जयपुर। राजस्थान में हाल ही में क्षत्रिय युवा संघ का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। यह सम्मेलन राजपूत समाज द्वारा आयोजित किया गया था। राजपूत समाज से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र राठौड़, दीया कुमारी और प्रताप सिंह खाचरियावास ने इसमें हिस्सा लिया। राजपूत समाज के अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सतीश पूनिया सहित कई पार्टी के नेता शामिल हुए थे।भारतीय जनता पार्टी आरएसएस एजेंडे पर चलती है। लेकिन क्षत्रिय युवा संघ का जो सम्मेलन हुआ है इसकी विचारधारा राजनीतिक पार्टियों से बिल्कुल अलग थी। इस सम्मेलन के जरिए कई राजनीतिक नेता खुद को चमकाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। गजेंद्र शेखावत और सतीश पूनिया भी इसी पंक्ति में शामिल है। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गजेंद्र शेखावत और सतीश पूनिया कभी भी विकल्प नहीं हो सकते।
गजेंद्र सिंह सेंट्रल मिनिस्टर बन सकते है लेकिन विकल्प नहीं
गजेंद्र सिंह सेंट्रल मिनिस्टर बन सकते हैं। केंद्र में मंत्रालय लेना और दूसरी ओर पूरा स्टेट संभालना दोनों अलग-अलग है। वसुंधरा राजे को 10 साल का अनुभव है और वे 30 साल से राजस्थान की राजनीतिक में सक्रिय हैं। गजेंद्र सिंह आरएसएस के विश्वसनीय हो सकते हैं। राजे के मुकाबले गजेंद्र सिंह का राजनीति में बहुत कम अनुभव है। इस मामले में राजे से गजेंद्र बौने साबित होते है। राजस्थान में वसुंधरा राज्य का विकल्प किसी भी सूरत में नहीं हो सकते।
भैरोंसिंह शेखावत के बाद राजे ने बीजेपी को संभाला
भैरोंसिंह शेखावत के बाद वसुंधरा राजे ने जिस तरह राजस्थान में बीजेपी को संभाला है उस तरह कोई नहीं संभाल सकता। राजस्थान में भाजपा मतलब वसुंधरा राजे, वसुंधरा राज्य मतलब भाजपा। वसुंधरा राजे जमीन से जुड़ी हुई नेता हैं। उनकी आमजनता के बीच अच्छी पकड़ हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद जब भी वे कहीं जाती हैं तो लोग उनका भव्य स्वागत और सत्कार करते हैं। उनकी उनकी एक झलक पाने के लिए या उनसे एक बार मिलने के लिए भारी भीड़ इकट्ठी हो जाती हैं।
राजे के समय नहीं होती थी पार्टी में गुटबाजी
बीते 2 साल के दौरान राजस्थान में बीजेपी में गुटबाजी देखने को मिल रही है। जब वसुंधरा राजे कर्ताधर्ता और पार्टी अध्यक्ष थी, तब उस समय उनकी मर्जी के बिना बीजेपी में एक पत्ता भी नहीं हिलता था। उस दौरान कोई भी नेता खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं करता था, जो आज बीजेपी में देखने को मिल रहा है। सतीश पूनिया खुद को बीजेपी चेहरा घोषित कर चुके हैं। पूनिया के बाद राजेंद्र राठौड़ के बाद कई नेता और कार्यकर्ता ने खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया। इस प्रकार से राजस्थान बीजेपी में गुटबाजी की तस्वीर बनकर सामने उभर रही है। गुलाबचंद कटारिया, दीया कुमारी, गजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया यह सब गुटबाजी में शामिल है। वसुंधरा राजे के समय ऐसे गुटबाजी नहीं होती थी।
‘पोस्टरों में ना सही लोगों के दिलों में रहना चाहती हूं’
पाेस्टर पाॅलिटिक्स के जरिए बीजेपी में पोस्टर से कई बड़े नेता चेहरा चमकाने की सियासत में उतरे हुए है। लेकिन वसुंधरा राजे इस पर विश्वास नहीं करती हैंं। राजे ने कहा है कि वे पोस्टरों में नहीं जनता के दिलों में रहना चाहती हैं। बीजेपी कार्यालय में लगे पोस्टर से उनके फाेटाे हटने के सवाल पर ये जवाब दिया। उन्हाेंने बताया कि जब मैं सीएम थी तब जयपुर में जगह-जगह मेरे पोस्टर लगाए जाते थे, पर ज्योहि मेरी उन पर नजर पड़ती, मैं उन्हें तत्काल हटवाती थी, क्योंकि पोस्टर या कागजाें में नहीं,मैं जनता के दिलो पर राज करना चाहती हूं। जनता के दिलों में रहना चाहती हूं। किसी के जख्म और किसी के घाव पर मरहम लगाना चाहती हूं।
हर मोर्चे पर फेल गहलोत सरकार
प्रदेश में जब से कांग्रेस की सरकार बनी तब से जनता काफी दुखी और परेशान है। अशोक गहलोत सरकार में महिलाओं और बेटियों के खिलाफ लगातार अपधरा बढ़ते ही जा रहे है। बीते दो साल के दौरान राजस्थान अपराधिक घटनाओं में देश में पहले स्थान पर आ गया है। वहीं दूसरी ओर लोग महंगी से भी त्रस्त है। राजस्थान में सबसे महंगा पेट्रोल और डीजल बिक रहा है। इसके अलावा जनता को सरकार की कोई योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। वसुंधरा राजे सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर दिया गया है। वहीं कुछेक का नाम बदल दिया गया। इस प्रकार से गहलोत सरकार के फेल्योर से जनता को वसुंधरा राजे याद आ रही हैंं।