जयपुर। विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किसानों की सम्पूर्ण कर्जमाफी और बेरोजगारों को साढ़े तीन हजार रुपया मासिक भत्ता देने का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस अब इन मुद्दों पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान मंच से दिन गिनवाए थे। जनता को कहा कि आप सरकार बनते ही 1 से 10 तक दिन गिनना, हम 10 दिन के अन्दर किसानों का कर्जा माफ करेंगे।

सरकार बनी, दिन भी बीते

7 दिसंबर को राजस्थान में हुए चुनाव के चार दिन बाद 11 दिसंबर को आए नतीजों में जनता का झुकाव कांग्रेस की तरफ नजर आया। 17 दिसंबर को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पालयट ने शपथ ली। 23 दिसंबर को मंत्रिमंडल का गठन कर 24 दिसंबर को मंडल ने भी कार्यभार संभाल लिया। इस दौरान कांग्रेसी नेताओं ने घोषणा पत्र के वादे निभाने का आश्वासन तो खूब दिया लेकिन उन पर काम करना मुनासिब नहीं समझा। परिणाम के करीब डेढ़ महीना बीत जाने के बाद भी गहलोत सरकार के पास कर्जमाफी को लेकर कोई भी स्पष्ट विजन नहीं है। हां, मीडिया सवालों से बचने के लिए आनन-फानन में 2 लाख रुपये तक की कर्जमाफी का सरकारी आदेश जरूर निकाल दिया। कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस के दूसरे बड़े चुनावी दावे बेरोजगारी भत्ते का है। प्रदेश के युवा भत्ते के लिए सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं लेकिन मुख्यमंत्री गहलोत की चुप्पी से युवा मतदाता अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

सवर्ण आरक्षण बना गले की फांस

आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने का मामला भले ही केन्द्र से पूरी तरह साफ हो गया हो। लेकिन, देश के कुछ राज्यों में यह कानून अभी भी अधर में लटका हुआ ही दिख रहा है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद भाजपा शासित राज्य गुजरात, झारखंड व उत्तर प्रदेश में आरक्षण को लागू कर दिया गया है, वहीं हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में कानून प्रक्रियाधीन है। लेकिन कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अभी सरकारें इस पर निर्णय लेने के मूड में नहीं दिख रही है। हालांकि केंद्र की अधिसूचना के बाद राजस्थान में कैबिनेट की बैठक भी हो चुकी है, लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं हुई।