राज्य के आदिवासियों की आर्थिक उन्नति के लिए यह खबर अपने-आप में बड़े मायने रखती है। राज्य सरकार के वन विभाग की पहल से राज्य के वनवासियों और आदिवासियों द्वारा बनाये जाने वाले उत्पादों को अब ऑनलाइन बेचा जा रहा है। राजस्थान सरकार ने विभिन्न विभागों और संस्थाओं के द्वारा बनाये गये उत्पादों की बिक्री के लिए एक ई-बाज़ार वेब पोर्टल विकसित किया हुआ है। राजस्थान वन विभाग ने इस वेब पोर्टल से उदयपुर की वन सुरक्षा समितियों की ओर से बनाये जाने वाले प्राकृतिक उत्पादों को भी जोड़ा है।
पूर्णतः प्राकृतिक और देशी उत्पाद:
राज्य के आदिवासियों और वनवासियों द्वारा निर्मित ये उत्पाद पूरी तरह प्राकृतिक और देशी पद्दति पर आधारित है। इनके द्वारा निर्मित उत्पादों में ग्वारपाठा जेल, साबुन व अगरबत्ती शामिल है। अब धीरे-धीरे और अधिक उत्पाद भी पोर्टल पर बिक्री के लिए डाले जा रहे है। ये उत्पाद इन आदिवासी समूहों द्वारा परंपरागत रूप से बनाये जाते है। इनमे स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। वनों की औषधियों और पेड़-पौधों से बनाये गए ये उत्पाद पूरी तरह हानिरहित होते है। अगर इनके बनाये उत्पादों पर अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है, तो सरकार इन्हें बड़े पैमाने पर उत्पादन की ओर प्रोत्साहित करेगी।
10% की छूट पर उपलब्ध:
विभिन्न आदिवासी समूहों द्वारा निर्मित इन उत्पादों को अभी 10% की छूट पर बेचा जा रहा है। इस बिक्री से होने वाली पूरी कमाई इन आदिवासियों तक पहुँचाई जाएगी। फिलहाल सरकार इन उत्पादों की ओर उपभोक्ताओं का रुख़ जानने की कोशिश कर रही है। कोशिश सफल रहने पर इन क्षेत्रों में अधिक उत्पादन के लिए संयंत्र स्थापित किये जा सकते है।
राज्य सरकार की सहायता से आगे बढ़ा आदिवासी जनजीवन:
राजस्थान की वर्तमान सरकार के सहयोग से इस गुमनाम जनजाति को नया जीवन मिला है। राज्य के उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ ज़िलों में मुख्य रूप से निवास करने वाली इस जनजाति की आर्थिक उन्नति के लिए प्रदेश सरकार ने इन्हें नवाचार और आधुनिक निर्माण की और अग्रसर किया है। तेजी से बढ़ते प्रदेश में इन जनजाति आदिवासी समूहों का योगदान बढ़ाने के लिए इन्हे शिक्षा और रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही प्रदेश के डूंगरपुर ज़िलें को नवाचार की तरफ तेजी से आगे बढ़ने और सकारात्मक दिशा में काम करने के लिए केंद्र सरकार से पुरस्कृत किया गया था।