राजस्थान सरकार आज से प्रदेश के सभी जिलों में कर्जमाफी कैंप लगाने जा रही है। इसमें किसानों को कर्जमाफी के सर्टिफिकेट बांटे जा रहे हैं। सरकार तो दावा यही कर रही है कि तीन दिवसीय इन शिविरों में कोआॅपरेटिव बैंकों के 24 लाख किसानों का 9500 करोड़ रुपए का कर्ज माफ करने के प्रमाण पत्र वितरित किए जाने वाले हैं। लेकिन इस कर्ज माफी के लिए पैसा कहां से आएगा, इसका खुलासा नहीं हुआ है। सरकार सत्ता में आने के बाद से ही चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है कि सरकार के उपर 25 करोड़ का कर्जा छोड़ा गया है। अगर इस को एक बार सच भी मान लिया जाए तो भी अभी तक न तो सरकार ने कर्जमाफी के लिए कोई लोन लिया है और न ही कर्जमाफी के पेटे बैंकों को किसी तरह की राशि का भुगतान किया गया है। ऐसे में बिना पैसों की यह कर्जमाफी का राज तो केवल कांग्रेस ही बता सकती है। राजस्थान सरकार ने इस कार्यक्रम को राजस्थान कृषक ऋण माफी योजना-2019 का नाम दिया है। ऋणमाफी 30 नवम्बर, 2018 तक कर्ज लेने वालों को ही दी जाएगा। उन सभी का 2 लाख रुपए तक का फसली कर्ज माफ किया जाएगा।
हालांकि सत्ता संभालने के तुरंत बाद कर्जमाफी की राशि 18 हजार करोड़ रुपए बताई जा रही थी लेकिन कांग्रेस सरकार ने एक बड़ा गेम खेलते हुए पूर्व मंत्री, विधायक-सांसद व सरकारी कर्मचारियों सहित अन्य 12 श्रेणियों के किसानों को कर्जमाफी के दायरे से बाहर कर दिया है। ऐसे में करीब 4 लाख किसान कर्जमाफी के दायरे से पहले ही बाहर हो गए हैं। शेष रहे 20 लाख किसानों का भी एक ही बैंक का कर्जा माफ किया जाएगा। भले ही उन्होंने कई जगहों से फसली ऋण ले रखा हो। इसके अलावा, स्टेट सेक्टर बैंकों के कर्जदाताओं को भी किसी भी प्रकार की कर्जमाफी देने की सीमा से बाहर कर दिया गया है जबकि इससे पहले स्टेट सेक्टर बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों को कर्जमाफी के दायरे में शामिल किया गया है। ऐसे में कर्जमाफी की रकम घटकर आधी यानि साढ़े नौ हजार करोड़ रुपए रह गई है। अब सरकार करोड़ों रुपए बचा तो जाएगी लेकिन वह भी आएगा कहां से, अभी भी सवाल खड़ा वहीं है।
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एक गौर करने वाली बात यह भी है कि कर्जमाफी के दायरे में उन लघु एवं सीमांत किसानों को भी शामिल किया गया है जिनके 50 हजार रुपए तक का कर्ज पिछली भाजपा सरकार ने पहले ही माफ कर दिया था। ऐसे में यह राशि और भी होगी, यह निश्चित है।