रणबांकुरों की धरती शेखावाटी का लाल शहीद मेजर पीरू सिंह शेखावत एक ऐसा नाम है जिसे हर कोई जानता है। मेजर पीरू सिंह ने न केवल राजस्थान का, बल्कि देश का नाम भी गर्व से ऊंचा किया। उनकी वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत साल 1952 में भारत के सर्वोच्च सैनिक सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
राजस्थान के प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर पीरू सिंह का जन्म झुंझुनूं के बेरी गांव में 20 मई, 1918 को हुआ था। 20 मई, 1936 को राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कम्पनी में पीरू सिंह भर्ती हुए। 18 जुलाई, 1948 को दारापारी युद्ध के दौरान कबालियों से लड़ते हुए हवलदार मेजर पीरूसिंह ने वीरगति प्राप्त की। झुंझुनूं में उनके नाम पर ‘पीरू सिंह शेखावत’ सर्किल भी है जहां लोग शेखावाटी के इस वीर सपूत को श्रद्धांजलि देने आते हैं।
यह पीरू सिंह की बहादुरी ही थी कि दारापारी युद्ध के दौरान उनकी पलटन के सभी साथियों के मारे जाने के बावजूद भी वे अकेले ही आगे बढ़ते चले जा रहे थे। खून से लहूलुहान होने पर भी पीरूसिंह हथगोलों से दुश्मनों का सफाया कर रहे थे। तब ही अचानक दुश्मन की एक गोली उनके माथे पर लगी और वो अंतिम सांस तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस समय उनकी माता श्रीमती तारावती को पत्र में लिखा था कि ‘देश हवलदार मेजर पीरू सिंह के मातृभूमि की सेवा में किए गए उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञ है।’
परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले हवलदार मेजर पीरूसिंह राजस्थान के पहले व भारत के दूसरे बहादुर सैनिक थे। पीरूसिंह के जीवन से प्रेरणा लेकर राजस्थान के हर बहादुर फौजी के दिल में हरदम यही तमन्ना रहती है कि वह मातृभूमि के लिए शहीद हो।
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