भविष्य में जब कभी भी एक स्वच्छ-स्वस्थ, विकसित-शिक्षित, सपन्न-प्रसन्न, उज्जवल भारत का इतिहास लिखा जायेगा। तो भले ही सबसे ऊपर नहीं मगर, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम ज़रूर लिखा जायेगा। क्योंकि वसुंधरा राजे ने 10 साल राजस्थान पर राज नहीं “सुराज” किया है। हिंदुस्तान की राजनीति में ऐसे नेताओं की संख्या बहुत कम है। जो बेदाग़ छवि और सकारात्मक नज़रिया रखते हैं।
वसुंधरा राजे भी उन चंद नेताओं में से एक हैं, जो इस सूचि में शामिल हैं। वरना आजकल की राजनीति का स्तर तो इतना गिर चुका है, कि लोग राजनेता और राजनीति दोनों को खुलेआम गाली देते हैं। मगर वसुंधरा राजे का व्यक्तित्व एक दम अलग है। राजस्थान और राजनीति के विकास में उनके योगदान तथा उनकी कार्यशैली के अनुसार तो अब उन्हें किसी राज्य की मुख्यमंत्री नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिंदुस्तान की प्रधानमंत्री होना चाहिए। क्योंकि की इस तरह की सकारात्मक, आशावादी, प्रगतिशील सोच तो किसी देश के पालक की ही हो सकती है। और उस पालक को देश का प्रधानमंत्री कहते हैं।
जनसेवा जिसकी परंपरा है, वो वसुंधरा है!
65 वर्षीय वसुंधरा राजे के राजनीतिक जीवन को एक शब्द में परिभाषित करेंगे तो वो शब्द होगा “सेवा भाव”। जिन्होंने अपने जीवन के प्रथम 31 सालों में आमजन की सेवा करने का सबक सीखा, वही वसुंधरा राजे अब 34 सालों से जनसेवा में आत्मसमर्पित हैं। राज परिवार से होने के बावज़ूद उन्होंने अपने आप को ज़मीन से जोड़कर, जनता की भलाई में लगाए रखा। वसुंधरा राजे की परवरिश ही ऐसे माहौल में हुई, जहां जनसेवा, देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण ही सर्वोपरि था। इन्हीं गुणों को राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने वसुंधरा राजे के मन और जीवन में बख़ूबी समाहित किया।
ये राजमाता विजयाराजे सिंधिया के दिए हुए संस्कार ही हैं, कि आज उनकी प्रतिछाया के रूप में वसुंधरा राजे ग़रीबों की सेवा और राष्ट्र हित के लिए सतत तत्पर हैं। धौलपुर राजघराने में शादी के बाद राजस्थान के साथ वसुंधरा राजे के संबंध और अधिक मधुर एवं प्रगाढ़ हुए। ये एक ऐसा बंधन बना, जो आज ना केवल पूरी मज़बूती से बंधा हुआ है, बल्कि दिन पर दिन और अधिक सुदृढ़ होता जा रहा है।
केंद्र से शुरू कर, फ़िर से केंद्र की ओर वसुंधरा
जैसा कि हमने ऊपर लिखा, कि वसुंधरा राजे के माता-पिता दूरदर्शी थे। ऐसे में वो भी इसी तरह की मानसिकता के साथ पली- बढ़ीं। जिसकी स्पष्ट झलक उनकी कार्य प्रणाली में देखी जा सकती है। जब ये पहली बार वर्ष 1985 में झालरापाटन विधानसभा जीत कर राजनीति में आयी थीं, उस वक़्त देश में कांग्रेस की सहानुभूति की लहर थी। उसके बाद वर्ष 1989 से वर्ष 2003 तक झालावाड़ से लोकसभा सदस्य रहीं। तब केंद्र सरकार ने भी उनके जनकल्याणकारी कार्यों से प्रभावित होकर वर्ष 1998 में उन्हें राज्यमंत्री के रूप में विदेश मंत्रालय का काम सौंपा।
तो राजे ने भी विभिन्न देशों की यात्रा कर भारत के साथ उन सभी देशों के संबंधों को मजबूती प्रदान की और उसके परिणाम स्वरुप देश में विदेशी व्यापार और रोज़गार दोनों बढ़े। वर्ष 1999 में पुनः संसाद बनने पर उन्हें प्रधानमंत्री के साथ, लघु उद्योग, कृषि एवं ग्रामीण उद्योग, डी.ओ.पी.टी (पर्सनल एंड ट्रैनिंग) डिपार्ट्मेंट ऑफ पेंशन एंड पेंशनर, वेलफेयर इन द मिनिस्ट्री ऑफ पर्सनल, पब्लिक ग्रीवैन्सेज़ एंड पेंशन्स, डिपार्ट्मेंट ऑफ एटमिक एनर्जी एंड डिपार्ट्मेंट ऑफ स्पेस की अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई। जिसे उन्होंने सम्पूर्ण लगन व मेहनत से बख़ूबी निभाया और आज भी वो ये माद्दा रखती हैं कि किसी भी प्रकार का उत्तरदायित्व वो उठा सकें।
