Hanuman Beniwal

जयपुर। राजस्थान में प्रथम विधानसभा का गठन 31 मार्च 1952 को 160 सदस्यों वाले सदन के रूप में हुआ। इन 67 वर्षों में कई सरकारें बनीं, राज्यपाल के अभिभाषण हुए, विधानसभा में कई मुद्दों पर बहस हुई, विरोध-प्रदर्शन भी हुए लेकिन सदन की मर्यादाओं का ध्यान रखा गया। लेकिन इस बार विधानसभा का पहला सत्र ही हंगामे की भेंट चढ़ गया। हंगामा भी ऐसा कि राजस्थान के प्रथम नागरिक ‘राज्यपाल कल्याण सिंह’ तक पर अमर्यादित टिप्पणियां की गई। अभिभाषण के दौरान राज्यपाल के बुढ़ापे पर व्यंग्य कसते हुए उन्हें टाइम खराब करने के बजाय इलाज करवाने की सलाह तक दे दी गई। अपमान भी ऐसा कि राज्यपाल अपना अभिभाषण पूरा पढ़े बिना ही सदन से रवाना हो गए।

Hanuman Beniwal

बेनीवाल की बद्जुबानी से बदनाम हुआ सदन

विधानसभा में राज्यपाल से बदजुबानी करने वाला कोई और नहीं बल्कि खींवसर से नवनिर्वाचित विधायक हनुमान बेनीवाल थे। वो ही हनुमान बेनीवाल जिनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह बोतल था। वो ही हनुमान बेनीवाल जिनकी हरकतों से कुंठित उनकी परिवारिक सदस्य व भतीजी अनीता ने कहा था कि मेरा चाचा परिवार का नहीं हुआ तो समाज और जनता क्या होगा। वो ही हनुमान बेनीवाल जिनके कार्यकर्ताओं को खाना नहीं मिलने पर आयोजकों को सार्वजनिक रूप से गालियां दी गई और बाद में ऑडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गए थे। वो ही हनुमान बेनीवाल जो डरा-धमकाकर लोगों से पार्टी के लिए चंदा लेते हैं और फिर उन पैसों से चुनावों के दौरान हेलीकॉप्टर से यात्राएं करते हैं।

राज्यपाल के अपमान पर गहलोत-जोशी मौन

खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल जब सदन में राज्यपाल को अपमानित कर रहे थे तो भाजपा विधायक गुलाब चंद कटारिया के अलावा किसी भी सदस्य ने उनका विरोध नहीं किया। इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी मंद-मंद मुस्कराते दिखे तो वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मौन बने रहे। जब कटारिया बेनीवाल का विरोध कर रहे थे तो गहलोत ने उल्टा कटारिया पर ही छींटाकशी करनी शुरू कर दी। गहलोत ने तंज कसते हुए कहा कि कटारिया जी आपका ब्लड प्रेसर हाई हो जाता है, इसलिए सेहत का ध्यान रखो।

द्रोपदी के चीर हरण पर भीष्म पितामह-द्रोणाचार्य भी मौन थे

महाभारत का एक प्रसंग है। जुआ में पांडव जब कौरवों के हाथों राज-पाट व भाइयों सहित द्रोपदी को भी हार गए तो दुर्योधन ने पांडवों का अपमान करने के लिए भरी सभा में द्रोपदी का चीर-हरण करना शुरू कर दिया। हस्तिनापुर के महल में जब दुर्योधन द्रोपदी का चीर हरण कर रहा था तब भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य जैसे महारथी भी नारी के इस अपमान पर चुप बैठे थे। बाद में महाभारत के इन दोनों पात्रों का अंत कितना भयानक था उसके साक्षी भी हमारे ग्रंथ हैं। “पांचाली के चिर हरण पर जो चुप पाए जाते हैं, इतिहास के पन्नो में वो सब कायर कहलाते हैं”।