शिल्प के सबसे बड़े उत्सव शिल्पग्राम उत्सव 2017 का आगाज उदयपुर जिले में गुरूवार से हो चुका है। 10 दिन तक चलने वाले शिल्पग्राम उत्सव के उद्घाटन के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम में कच्छ से असम तथा कश्मीर से कर्नाटक तक की कला शैलियों का रंग देखने को मिला। तीन नृत्यों के फ्यूजन में तीनों का अलग फ्लेवर देखने को मिला। कार्यक्रम की शुरूआत पूर्वोत्तर राज्य असम के ‘भोरताल’ से हुई। हाथों में मंजीरे लिये असमिया गीत पर कलाकारोें ने असम की लोक संस्कृति को दर्शाया। इसके बाद मणिपुर का ‘लाय हरोबा’ नृत्य में नर्तकों ने आपसी तारतम्य से प्रस्तुति केा रोचक बनाया।
इससे पहले गुरूवार को राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने ढोल बजाकर शिल्पग्राम उत्सव का उद्घाटन करते हुए कहा कि ‘शिल्पग्राम में आते ही गांव की संस्कृति का आभास होता है। यहां आये शिल्पकार अपने कलात्मक उत्पादों से हमारी कला और संस्कृति की पहचान बना रहे हैं।’ उन्होंने लोगों से यह अपील की कि जब भी इस मेले आयें तो यहां आये शिल्पकारों से उनकी बनाई कलात्मक वस्तु अवश्य खरीदें। इससे न केवल उनकी कला को बढ़ावा मिलेगा बल्कि कला और शिल्प के विकास को भी बल मिलेगा। इस मौके पर राज्पाल एवं समस्त अतिथियों ने जयपुर के तमाशा कलाकार एवं लोक नाट्य निर्देशक दिलीप भट्ट द्वारा जयपुर की तमाशा शैली पर आधारित पुस्तक ‘तमाशा’ का विमोचन किया।
शाम को शिल्पग्राम उत्सव 2017 में तीन अलग-अलग नृत्य शैलियों का फ्युज़न आयोजन की मोहक और लुभावनी प्रस्तुति बन सकी। इस प्रस्तुति में महाराष्ट्र का लावणी नृत्य, ऑडीशा का गोटीपुवा तथा कत्थक का सम्मिश्रण कलात्मक ढंग से किया गया जिसमें एक ओर लावणी में बजने वाली ‘नाल’ की लयकारी थी तो दूसरी ओर तबले की थिरकन। जयपुर के सौरभ भट्ट व उनके साथियों ने हास्य झलकी ‘ट्रेन’ से दर्शकों को हंसाया। कर्नाटक का पूजा कुनीथा कार्यक्रम की सुंदर प्रस्तुति बन सकी। जम्मू व कश्मीर से आये कलाकारों ने लोकप्रिय गीत ‘भुम्बरो भुम्बरो….’ पर ‘रौफ’ नृत्य से दर्शकों को अपनी संस्कृति से रूबरू करवाया। इस अवसर पर ही गुजरात के डांग आदिवासियों ने ‘डांग’ नृत्य में आकर्षक पिरामिड बनाये। इसके अलावा उद्घाटन समारोह में सिक्किम का ‘घाटू नृत्य’ तथा पश्चिम बंगाल का ‘डेडिया’ सराहनीय पेशकश रही।
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