राजस्थान की मरुभूमि में पानी की कमी को दूर करने का पूरा श्रेय निश्चत तौर पर मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान को जाता है। 27 जनवरी, 2016 को मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के नेतृत्व में शुरू हुई इस योजना के चलते खास तौर पर गांवों में पीने व सिंचाई के लिए पानी की समस्या का निदान हुआ है। इस अभियान के 3 चरण अब तक पूरे हो चुके है। अब इसका अगला चौथा चरण सितम्बर में शुरू होने जा रहा है। अभियान के पहले चरण में 1270 करोड़ रुपये की लागत से करीब 94 हज़ार निर्माण कार्य पूरे किये गए। अभियान में बनी जल संरचनाओं से लम्बे समय के लिए पानी इकट्ठा हुआ है और गांव जल आत्मनिर्भर बने हैं।
इस संबंध में जानकारी देते हुए राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण के अध्यक्ष श्रीराम वेदिरे ने कहा कि मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के चौथे चरण का शुभारंभ सितम्बर से होगा। वह सचिवालय में विडियो कान्फ्रेन्स के जरिए जिला कलेक्टर्स को अभियान के चौथे चरण की तैयारियों के संबंध में निर्देश दे रहे थे।
खेती-पेयजल के लिए वरदान है, भूजल स्तर में हो रहा सुधार
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान ग्रामीण क्षेत्रों में खेती और पेयजल समस्या के निराकरण के लिए वरदान साबित हो रहा है। इस अभियान से न केवल ग्रामीण इलाकों में पीने की पानी की समस्या हल हुई है, साथ ही फसलों के लिए पानी का संकट भी पूरी तरह से खत्म हुआ है। इस अभियान के बाद कुंओं का जलस्तर भी ऊपर आ गया है। पशुओं के लिए भी उनके बाड़े के पास ही पानी उपलब्ध हो जाने से पशुपालकों को भी इसका फायदा मिला है। अब वर्षा का पानी बहकर बाहर जाने की बजाय गांवों के ही निवासियों, पशुओं और खेतों के काम आ रहा है। जल संरक्षण के प्रति बढ़ती जागरुकता और जैसे कार्यों के चलते प्रदेश के 21 जिलों में भूजल स्तर में सुधार हुआ है। योजना के बाद भूजल स्तर में 4.66 मीटर की बढ़ोतरी दर्ज हुई है जबकि 45 लाख पशुधन एवं 41 लाख ग्रामीण लाभान्वित हुए हैं।
एमजेएसए का उद्देश्य
प्रदेश में गांवों में लगातार गिरते भूजल लेवल को नियंत्रित करने और व्यर्थ बहते वर्षा के जल को रोकने के लिए मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान की शुरूआत की। योजना का मूल उद्देश्य बारिश के पानी की एक-एक बूंद को सहेजकर गांवों को जल आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाना है। अभियान के अन्तर्गत चयनित गांवों में पारंपरिक जल संरक्षण के तरीकों जैसे तालाब, कुंड, बावड़ियों, टांके आदि का मरम्मत कार्य एवं नई तकनीकों से एनिकट, टांके, मेड़बंदी आदि का निर्माण कर पौधारोपण भी शामिल है।
योजना का पहला चरण
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का पहला चरण 27 जनवरी, 2016 से 30 जून, 2016 तक चला जिसमें प्रदेश की 295 पंचायत समितियों के 3 हज़ार 529 गांवों का चयन किया गया। इन जल संरचनाओं के निकट 26.5 लाख से ज़्यादा पौधारोपण भी किया गया है। इन पौधों का अगले 5 सालों तक संरक्षण भी इस अभियान में शामिल है। इसमें भू-संरक्षण, पंचायतीराज, मनरेगा, कृषि, उद्यान, वन, जलदाय, जल संसाधन एवं भूजल ग्रहण आदि 9 राजकीय विभागों, सामाजिक धार्मिक समूहों एवं आमजन की भागीदारी सुनिश्चित की गई। अभियान के पहले चरण में 1270 करोड़ रुपए की लागत से करीब 94 हज़ार निर्माण कार्य पूरे हुए।
योजना का दूसरा चरण
अभियान का दूसरा चरण 9 दिसम्बर, 2016 से शुरू हुआ जिसमें 4 हज़ार 200 नए गांवों का चयन किया गया व 66 शहरों (प्रत्येक ज़िले से 2) को भी अभियान में शामिल किया गया। शहरी क्षेत्रों में पूर्व में निर्मित बावड़ियों, तालाबों, जोहडों आदि की मरम्मत का कार्य किया गया। इस चरण में रूफ़ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के अलावा परकोलेशन टेंक भी बनाये गए हैं। इस चरण में 2100 करोड़ रुपए की लागत से जल संरचनाओं में सुधार कार्य करवाए गए हैं।
योजना का तीसरा चरण
अभियान के तीसरे चरण की शुरूआत 9 दिसम्बर, 2017 से हो चुकी है जिसमें नए 4240 गांवों को शामिल किया गया है। इस अभियान के तहत आगामी वर्षों में राज्य के 21 हज़ार गांवों को लाभान्वित कर जल आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा है। योजना के थर्ड फेज में 60 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही चौथे व 5वें चरण की तैयारी शुरू हो गई है।
मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान से मिले लाभ
वैसे तो मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान से मिले लाभों को पूरी तरह बता पाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन सही मायनों में कहा जाए तो हजारों गांवों के ग्रामीणों को न केवल पानी का पानी नसीब हुआ है, अपितु सिंचाई की समस्या भी दूर हुई है।
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