राजस्थान में पेड़ों की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने वाली अमृता देवी विश्नोई की प्रतिमा प्रदेश के हर जिला मुख्यालय पर लगाई जाएगी। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके आदेश दिए हैं। पर्यावरणविद बाबूलाल जाजू ने प्रधानमंत्री से स्वं.अमृता देवी विश्नोई की प्रतिमा को प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर लगाने की मांग की थी जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने स्वीकार कर आगे की कार्यवाही के आदेश दिए हैं। राजस्थान में 287 वर्ष पूर्व अमृता देवी विश्नोई ने जोधपुर के खेजड़ली गांव में पेड़ों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। अमृता देवी विश्नोई राजस्थान के चिपको आंदोलन की सूत्रधार रही थीं।
उन्हीं की याद में अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार भी दिया जाता है। यह पुरस्कार वन्यजीव सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया जाता है, जिसे वन्यजीव सुरक्षा के लिए अनुकरणीय साहस दिखाने या अनुकरणीय कार्य करने के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस पुरस्कार के तहत वन्यजीव सुरक्षा में शामिल व्यक्तियों/संगठनों को पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपये नकद की राशि प्रदान की जाती है।
कौन हैं अमृता देवी विश्नोई
सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह के आदेश पर महल बनाने के लिए खेजड़ली गांव में खेजड़ी के पेड़ काटने के आदेश दिए थे। यह 21 सितम्बर का दिन था जब वहां राज कर्मचारी पेड़ काटने आए तो 42 वर्षीय अमृता देवी और उनकी 3 पुत्रियां सहित उनके पति पेड़ से लिपट गए और पेड़ों को न काटने का निवेदन किया।
इस पर कर्मचारियों ने पेड़ सहित उनकी गर्दने धड़ों से अलग कर दी। गांव में खबर लगते ही विश्नोई समाज के लोग वहां पहुंचे और अमृता विश्नोई और उनके परिवार की तरह ही पेड़ों से लिपट गए। राज कर्मचारियों ने बिना कुछ देखे पेड़ काटने शुरू किए और 363 विश्नोईयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। आखिरकार राजा ने इस कत्लेआम को रूकवा दिया।
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