जयपुर। मरुस्थली राज्य होने के कारण राजस्थान दशकों से पानी की समस्या से जूझ रहा है। आजादी के बाद जल संकट से निपटने के दावे कर प्रदेश में कई सरकारें बनीं तथा इस दिशा में कार्य भी किया। लेकिन राजस्थान में पानी की समस्या का स्थाई समाधान निकालना सपना मात्र ही रह गया। वर्ष 2004 में केन्द्र में बनी कांग्रेस सरकार ने बेरोजगारों को रोजगार देने तथा जल संरक्षण हेतु तालाब व बावड़ियों का निर्माण करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) का भी संचालन किया। लेकिन यह योजना भी बूंद-बूंद के लिए तरस रहे राजस्थान को जल की समस्या से निजात नहीं दिलवा पाई।
वसुंधरा सरकार ने शुरू किया मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान
राजस्थान में जल की आवश्यकता एवं उपलब्धता में भारी अंतर को ध्यान में रखते हुए वसुंधरा सरकार ने मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान की शुरुआत की। इस पहल के माध्यम से सरकार ने ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से पानी की एक-एक बूंद को सहेजकर राजस्थान को जल की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाना निर्धारित किया। अभियान के अन्तर्गत गांवों में पारंपरिक जल संरक्षण के तरीकों जैसे तालाब, कुंड, बावड़ियों, टांके आदि का मरम्मत कार्य एवं नई तकनीकों से एनिकट, टांके, मेड़बंदी आदि का निर्माण कार्य किया जा रहा है। अक्टूबर, 2018 तक के आंकड़ों की बात करें तो इस योजना के तहत 12 हजार 56 गांवों में करीब 5 हजार करोड़ रुपये खर्च कर 3 लाख 80 हजार कार्य पूर्ण किए जा चुके हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों की बात करें तो 162 शहरों व कस्बों में 105 करोड़ रुपये खर्च कर 2 हजार 600 से ज्यादा कार्य पूरे किये जा चुके हैं।
ब्रिक्स ने सराहा, कई देशों ने अपनाया
जल संकट के समाधान की दिशा में राजस्थान में जारी इस क्रांतिकारी अभियान को ब्रिक्स देशों ने सराहा है। वहीं दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, नामीबिया जैसे कई देशों ने वसुंधरा सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को अपनाया भी है। जल क्रांति के साथ वन क्रांति का रूप ले चुके इस अभियान के तहत प्रदेश में करीब 1.5 करोड़ पौधे लगाए गए हैं, जिससे चारों तरफ हरियाली फैल रही है। इससे गांवों में औसतन 4.66 फीट भूजल स्तर बढ़ गया है, 63 प्रतिशत हैंडपम्प में दोबारा पानी आ गया है, 20 प्रतिशत ट्यूबवैल दोबारा एक्टिव हो गए हैं तथा टैंकर आपूर्ति में करीब 56 प्रतिशत की कमी आई है।
Write by Om Kumawat