राजस्थान विधानसभा चुनावों के बाद अब बारी है लोकसभा चुनावों की। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने बसपा और एलाइंस के जरिए सरकार तो बना ली लेकिन इसके बाद भी पूर्ण बहुमत से दूर रह गए। रामगढ़ के चुनावी परिणाम के बाद भी कांग्रेस का यह सपना, सपना ही रह गया। यहां कांग्रेस के सिपेसालार व सेनापति राहुल गांधी ने पूर्ण कर्जमाफी का झांसा देकर भोलीभाली जनता को मुर्ख बना दिया। यह वायदा अभी पूरा भी न हुआ था कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सत्ता आने पर गरीबों को मिनिमम इनकम देने की बात कह दी। जब लगा कि अभी भी भाजपा केन्द्र में हावी है और राजस्थान की जनता का मत अभी भी पार्टी उपाध्यक्ष वसुन्धरा राजे और बीजेपी के साथ है तो प्रदेश सरकार ने भी 3 अन्य योजनाओं को लागू करने की बात पर मुहर लगाने की बात कही है।
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दरअसल प्रदेश सरकार दिव्यांगों को एक फीसदी अधिक आरक्षण देने की बात कर रही है। अब 3 फीसदी की जगह 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। इसके साथ ही पूर्व सैनिक और उनके आश्रितों को 9 हजार रुपए की जगह 18 हजार और वीरांगनाओं को 4 हजार की जगह 8 हजार रुपए देने का प्रस्ताव तैयार कर रही है। मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास की अध्यक्षता में हुई सैनिक कल्याण विभाग की बैठक में यह निर्णय लिया गया है। एक अनुमान के अनुसार, प्रदेश में 1.60 लाख से अधिक पूर्व सैनिक और 1100 से अधिक वीरांगनाएं हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार के उपर करीब 145 करोड़ रुपए से अधिक का अतिरिक्त भार पड़ेगा। वहीं ज्यादा पुरानी बात नहीं है कि राज्य सरकार कल्याणकारी भामाशाह योजना को केवल इसलिए बंद कर रही है क्योंकि इस योजना से प्रदेश सरकार पर 1490 करोड़ रुपए का वित्तीय भार पड़ रहा है। यही नहीं, किसानों का केवल 2 लाख रुपए का फसली ऋण तक माफ करने का वायदा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह कर्ज माफ करने की गुहार लगाई जा रही है। यह तो बिलकुल ऐसा ही हो गया जैसे करे कोई और भरे कोई।
अब लोकसभा चुनावों को पास आते देख यह सब करना जरूरी भी तो हो गया है। राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं और पिछली बार लोकसभा चुनावों में सभी सीटें भाजपा के पाले में आ गई थी। उप चुनावों के बाद केवल 2 सीटें कांग्रेस को मिली जिनमें से अजमेर सांसद रघु शर्मा अब विधायक का चुनाव जीत प्रदेश में मंत्री बन चुके हैं। सचिन पायलट, शांति धारीवाल और सीपी जोशी सहित कई अन्य पूर्व सांसद भी इस समय विधायक कोटे पर मंत्री या अन्य जिम्मेदारियां निभाने में व्यस्त हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास कोई दमदार नेता नहीं रह गया है जो राजस्थान में लोकसभा सीटों पर हक जमा सके। इसलिए शायद कांग्रेस योजनाओं से जनता को सांझा दे आने वाले चुनावों की तैयारी कर रही हो।
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खैर, जो भी हो। हमारा तो राजस्थान कांग्रेस के मुखिया अशोक गहलोत और उनकी टीम के अन्य महार्थियों को यही कहना है कि आप नयी योजनाओं को प्रदेश में लॉन्च अवश्य करें लेकिन पुरानी योजनाओं और निर्णयों पर भी जरा गौर भरमाएं। कहीं ऐसा न हो जाए कि नया-नया करने के चक्कर में पुराने को जनता याद रखे और आपकी नैया लोकसभा चुनाव के भंवर में कहीं पूरी तरह डूब जाए।