राजस्थान में आकर वसुंधरा ने की सुराज की स्थापना
केंद्र में रहकर देश को अपनी सेवाएं देने के बाद वसुंधरा राजे ने अपने घर की ओर रूख़ किया। जिस प्रदेश की बहु बनकर वो आयी थीं, उस प्रदेश को भी तो संवारना था। पूरे प्रदेश को एक परिवार के रूप में स्थापित भी तो करना था। इसलिए वर्ष 2003 में वे पुनः राजस्थान लौटी और झालरापाटन विधानसभा सीट से जीत कर राजस्थान की बागड़ोर हाथ में ले अपने परिवार की ज़िम्मेदारी संभाली। ये समय राजस्थान के लिए भी बेहद ख़ास था, जब पहली बार किसी महिला मुख्यमंत्री ने प्रदेश की कमान संभाली थी। ये वो दौर था, जब प्रदेश की हालत बहुत ख़स्ता थी, चारों ओर अराजकता फैली हुई थी, राजस्थान बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ था। उस समय प्रदेश में कई समस्याएं थी, जिनमें गरीबी, कुपोषण, और भुखमरी प्रमुख थीं।
ऐसे विकट हालातों में श्रीमती राजे ने राज्य के विकास को एक चुनौती के रूप में लिया, और पांच साल अपने मंत्रीमण्डल के साथ मिलकर राज्य के समग्र विकास के लिए कड़ी तपस्या से विस्तृत योजनाओं का संचालन किया। प्रदेश को इन सभी समस्याओं से बाहर निकालने के लिए सबसे ज़रूरी था, सबको रोज़गार। राज्य सरकार ने इस दिशा में कार्य करते हुए, सर्वप्रथम बुनियादी आर्थिक ढांचा, मानव संसाधन विकास व क्षमता निर्माण को अधिक प्राथमिकता दी। वहीं प्रदेश को भी महिला मुख्यमंत्री होने का भरपूर फायदा मिला। वसुंधरा राजे ने एक माँ के रूप में पालन-पोषण कर पूरे प्रदेश को परिवार के रूप में खड़ा किया। उनके आने से महिला सशक्तिकरण को भी नयी दिशा मिली। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। राजे ने अपने आपको जनसेवा में इतना तल्लीन कर दिया कि प्रदेश को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
दूरदर्शिता व प्रगतिशील सोच रखने वाली हैं, वसुंधरा राजे
विरासत में मिली दूरदर्शिता व प्रगतिशील सोच ही उनकी प्रेरणा रहीं, जिनसे वे हमेशा जनकल्याण कार्यों के लिए स्वप्रेरित रहती हैं। उन्होंने बदलते समय का अध्यन किया और जाना कि भविष्य में देश-प्रदेश को किस दिशा में लेकर जाना है। इसलिए राजस्थान में अपनी पहली सरकार बनाने के साथ ही, उन्होंने अपनी सभी योजनाओं और नीतियों को व्यापक रूप दिया। एक-एक योजना को बड़ी गहराई से सोच-विचार करने के बाद ही क्रियान्वित किया। हर नीति को इस प्रकार से बनाया कि उससे सिर्फ़ और सिर्फ़ आमजन का भला हो, और किसी का नुक़सान ना हो। वे प्रदेश को एकता के सूत्र में बांधकर, पूरी जनता व 36 के 36 कौम को एक साथ लेकर चलीं।
उनकी योजनाएं आज भी इतनी प्रवाभशाली हैं, उनके असर से आम जन का जीवन स्तर ना केवल बेहतर हो रहा है, बल्कि उनकी योजनाओं के परिणाम को देखकर विश्वस्तरीय आलोचकों ने भी उनकी प्रसंशा की है। वसुंधरा राजे की ज़्यादातर योजनाएं विश्वस्तरीय ही हैं। राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री ने अपने कार्यकाल में ही बिजली क्षेत्र का विकास, ग़रीबी उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण, कृषि विकास को मज़बूती और राज्य के सम्पूर्ण विकास को एक सकारात्मक दिशा प्रदान की। उनकी विश्वव्यापी योजनाओं में कईं योजनाएं ऐसी भी हैं, जिनके नक़्शे क़दम पर आज पूरा देश चल रहा है। केंद्र सरकार भी वसुंधरा राजे की योजनाओं को सम्पूर्ण भारतवर्ष में वृहद रूप से लागू कर, उनकी जनकल्याणकारी, राजनीतिक सोच के आगे नतमस्तक हुई है।
वसुंधरा राजे की वो योजनाएं जिन्हें केंद्र सरकार से पहले राजस्थान सरकार ने चलाया
- भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना बनी आयुष्मान भारत योजना।
- राजस्थान मिशन ऑन लाइव्लीहुड बनी स्किल इंडिया योजना।
- राजस्थान नालेज कॉर्पोरेशन योजना बनी डिज़िटल इंडिया योजना।
- मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना बन रही है प्रधानमंत्री जल स्वावलम्बन योजना।
- गोपालन विभाग योजना बनी राष्ट्रीय कामधेनु आयोग व राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना।
और ऐसी कई योजनाएं हैं, जिनकी बात करते-करते शाम हो जायगी। इसलिए हम वेबसाइट का लिंक दे रहे हैं, आप ख़ुद सत्यता की जांच कर लीजिये। हालांकि राजस्थान में सरकार बदलने के बाद सरकार ने वेबसाइट पर मुख्यमंत्री का नाम और फ़ोटो बदल दिए हों, लेकिन फ़िर भी क्या फ़र्क पड़ता है, जो जिसका है, वो हमेशा उसी का रहेगा ना।
विरोधी भी करते हैं वसुंधरा की तारीफ़
राजनीति में ऐसे मौक़े बहुत कम आते हैं, जब कोई दूसरा राजनेता अपने विरोधी, विपक्षी, या प्रतिद्वंदी की तारीफ़ करे। लेकिन कहते हैं ना कि जिसका मन अच्छा होता है, उसको सब कुछ अच्छा-अच्छा दिखाई देता है, और वो काम भी अच्छे ही करता है। हिंदुस्तान की राजनीति में ऐसी दो ही शख़्सियतें हुई हैं। एक तो अटल भारत के अटल प्रधानमंत्री, स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, और दूसरी, राजपूताना की शान कहे जाने वाले राजस्थान की राजे, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे। वो अटल जी ही थे, जो संसद में विपक्षियों को मुंह तोड़ जवाब देते थे और विपक्षी भी नाराज़ होने के बजाय तहेदिल से करतल ध्वनि के साथ उनकी निति और फैसलों को सम्मान देते थे।
श्रीमती वसुंधरा राजे की भी आज वही अहमियत है, कोई प्रतिद्वंदी हो, विपक्षी हो या आलाकमान, सब उनकी रणनीतियों और योजनाओं के क़ायल हैं। अभी हाल ही में नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार के नेता और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष श्रीमान सी. पी. जोशी ने राजधानी जयपुर के एक कार्यक्रम में वसुंधरा राजे की जमकर तारीफ़ करते हुए कहा…
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जी की कार्य क्षमता और जनकल्याणकारी नीतियों से ना केवल वर्तमान राजस्थान सरकार बल्कि अन्य राज्य सरकारों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए जो विकास कार्य किये हैं, वो आने वाले कई सालों तक मानव कल्याण में अतुलनीय योगदान देंगे।
वसुंधरा प्रधानमंत्री बनेंगी तो क्या होगा
वसुंधरा राजे के अब तक के राजनैतिक कार्यों और सेवा भाव की प्रवर्ति को देखा जाये तो, उनके प्रधानमंत्री बनने से देश “दिन दोगुनी, रात चौगुनी” तरक्क़ी करेगा। जिसका उदाहरण उन्होंने राजस्थान का समग्र विकास कर के पहले ही दे दिया है। एक समय था, जब राजस्थान पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आता था। आज राजस्थान, देश के अग्रणी प्रदेशों की सूची में शामिल है और श्रेष्ठ से कुछ एक पायदान ही निचे होगा। इसलिए यदि वे देश की प्रधानमंत्री बनती हैं, तो देश विकास के नए आयाम छुएगा। यहां हम किसी से उनकी तुलना नहीं कर सकते। क्योंकि किसी व्यक्ति की कार्य क्षमता काफ़ी हद तक स्वयं उसकी मानसिकता पर निर्भर करती है। फिर उससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता कि वो किस राजनीतिक पार्टी से जुड़ा है। विकासशील व्यक्ति हमेशा विकास ही करता है। जिसका सानिध्य पाकर आसपास की भू, भूमि, धरा, वसुंधरा सब गौरवान्वित होती है।
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