राजस्थान, एक विकासशील प्रदेश। सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक सत्ता बदल गई। अब राजस्थान टीम के कप्तान बने अशोक गहलोत और उप कप्तान की कमान सौंपी सचिन पायलट को। लेकिन सत्ता बदलने के अगले ही दिन कुछ ऐसा होने लगा जिसकी किसी को आस न थी। लोगों के घरों से बिजली कटौती होने लगी। यह कटौती पूर्व निर्धारित न होकर आंशिंक रही। मतलब कभी भी किसी भी समय बिजली कटौती होनी शुरू हो गई। सुबह 6 से 8, 10 से 2, शाम 4 से 6 और कभी-कभी रात में भी। हालांकि जनता से पहले से अच्छे की चाह में सत्ताधारी वसुन्धरा राजे सरकार को पलट राजस्थान की गद्दी पर गहलोत सरकार को बिठाया लेकिन यह तो बिलकुल उलटा ही हो गया। गांव में तो छोड़िए, शहरों तक में बिजली कटौती शुरू हो गई है लेकिन उसके बाद भी बिलों में किसी भी तरह की कोई कटौती नहीं। उपर से बिजली बिल भी हर महीने गले पड़ गया है। वहीं पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय में किसानों को 16 घंटों से ज्यादा बिजली दी जा रही थी और शहरों में 24 घंटे। किसी विशेष कार्यक्रम पर ही बिजली कटौती की जाती थी और वह भी ज्यादा से ज्यादा दो घंटे प्रतिदिन।
पिछली दिवाली की ही बात करें तो पूरी दीपावली पर एक घंटे की बिजली कटौती नहीं हुई लेकिन यहां तो सरकार बने एक महीना पूरा हुआ है और बिजली की मार शुरू हो गई। मौसम में ठंड है, ऐसे में घरों का काम तो फिर भी चल जाता है लेकिन खेतों में गेहूं की फसल आधी खड़ी है। बिना बिजली के कैसे सिंचाई हो। महीनेभर बाद गर्मियां शुरू हो जाएगी। उस समय इसी तरह बिजली कट हुई तो गृहणियों और बच्चों का क्या हाल होगा। ठीक वैसा ही होगा जो कांग्रेस के पिछले कार्यकालों में होता आया है। यह अहसास कोई नया तो नहीं है।
जनता जनार्दन से ही पूछा तो जवाब आया कि पहले तो इतनी बिजली कभी नहीं कटती थी पर जब से गहलोतजी आए हैं, लाइट भी पहुंच से दूर होती दिख रही है। अर्जी लगाकर पैर थक गए हैं लेकिन सुनता कोई नहीं। अब राजस्थान में कांग्रेस सरकार है भई, इतना तो झेलना ही पड़ेगा। अगर कटौती नहीं होगी तो व्यवसायी मित्रों को अतिरिक्त बिजली कहां से मिलेगी। अब एक के फायदे के लिए दूसरे को नुकसान तो पहुंचाना पड़ेगा न। अगर ऐसा न किया तो पार्टी फंड में मोटा चंदा कहां से गिरेगा।