंघ के लीडर श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई और यहीं से उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ। आगे जाकर अटलजी ने भी भारतीय जनसंघ, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी की बागड़ौर संभाली और इसका विस्तार पूरे देश में किया। 1954 में वह बलरामपुर से मेम्बर आॅफ पार्लियामेंट चुने गए। 1968 में दीनदयाल उपाध्याय के निधन के बाद उन्हें संघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने नानाजी देसाई, बलराज मध्होक व लाल कृष्ण आडवानी के साथ पार्टी को लंबे समय तक आगे बढ़ाया। 1980 में अटलजी, आडवानी और भैरोसिंह शेखावत ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया और अटलजी पार्टी के अध्यक्ष बन गए। 1993 में अटलजी सदन में विपक्ष के लीडर बनकर बैठे और 1995 में पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया। उन्होंने 11वीं लोकसभा में सबसे पहले 16 मई, 1996 को पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली लेकिन समर्थन हासिल न कर पाने की वजह से इस्तीफा दे दिया। 19 मार्च, 1998 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 1999 में तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण की और पहली बार 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।

प्रमुख उपलब्धियां

अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में उन्होंने पोकरण में देश को परमाणु शक्ति से लैस किया। साथ ही चांद पर पानी खोजने की प्रक्रिया में इसरो की सफलता में साथ दिया। 1999 में कारगिल युद्ध में दुश्मनों को धूल चटाने में भी अटलजी की रणनीति बेहद कारगर साबित हुई। 2004 को उन्होंने राजनीति से पूरी तरह संन्यास लेकर सभी को चौंका दिया।

उनके नाम पर हैं कई रिकॉर्ड

अटल बिहारी वाजपेयी के नाम सबसे लंबे समय तक सांसद रहने का रिकॉर्ड है। वह 6 अलग-अलग सीटों से 10 बार लोकसभा व 2 बार राज्यसभा में पहुंचे और कुल 50 वर्षों तक सांसद रहे। वह 1942 से 2005 तक 63 साल तक सबसे लंबी राजनीतिक पारी खेली। पहला चुनाव 1954 में लड़ा और जीते। वह पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। जवाहर लाल नेहरू के बाद पहले ऐसे व्यक्ति बने जिसने 3 बाद प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

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