आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। हिन्दी पत्रकारिता का सफर आज के दौर में अपने चरम पर है लेकिन इसका सफर 192 साल पहले का है। आज से ठीक 192 वर्ष पहले देश का पहला हिन्दी अखबार प्रकाशित हुआ था। इस हिन्दी अखबार का नाम उदन्त मार्तण्ड था जिसका प्रकाशन 30 मई, 1826 को कलकत्ता में शुरू हुआ था। उदन्त मार्तण्ड का अर्थ है – उगता हुआ सूरज। उदन्त मार्तण्ड साप्ताहिक पत्र था। इसके संपादक और प्रकाशक पंडित जुगलकिशोर शुक्ल थे। शुक्ल मूलतः कानपुर के रहने वाले थे।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर सभी पत्रकार बन्धुओं को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी है।
हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर सभी पत्रकार बन्धुओं को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। देश व समाज निर्माण में हिन्दी पत्रकारिता का अभूतपूर्व योगदान रहा है। pic.twitter.com/LbhEIcggVw
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) May 30, 2018
वैसे तो उदन्त मार्तण्ड एक हिन्दी साप्ताहिक अखबार था लेकिन यह खड़ी बोली और ब्रज भाषा में छपता था। इसकी लिपी देवनागरी थी। यह अखबार प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित होता था जिसकी 500 प्रतियां बाजार में बिकती थी। उदन्त मार्तण्ड में हिंदुस्तानियों के हित में साप्ताहिक लेख छापे जाते थे। लेकिन उदन्त मार्तण्ड के कुल 79 अंक ही निकल पाए। 19 दिसंबर, 1826 को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन आर्थिक अभाव की वजह से बंद हो गया।
हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत का श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है क्योंकि राजा राममोहन राय ने ही सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा और भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया। उनका 1816 में शुरू हुआ बंगाल गजट देश में भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र था। उन्होंने अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की और समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किए।
इसके बाद 1829 में राजाराम मोहन राय, द्वारिकानाथ ठाकुर और नीलरतन हाल्दार ने मिलकर ‘बंगदूत’ निकाला जो हिन्दी के अलावा बंगला व पर्शियन आदि में भी छपता था। बाद में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम से केवल तीन साल पहले यानि 1854 में श्याम सुंदर सेन द्वारा प्रकाशित व संपादित ‘समाचार सुधावर्षण’ ने हिन्दी पत्रकारिता की प्रतीक्षा का अंत तो किया। यह देश का पहला दैनिक अखबार था लेकिन यह पूर्णकालिन हिन्दी अखबार नहीं था। इसकी कुछ रिपोर्ट हिन्दी तो कुछ बंगाली में होती थी। यह दैनिक पत्र 1871 तक चलता रहा। इसके बाद हिन्दी पत्रकारिता की उपस्थिति नगण्य सी हो गई। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हिन्दी पत्रकारिता का फिर से एक बार बोलबाला आया और 1940 के बाद तो एकदम से हिन्दी भाषा के अखबारों का तूफान ही आ गया।
90 के दशक में भारतीय भाषाओं के अखबारों व हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अमर उजाला, दैनिक नवज्योति, राष्ट्रदूत व दैनिक जागरण स्थापित हो चुके थे लेकिन हालांकि हिन्दी पत्रकारिता का चरम समय देश में 1990 के बाद से आया। इस दौर में दैनिक भास्कर से बड़े ग्रुप ने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश करते हुए इस केटेगिरी को व्यवसाय के तौर पर स्थापित किया। भास्कर पहला अखबार था जिसे कलर प्रिंट में उतारा गया था।
आरएनआई की 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 32,793 हिन्दी अखबार व पत्रिकाएं रजिस्ट्रर्ड हैं जिनकी प्रतिदिन 32,92,04,841 कॉपी प्रिंट हो रही हैं। यही नहीं, आईटी इंडस्ट्री का एक आंकड़ा बताता है कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं में नेट पर पढ़ने-लिखने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है।
हिन्दी पत्रकारिता के तेज सफर को इस बात से समझ सकते हैं कि 1990 में राष्ट्रीय पाठक सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती थी कि पांच अगुवा अखबारों में हिन्दी का केवल एक समाचार पत्र हुआ करता था। लेकिन 2010 के सर्वे के अनुसार सबसे अधिक पढ़े जाने वाले पांच अखबारों में शुरू के चार हिंदी के हैं। पिछले सर्वे ने साबित कर दिया कि हिन्दी पत्रकारिता कितनी तेजी से बढ़ रही है। मतलब साफ है। हिन्दी की आकांक्षाओं का यह विस्तार हिन्दी पत्रकारों के लिए आगे बढ़ने की एक अपार संभावना को जन्म देता है।
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