हिंदुस्तान की 17वीं लोकसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही। भारतीय आम चुनाव 2019 की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। चुनाव आयोग द्वारा चुनावों की तारीख़ों के ऐलान के साथ-साथ। तमाम राजनीतिक पार्टियों ने भी एक दूसरे के ख़िलाफ़ चुनावी जंग छेड़ दी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार इन बार के लोकसभा चुनाव। दुनिया के सबसे महंगे चुनाव होने वाले हैं। इस बार 2019 के आम चुनाव ख़र्च के मामले में। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को भी पछाड़ देंगे। कारनीज एंडोमेंट फोर इंटरनेशनल पीस थिंकटैंक के सीनियर फेलो। और दक्षिण एशिया कार्यक्रम के निदेशक मिलन वैष्णव के मुताबिक। 2019 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में 46,211 करोड़ रुपये ख़र्च हुए थे। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में सरकारी ख़र्च समेत। लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक ख़र्च अनुमानित है। मगर सोचने वाली बात ये है। इस ख़र्च की भरपाई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जनता ही करती है।
67 साल में 342 गुना बढ़ गया भारतीय आम चुनाव 2019 ख़र्च
मिलन वैष्णव के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में 35 हजार करोड़ रुपए से ज़्यादा ख़र्च हुए थे। 2019 के चुनाव में यह आंकड़ा करीब 70 हज़ार करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। लोकसभा चुनावों के साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव भी हैं। 2014 चुनावों से पहले प्रत्यासी के ख़र्च की सीमा 40 लाख रुपए थी। जिसे बढ़ाकर 70 लाख रुपए की गई थी। जबकि सिक्किम, अरुणाचल, गोवा जैसे राज्यों में यह 54 लाख रुपए थी। जबकि 1952 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर मात्र 10 करोड़ रुपए ही ख़र्च हुए थे। आईये आपको बताते हैं कि कब-कब भारतीय आम चुनाव में कितने रुपये ख़र्च किये गए।
चुनाव | ख़र्च (रुपये में) | चुनाव | ख़र्च (रुपये में) |
1952 | 10.45 | 1984 | 81.51 |
1957 | 5.9 | 1989 | 154.22 |
1962 | 7.32 | 1991 | 359.1 |
1967 | 10.8 | 1999 | 947.68 |
1971 | 11.61 | 2004 | 1113.88 |
1977 | 23.04 | 2009 | 1483 |
1980 | 54.77 | 2014 | 3426 |
अब 2019 के भारतीय आम चुनाव 2019 में लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का ख़र्च अनुमानित है। |
केंद्र, आयोग व पार्टियों ने जनता की सहूलियत के लिए कसी कमर
सभी पार्टियों ने चुनाव प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया है। भाजपा का लक्ष्य फिर से सत्ता पाने का है। वहीं विपक्षी दल भी मोदी सरकार को घेरते हुए। अपने चुनावी प्रचार कर रहे हैं। इस बार भारतीय चुनाव आयोग की नज़र भी काफ़ी तीखी है। आयोग टीवी, अख़बार और रेडियो के साथ-साथ सोशल मीडिया की भी निगरानी करेगा। जिसके लिए दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं। इसके साथ ही इस बार के भारतीय आम चुनाव 2019 में मतदाताओं की सहूलियत का ख़ास ध्यान रखा गया है।
जनता की सहूलियत लिए सुविधाएं
- पहचान पत्र के 11 विकल्प दिए गए हैं।
- 10 मार्च से चुनावी आचार संहिता लागू।
- मतदाता के पास नोटा का विकल्प होगा।
- इस बार 10 लाख मतदान केंद्र बनाये गए हैं।
- हर मतदान केंद्र पर वीवीपैट का इस्तेमाल होगा।
- रात दस से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर पर रोक।
- मतदाता 1950 पर डायल कर हर तरह की जानकारी ले सकेंगे।
कई ऐसी सुविधाएं भी हैं जो इस चुनाव में पहली बार होंगी।
- सोशल मीडिया पर निगरानी के दिशा निर्देश।
- ईवीएम की जीपीएस सिस्टम से ट्रैकिंग की जाएगी।
- ईवीएम में प्रत्याशी की तस्वीर पहली बार दिखाई देगी।
- प्रचार में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री पर रोक।
- सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए दलों-उम्मीदवारों को मंजूरी लेनी होगी।
सात चरणों में होंगे इस बार के भारतीय आम चुनाव
भारतीय चुनाव आयोग के अनुसार…
- पहले चरण में 20 राज्यों की 91 लोकसभा सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होगा।
- दूसरे चरण में 13 राज्यों की 97 लोकसभा सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान होगा।
- तीसरे चरण में 14 राज्यों की 115 लोकसभा सीटों पर 23 अप्रैल को मतदान होगा।
- चौथे चरण में नौ राज्यों की 71 लोकसभा सीटों पर 29 अप्रैल को मतदान होगा।
- पांचवें चरण में सात राज्यों की 51 लोकसभा सीटों पर छह मई को मतदान होगा।
- छठे चरण में सात राज्यों की 59 लोकसभा सीटों पर 12 मई को मतदान होगा।
- सातवें चरण में आठ राज्यों की 59 लोकसभा सीटों पर 19 मई को मतदान होगा।
- 23 मई को मतगणना के आधार पर चुनाव परिणाम घोषित किया जाएगा।
क्या है भारतीय आम चुनाव में बढ़ते ख़र्च की वजह
चुनावी विज्ञापन के साथ ब्रांडिंग पर ज्यादा ज़ोर देने की वजह से चुनाव में ख़र्च बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा प्रचार के तरीक़े भी बढ़ते जा रहे हैं। एन भास्कर राव के अनुसार। रैलियों में ज़्यादा भीड़ जुटाने, उनको खाना-पीना देने के लिए भी ख़र्चा करना पड़ता है। कॉरपोरेट फंडिग लोकसभा चुनाव के लिए धन का सबसे बड़ा स्रोत बनता जा रहा है सबसे ज्यादा धन खनन व सीमेंट उद्योगों से आने लगा है। बड़ी कंपनियां चुनाव के लिए अलग से फंड रखने लगी है। काला धन चुनाव में ख़र्च होता है। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब और मध्य प्रदेश में तो चुनाव के लिए करोड़ों रुपए का काला धन जब्त किया गया। औद्योगिक संगठन एसोचैम के महासचिव डीएस रावत का कहना है। अमेरिका की तरह चुनाव फंडिंग का प्रावधान हो जाए तो कंपनियां छिप-छिपाकर फंड नहीं देंगी और काला धन का इस्तेमाल रुकेगा।
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