जयपुर। केंद्र सरकार ने हर साल की तरह इस साल भी स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग जारी कर दी है। इंदौर लगातार छठीं बार पहले पायदान पर बना हुआ है। जयपुर निगम ग्रेटर और हैरिटेज के 250 वार्डों में 730 करोड़ रुपए सफाई के नाम पर खर्च करने के बाद भी स्वच्छता सर्वेक्षण में टॉप-20 में अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं। जयपुर और इंदौर शहर दोनों में क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से ज्यादा बड़ा अंतर नहीं है। उसके अनुपात में संसाधन भी लगभग उतने ही हैं। पिछले 5 साल में टॉप 20 सबसे साफ शहरों में भी अपने को खड़ा नहीं कर सका। इंदौर में नगर निगम एक होने के बावजूद नंबर वन हैं। जयपुर में उलटा दो नगर निगम होने के बावजूद रैकिंग में बहुत पीछे है।
स्वच्छता सर्वेक्षण 2022: हैरिटेज 26वें और ग्रेटर 33वें स्थान
स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 के नतीजे जारी होने के साथ जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज अपनी टॉप 20 में भी जगह नहीं बना सका। स्वच्छता के मामले में इंदौर ने जीत का सिक्सर लगाया है। शहर से बेपटरी हो चुकी स्वच्छता की व्यवस्था का खामियाजा एक बार फिर शहर ने भुगता है। यहीं कारण रहा कि देशभर में नगर निगम हैरिटेज 26वें स्थान और ग्रेटर 33 वें स्थान पर आया।
कर्मचारी और अधिकारी नहीं निभा रहे है जिम्मेदारी
जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज में वर्तमान में लम्बी चौड़ी अधिकारियों-कर्मचारियों की फौज है। लेकिन स्थिति ये है कि शहर सफाई के मामले में आगे बढ़ने के बजाए पीछे जाता जा रहा है। जो शहर में 4 साल पहले तक ओपन कचरा डिपो फ्री हो गया था आज उस शहर में जगह-जगह फिर से ओपन कचरा डिपो दिखने लगे है और उन पर कचरे के ढेर सड़ रहे है। विशेषज्ञों की माने तो नगर निगम जयपुर के इस फैलियर के पीछे सबसे बड़ा कारण यहां हावी होती राजनीति है। इसके कारण न तो कर्मचारी-अधिकारी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे है और न जनप्रतिनिधि।
738 करोड़ होते हैं कचरा प्रबंध पर खर्च
इस बार भी रैकिंग में हेरिटेज निगम आगे रहा और ग्रेटर निगम फिर पीछे रह गया। जबकि दोनों नगर निगम कुल बजट का 43 फीसदी तो कचरा प्रबंधन पर ही खर्च कर देते हैं, यानि की दोनों शहरी सरकारों का बजट 1700 करोड़ रुपए है। इसमें से 738 करोड़ रुपए कचरा प्रबंधन पर खर्च होते हैं। ग्रेटर नगर निगम एक रुपए में से 45 पैसा और हेरिटेज निगम 41 पैसा खर्च करता है। इसके बाद भी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं, जिस गति से दोनों नगर निगम नम्बर एक की ओर बढ़ रहे हैं। वहां तक पहुंचने में हैरिटेज निगम को पांच वर्ष और ग्रेटर नगर निगम को 10 वर्ष लग जाएंगे।
8500 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों की फौज
जयपुर में इस फेलियरशिप के पीछे सबसे बड़ा कारण राजनैतिक हस्तक्षेप है। जयपुर में आज नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज में 8500 से ज्यादा सफाई कर्मचारी है। जबकि दोनों नगर निगम में हर साल डोर टू डोर समेत अन्य सफाई व्यवस्था पर 800 करोड़ रुपए बजट का प्रावधान है। उसके बाद हम फिसड्डी साबित हो रहे है। विशेषज्ञों की माने तो नगर निगम जयपुर शुरू से राजनीति का बड़ा केन्द्र बना हुआ है। यहां जयपुर का हर विधायक अपना हस्तक्षेप रखना चाहता है।
लोगों की शिकायतों का नहीं होता निवारण
लोगों की शिकायतों का समय पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। कॉल सेंटर्स पर जो शिकायतें आती है उनका निस्तारण नहीं होता, जिसके कारण लोगों में परेशान होते है। इस बार सिटीजन वॉइस स्वच्छता सर्वेक्षण टीम को फीडबैक दिया ही नहीं। लोगों ने सफाई सुधार में रूचि नहीं दिखाई। हेरिटेज को 70 फीसदी और ग्रेटर निगम को 60 फीसदी ही अंक ही मिल पाए।
प्रमुख शहर टॉप-100 में भी शामिल नहीं
राजस्थान के अन्य शहरों की बात करें तो कोटा, उदयपुर, अजमेर, जोधपुर जैसे शहर टॉप-100 में भी अपनी जगह नहीं बना पाए हैं। एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में देशभर में स्वच्छता के शिखर पर इंदौर छठी बार विराजमान है। एक लाख से कम आबादी वाले शहरों में महाराष्ट्र का पंचगनी पहले और छत्तीसगढ़ का पाटन दूसरे नंबर पर है।
कचरा कलेक्शन के लिए 685 से ज्यादा गाड़ियां, कब आती है पता नहीं
जयपुर के दोनों नगर निगम में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का कॉन्ट्रेक्ट पर है। यहां दोनों निगम में कुल 685 से ज्यादा गाड़ियां कलेक्शन के लिए लगी है। गाड़ियों की मॉनिटरिंग के लिए कोई इंटीग्रेटेड प्लान नहीं है। गाड़ी कब आती है, कहां जा रही है इसकी रियल टाइम मॉनिटिरंग का कोई मैकेनिज्म नहीं है। गाड़ियां अधिकारियों और ठेकेदार के कर्मचारी अपनी मर्जी से संचालित करते है। इस कारण यहां कई जगहों पर डोर टू डोर कचरा कलेक्शन की गाड़ियां 2-3 या 4 दिन के अंतराल में आती है।