देश में बोनमेरो ट्रांसप्लांट एक अत्याधुनिक तकनीक है। हालांकि देश के सबसे बड़े हॉस्पिटल में भी बोनमेरो ट्रांसप्लांट किया जाता है लेकिन अब तक वहां केवल 3-4 ट्रांसप्लांट हुए हैं। इसके दूसरी ओर, जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज में 2017 के खत्म होने से पहले अब तक 50 बोनमैरो ट्रांसप्लांट हो चुके हैं, जो एक गर्व की बात है। बोनमेरो ट्रांसप्लांट के मामले में एसएमएस मेडिकल कॉलेज देश में नंबर-1 हॉस्पिटल बन गया है। 7 साल में हुए इन 50 ट्रांसप्लांट में हेप्लोडेंटिकल (हाफ मैच ट्रांसप्लांट) भी शामिल है, जो काफी जटिल माने जाते हैं और दुनिया के चुनिंदा इंस्टीटयूट्स में ही किए जाते हैं। 50वां ट्रांसप्लांट एसएमएस मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट का ही किया गया जो कि एप्लास्टी एनीमिया से जूझ रहा था। आपको यह भी बता दें कि पहला ट्रांसप्लांट ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट था। देश में एसएमएस पहला ऐसा मेडिकल कॉलेज है, जहां इतने अधिक ट्रांसप्लांट किए गए हैं।
आपको बता दें कि देश के कई मेडिकल कॉलेजों में तो अब तक भी बोनमेरो ट्रांसप्लांट शुरू ही नहीं हुए और जहां शुरू हो चुके हैं वहां भी अभी 3-4 ट्रांसप्लांट हुए हैं। 2009 में एसएमएस अस्पताल के कैंसर विभाग में बीएमटी स्पेशलिस्ट डॉ. संदीप जसूजा ने पहला बोनमेरो ट्रांसप्लांट किया गया। यह ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट था। इस तकनीक से अभी तक कुल 21 बोनमेरो और 22 एलोजेनिक ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। यहां तक की सबसे जटिल मानी जाने वाली हेप्लोडेंटिकल तकनीक से थैलीसीमिया और कैंसर के पेशेंट को पूरी तरह सही किया जा चुका है। अभी तक कुल 7 मरीजों का हाफ मैच बोनमेरो ट्रांसप्लांट किया गया है। यह तकनीक बीएमटी तकनीक का सबसे पहला चरण है।
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