राजस्थान के किसान खेती में हर रोज नए प्रयोग कर उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। अब वो दिन नही है जब प्रदेश को सूखे धोरो, उडती रेत, और विरान बियाबान के तौर पर जाना जाता था। आज राजस्थान ने खेती में कई नए आयाम स्थापित किए हैं। प्रदेश के किसानों ने वो क्या हैं जो शायद कोई ओर करने की हिम्मत ना रखता हो। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे प्रदेश के किसानों की सहायता और सहयोग के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। मुख्यमंत्री राजे ने 2016 में प्रदेश के किसानों के लिए ग्लोबल राजस्थान एग्रीटेक मीट का आयोजन कर 50 हजार से ज्यादा किसानों को लाभांवित किया था। आज ग्राम का ही परिणाम है कि राजस्थान में भी सेब की खेती की जा रही है। अब राजस्थान धोरो, ऊंट, उजाड बियाबान नही बल्कि यहां के किसान और सेब के लिए पहचाना जाएगा।
गर्मी, सर्दी की चुनौतियों के बाद भी उग रही है सेब
राजस्थान में शेखावटी का मौसम सेब की खेती के अनुकूल नहीं है। यहां धूलभरी आंधियां, गर्मी में 45 डिग्री के पार पारा और सर्दियों में हाड़ कंपाकंपा देने वाली सर्दी। इन चुनौतियों के बाद भी यहां सेब उगाने का प्रयास किया जा रहा हैं। सब कुछ ठीक रहा तो इस बार सितम्बर में राजस्थान के सीकर की सेब खाने को मिल सकती है।
कई प्रयासों के बाद सीकर में मिल रही है सेब की खेती में सफलता
हिमाचल और कश्मीर की मुख्य उपज सेब की राजस्थान के सीकर में खेती का नवाचार बेरी गांव के किसान हरमन सिंह कर रहे है। वे नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से जुड़े हैं। सिंह बताते हैं कि राजस्थान की धरती पर सेब की खेती के प्रयास नए तो नहीं हैं, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। अब तीन साल बाद यह सफलता मिलने की उम्मीद है। बेरी गांव से पहले सेब की खेती का प्रयास जयपुर के दुर्गापुरा में भी किया गया। वहां सौ पौधे लगाए गए थे, लेकिन वे नष्ट हो गए। इसी तरह सीकर के ही दो अन्य जगहों पर भी यह प्रयास किया गया, लेकिन उनमें अंकुर नहीं फूट पाया। फिर बेरी में यह प्रयास किया गया। बेरी में इसमें सफलता मिलती नजर आ रही है। हरमन सिंह ने बताया कि राजस्थान में मुख्यमंत्री राजे के प्रयासों से किसानों के हित में किया गया ग्राम के आयोजन से उन्हे सेब की खेती करने में सफलता मिलती नजर आ रही हैं।
इन खास तरीकों को अपनाकर की जा रही है खेती
सेब की खेती करने के लिए सबसे जरूरी थी उसे गर्मी से बचान, इसके लिए पौधों की टहनियों की कटिंग खास तरह से की गई, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह अनार की अंब्रेला कटिंग की जाती है। जैविक खाद का उपयोग किया गया। ड्रिप सिंचाई तकनीक को छह माह तक अपनाया गया। जिसका परिणाम है कि हिमाचल और कश्मीर में बहुतायत में उगने वाली सेब रेगिस्तान में भी मिल सकेगी।