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प्रियंका गांधी
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प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव के साथ पूर्वी उत्तरप्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। तय योजना के मुताबिक प्रियंका अब सोनिया गांधी की जगह रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ सकती हैं। अब राहुल गांधी के इस कदम के चलते कांग्रेस पार्टी पूरे देश में जीत का सपना देख रही है। हाल ही में जयपुर में हुए लिटरेचर फेस्टिवल में राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने इस फैसले का स्वागत करते हुए पूरा भारत जीतने की बात कही है। पायलट जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में ‘डेमोक्रेसी, फ्रीडम एंड द पॉलिटिकल प्रोसेस लुकिंग टू द फ्यूचर’ सत्र में बातचीत कर रहे थे। पायलट ने कहा, ‘अभी हमनें तीन राज्य जीते हैं और प्रियंका के आने पर हम पूरे भारत में जीतेंगे। विपक्ष को इस कदम का स्वागत करना चाहिए कि उन्हें अब यूपी में कड़ी टक्कर मिलेगी।’

खैर, कांग्रेस कुछ भी कह सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है। कांग्रेस की योजना मुताबिक बात करें तो राहुल गांधी चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को उनके घर में ही घेरा जाए। यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं और उनमें से 33 सीटों पर प्रभारी होने के नाते प्रियंका की नजर होगी। मोदी की सीट वाराणसी सहित योगी के गढ़ गोरखपुर, सपा सीट आजमगढ़, यह सभी सीटें प्रियंका के कार्य क्षेत्र में होंगी। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जगह देखते हैं।

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अब बात यह है कि प्रियंका अभी तक सक्रिय तौर पर राजनीति से जुड़ी हुई नहीं हैं। हालांकि यह बात सही है कि उन्होंने 16 साल की आयु में अपना पहला सियासी भाषण दिया था और वायरल हो गई थीं लेकिन यह बात 31 साल पुरानी है। राहुल गांधी भी 38 साल की आयु में राजनीति में आए थे लेकिन 48 पार करने के बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आया और ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं। ऐसा ही कुछ प्रियंका के साथ भी हो सकता है।

खैर, छोटी बहिन के राजनीति में आने के बाद राहुल बाबा का विश्वास 7वें आसमां पर होगा लेकिन अनुभव की कमी यहां भी निश्चित तौर पर भारी पड़ेगी। एक तरफ 25-25 वर्षों का राजनीति अनुभव और दूसरी तरह केवल एकआद भाषण, अंतर साफ तौर पर दिखता है। सोनिया गांधी ने अकेले अपने दम पर पार्टी को करीब 20 साल तक संभाला है और बीतते समय ने उन्हें अनुभव सीखाया है लेकिन प्रियंका अभी नई नई हैं। अपने भाई राहुल की तरह कहीं दबाव में वहीं गलतियां न हो जाए जिनकी वजह से राहुल गांधी राजनीति में विपक्ष की नोंक पर नहीं बल्कि अन्य की हंसी का केन्द्र बिंदू बने रहते हैं।

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