आज वर्ल्ड हेरिटेज डे है। इस मौके पर सभी हेरिटेड या विरासतकालीन स्मारकों पर प्रवेश निशुल्क रहेगा। ऐसे में सैंकड़ों वर्ष पुराने इन ऐतिहासिक स्थलों पर घुमने का आज एक परफेक्ट डे है। बात करें राजस्थान के संदर्भ की तो यहां कई ऐसी हेरिटेज जगह हैं जहां वर्ल्ड हेरिटेज डे का लुफ्त उठाया जा सकता है। जयपुर के आमेर महल व अल्बर्ट हॉल म्यूजियम में तो नाइट ट्यूरिज्म का आनंद भी उठाया जा सकता है। राज्य सरकार की ओर से आज के दिन इन सभी जगहों पर प्रवेश पर कोई शुल्क नहीं होगा। हालांकि निजी सहभागिता वाली सुविधाओं पर शुल्क यथावत रहेगा।
वर्ल्ड हेरिटेज डे स्पेशल में हम बताने जा रहे हैं राजस्थान के उन ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल किया है। आइए जानते हैं इनके बारे में ….
आमेर किला, जयपुर
जयपुर, जिसे गुलाबी नगरी और भारत का पेरिस भी कहा जाता है। प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े के तौर पर बसे इस शहर में है आमेर किला। उंचे खड़े पहाड़ों पर बने इस किले का निर्माण कछवाहा वंश के शासन मानसिंह प्रथम ने 1592 में शुरू कराया था। खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद भी इस किले की प्राचीन इतनी मजबूत है कि हथगालों और तोप के गोलो का भी असर नहीं होता। कहा जाता है कि रियासतों के एकीकृत राजस्थान बनने तक कोई भी इस किले पर फतह नहीं पा सका। जयपुर शहर से 11 किमी दूर स्थित आमेर किला कच्छवाहा शासकों की राजधानी हुआ करता था। आमेर किला मुगलों और हिन्दूओं के वास्तुशिल्प का मिलाजुला और अद्वितीय नमूना है।
पहाड़ी पर बना यह महल टेढ़े मेढ़े रास्तों और दीवारों के बीच बने आमेर महल में जय मंदिर, शीश महल, सुख निवास और गणेश पोल देखने व घूमने के अच्छे स्थान हैं। यहां का जगत शिरोमणि मंदिर, देवी अम्बा मंदिर, नरसिंह मंदिर के अलावा शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों और छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ मोमबत्तियां जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से जगमग कर देता है।
चित्तौड़ का किला, चित्तौड़गढ़
शूरवीरों की धरती के नाम से मशहूर चित्तौड़गढ़ में स्थित चित्तौड़ का किला देश का सबसे भव्य और प्राचीन किला है। पहाड़ी की सबसे उंची चोटी पर बने इस किले के चारों ओर नहर बहती है जो आज भी वहीं विराजमान है। यहां पप्पा रावल के वंशजों ने राज किया है। रानी पद्मावती के जोहर की दास्तान का साक्षी चित्तौड़ का किला ही बना है।
पहाड़ी पर बने इस किले का घेरा 7 मील और 601 एकत्र में चित्तौड़ का किला फैला हुआ है। यहां का कण-कण देशप्रेम की लहर पैदा करता है। कालिका माता का मंदिर, कीर्ति स्तम्भ, जौहर स्थल, मीराबाई का मंदिर, फतह प्रकाश, मोती बाजार एवं पातालेश्वर मंदिर सहित कई स्थल यहां दर्शनीय हैं।
कुंभलगढ़ किला, राजसमन्द
राजसमन्द जिले में स्थित कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। इस किले को अजेयगढ़ भी कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना दुष्कर कार्य था। इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। यह दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे यह प्राकृतिक सुरक्षात्मक आधार पाकर अजेय रहा।
इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया। वहीं ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया। इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व सुद्रढ़ प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है।
गागरोन दुर्ग, झालावाड़
राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित यह किला चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है। यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसे बगैर नींव के तैयार किया गया है। गागरोन किले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था और 300 साल तक यहां खीची राजा रहे। यह उत्तरी भारत का एकमात्र ऐसा किला है जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है। इस कारण इसे जलदुर्ग के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एकमात्र ऐसा किला है जिसके तीन परकोटे हैं। सामान्यतया सभी किलो के दो ही परकोटे हैं।
किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर। किले के अंदर गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा महत्पवूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं।
जंतर मंतर, जयपुर
भारत की 5 वेधशालाओं में से जयपुर का जंतर मंतर एक है जो देश की सभी वेधशालाओं में सबसे बड़ी है। इसका निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने समय और अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए कराया था। चूंकि राजा सवाई जयसिंह खगोलशास्त्री भी थे, ऐसे में उन्होंने यह इमारत बनवाने में पूरे अनुभव का इस्तेमाल किया है। उन्होंने ही पूरे भारत में जयपुर सहित दिल्ली, मथुरा, वाराणसी और उज्जैन में भी वैधशालाएं बनवाई हैं।
जयपुर की यह रचना 19 वास्तु खगोलीय उपकरणों का एक परिसर है जिसका इस्तेमाल सूर्य के चारों ओर कक्षाओं की गणना, अध्ययन और शिक्षण के लिए आज भी किया जाता है। दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की सूर्यघड़ी भी यहां मौजूद है। इसे सम्राट यंत्र भी कहते हैं। आज भी इसकी समय की गणना सटीक है।
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