गांवों में वर्षा का जल बहकर व्यर्थ होने की बजाय गांव के लोगों के ही पशुओं और खेतों के काम आए, इसी सोच के साथ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के हाथों 27 जनवरी, 2016 से ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान’ की शुरुआत की गई। बारिश के पानी की एक-एक बूंद को सहेजकर गांवों को जल आत्मनिर्भर बनाना इस अभियान का मूल उद्देश्य है। इस अभियान के तहत अगले 4 सालों में 21 हजार गांवों में जल संरक्षण के कार्य करवाकर पेयजल का स्थाई समाधान किया जाने की योजना है।
इस अभियान को 2 चरणों में बांटा गया है …
1. प्रथम चरण में अभियान के अन्तर्गत राज् की समस्त 295 पंचायत समितियों में 3 हजार 529 गांवों का चयन कर 27 जनवरी, 2016 से कार्यों का शुभारंभ किया गया है। इन गांवों में एक हजार 270 करोड़ रूपए का बजट व्यय कर 95 हजार कार्य पूर्ण कराए गए हैं। इस चरण में 11,170 मिलियन क्यूबिक फिट जल संग्रहित हुआ है जिससे करीब 41 लाख लोग और करीब 45 लाख पशुधन लाभान्वित हुए हैं। साथ ही जल संरचनाओं के आसपास 28 लाख पौधे भी लगाए गए हैं। इनके साथ 65,117 विभिन्न जल संग्रहण ढांचों का निर्माण कर 238 जल संग्रहण ढांचों का जीणोद्धार किया गया है। अभियान में बनी जल संरचनाओं से लम्बे समय के लिए पानी इकट्ठा हुआ है और गांव जल आत्मनिर्भर बने हैं।
2. 9 दिसम्बर, 2016 से शुरू हुए दूसरे चरण में 4 हज़ार 200 नए गांवों का चयन किया गया है। इस चरण में 66 शहरों (प्रत्येक ज़िले से 2) को भी अभियान में शामिल किया गया है। शहरी क्षेत्रों में पूर्व में निर्मित बावड़ियों, तालाबों, जोहडों आदि की मरम्मत का कार्य किया जायेगा। इस चरण में रूफ़ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के अलावा परकोलेशन टेंक भी बनाये जायेंगे। 2100 करोड़ रुपये की लागत से जल संरचनाओं में सुधार कार्य करवाए जाएंगे। आंकड़ों के मुताबिक 4 हजार 213 गावों में 1497 करोड़ रूप्ए व्यय कर एक लाख 27 हजार से अधिक कार्यों को पूरा किया गया है।
बारिश के बहते पानी को रोकने के लाभ –
– इसके तहत सतही स्त्रोतों में पानी जमा किया जा सकता है।
– भूजल का स्तर बढ़ाया जा सकता है।
– पानी के बहाव से मिट्टी की ऊपरी सतह के बहाव को रोका जा सकता है।
– मिट्टी की नमी और खेती की पैदावार में बढ़ोतरी की जा सकती है।