जयपुर। अगले महीने से शुरू हुए लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने राजस्थान की 25 सीटों में से 19 पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। हालांकि इन प्रत्याशियों में कई नेता हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव हार कर आए हैं। वहीं कुछ प्रत्याशी अपने राजनीतिक रसूख के चलते टिकट पाने में कामयाब हो पाए हैं। आइए जानते हैं कांग्रेसी प्रत्याशियों का राजनीतिक करियर –

जोधपुर : वैभव गहलोत – कोई राजनीतिक अनुभव नहीं, मुख्यमंत्री के बेटे के अलावा कोई पहचान नहीं। ऊपर से दिग्गज नेता और केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुकाबला है।

जयपुर शहर : ज्योति खण्डेलवाल – एक असफल मेयर जिसका ना निगम ब्यूरोक्रेट्स से सामंजस्य रह पाया, ना ही अपनी पार्टी की सरकार के साथ।

सीकर : सुभाष महरिया – महरिया पूर्व में तीन बार सीकर से भाजपा के सांसद रहे हैं, जिन्होंने बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया था। वर्ष 2016 में उनके भतीजे ने शराब पीकर एक ऑटो रिक्शा पर गाड़ी चढ़ा दी थी, जिसके बाद उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। शेखावाटी में पकड़ अच्छी है लेकिन उनका मुकाबला हिंदुत्व के दिग्गज चेहरे स्वामी सुमेधानंद से है।

बाड़मेर : मानवेन्द्र सिंह – मानवेन्द्र सिंह पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह के पुत्र हैं। पार्टी से गतिरोध के चलते इन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन कर झालरापाटन से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ विधानसभा का चुनाव लड़ा था। लेकिन वहां बड़ें अंतर से हार के बाद वापस बाड़मेर लौट आए।

नागौर : ज्योति मिर्धा – 1971 से 1996 तक पांच बार नागौर से सांसद रहे नाथूराम मिर्धा की पौती है। कांग्रेस यहां रालोप से गठबंधन कर हनुमान बेनीवाल को मैदान में उतारने की तैयारी में थी। लेकिन ज्योति ने ना सिर्फ पार्टी पर दबाव बनाया, बल्कि कांग्रेस छोड़ने की धमकी देकर भाजपा के जावड़ेकर से मुलाकात भी कर ली। अब यहां त्रिकोणीय मुकाबला है।

दौसा : सविता मीना- सविता दौसा विधायक मुरारी लाल मीना की पत्नी है। हालांकि का कोई ज्यादा अनुभव नहीं है लेकिन पति की मुख्यमंत्री गहलोत से अच्छी पेठ के चलते टिकट पाने में सफल हो पाई है।

जालोर : रतन देवासी – एक बार विधायकी के अलावा राजनीति का कोई खास अनुभव नहीं है। हालांकि कांग्रेस देवासी को युवा चेहरा बताती है लेकिन देवासी युवाओं में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है।