news of rajasthan
अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट।
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अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट।

शपथ ग्रहण समारोह संपन्न हुआ। राजस्थान को दो नए मुख्यमंत्री मिल गए। लेकिन राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी का द्वन्द युद्ध यहीं समाप्त नहीं होता। अभी तो बहुत लड़ाई बाकी हैं। लेकिन ये लड़ाई किसी विपक्षी या किसी पराये व्यक्ति से नहीं। ये लड़ाई तो कांग्रेस की अपनी लड़ाई है। जिसे कांग्रेस स्वयं कई सालों से पाल पोसकर बड़ी करती आयी है। आपस में लड़ने के लिए!

2013 विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस के पास इतने विधायक तो बचे नहीं थे कि ये सत्ता पक्ष के सामने मजबूती से खड़े हो पाते इसलिए इन्होने अपना दिल बहलाने के लिए आपस में लड़ना शुरू कर दिया। कांग्रेस के पास समय भी था और कारण भी। इसलिए ये पिछले पांच सालों में इतने लड़े कि लड़-लड़ के लड़ने में पक्के हो गए। अब इनको जब भी, जहां भी मौका मिलता है, भिड़ जाते हैं, मगर… आपस में। तो आशा है, अभी आगे भी और लड़ाई देखने को मिल सकती है। जिसका स्पष्ट प्रमाण इस रूप में मिला कि आज कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री पद के अलावा आज कोई और मंत्री पद की नहीं शपथ नहीं दिलायी गयी।

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आज तो जश्न की रात है। लेकिन बस आज की रात है, कल से तो वही सियापे हैं। अरे भई अभी तो मंत्रीमंडल बनना बाकी है। असली बन्दर-बांट तो अब होगी। कौन सा मंत्रालय किसको दिया जाये? कौन सा पद किसे? कौन सी ज़िम्मेदारी कौन संभालेगा? कौन सा विभाग कौन? कांग्रेस के लिए ये भी एक बड़ी जहमत भरी प्रक्रिया होगी। क्योंकि भले ही जनता को दिखने के लिए कांग्रेस एकता की बात और दिखावा करते हों लेकिन ये बात लोग अच्छी तरह जानते हैं कि आतंरिक रूप से कांग्रेस कईं धड़ों में बटी हुई है।

अशोक गहलोत, सचिन पायलट, सी. पी. जोशी, बी. डी. कल्ला, सबने अपने-अपने गुट बनाये हुए हैं। सबके पास अपने कुछ विधायक हैं, जो उनकी तरफदारी और दावेदारी दोनों पेश करने में कदम मिलाकर उनके साथ खड़े रहते हैं। इसलिए मुख्यमंत्री पद के लिए तो बाकि लोगों ने इसलिए भी ज़ोर आज़माइश नहीं कि ताकि मंत्रीमण्डल के लिए तो अपनी दावेदारी पेश कर सकें। अब चूंकि कमान, अशोक गहलोत और सचिन पायलट के हाथों में है, तो दोनों ही नेताओं की कोशिश रहेगी कि अपने विधायकों को ज्यादा से ज्यादा केबिनेट मिले। और गर जो किसी ने कुछ उल्टा-पुल्टा करने कि कोशिश की तो फिर बचे-कुचे विधायक संतरी बनकर उनके सामने खड़े हो जाएँ। कहेंगे कि भैया या तो हमें भी खिलाओ नहीं तो पोल खोल के रख देंगे तुम्हारी। वो तो रामेश्वर लाल डूडी, और गिरिजा व्यास के हार जाने से दो उम्मीदवार कम हो गए वरना वो भी तो मंत्रीपद के हिसाब से कम लायक थे क्या?

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जिस हिसाब से अभी तक का माहौल रहा है, उस हिसाब से तो लगता है, आने वाले पांच सालों में या तो कांग्रेस सरकार के कई ड्रामे देखने को मिलेंगे या फिर राज्य और जनता का भारी नुकसान होने वाला है। खैर जो भी हो अब जनता ने झाँसे में आकर कांग्रेस कि सरकार बना दी तो थोड़ा मजा भी तो मिलना चाहिए। मगर मजे से ज्यादा जरुरी है प्रदेश की तरक्की हो, विकास हो, शिक्षा हो, रोजगार हो, स्वास्थ्य हो तब होगी ना असली आनंद वाली बात।