आजकल किसी टीचर का ट्रांसफ़र होता है तो बच्चे खुश होते हैं कि अच्छा हुए तो मास्साब चले गए बड़े है खड़ूस और रौबदार थे। अक़सर पढ़ाई कम और पिटाई ज़्यादा करते थे। लेकिन ऐसे समय में आज भी कुछ टीचर ऐसे हैं जो पूरी मेहनत और लगन से बच्चों का भविष्य उज्वल करने में लगे हैं।
एक जमाना था जब विद्यार्थी बोला करते थे…
गुरूर ब्रह्मा, गुरूर विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः
लेकिन अब टेक्नोलॉजी का ज़माना है। इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध है। ऐसे में नई पीढ़ी के स्टूडेंट्स भी टेक्निकल होते जा रहे हैं। अब वो बोलते हैं…
गुरूर व्हाट्सएप्प, गुरूर फेसबुक, गुरु देवो ट्विटराय, गुरु साक्षात परगूगलम तस्मै श्री इंटरनेटाय नमः
लेकिन एक टीचर ने गुरु-शिष्य की महिमा की वो मिसाल पेश की है जिसकी कल्पना आज के समय मे करना उतना ही कठिन है जितना कठिन ये मनना की भारत ने विश्व का सबसे सस्ता और किफ़ायती अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान-2 लांच किया।
पोस्टिंग के बाद पहली बार किया गया टीचर का ट्रांसफ़र
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का भगोली गांव है। एकदम दूर-दराज़ जहाँ पहुंचने के लिए ही काफी मसक्कत करनी पड़ती है। पैदल चलना पड़ता है नदी-नालों से गुजरना पड़ता है। भगोली गांव के एक सरकारी स्कूल में टीचर थे- आशीष डंगवाल। उन्हीं टीचर का ट्रांसफर हो गया। उत्तराखंड के ही टिहली जिले में ।जब आशीष सर के जाने का वक़्त आया, तो उन्हें विदा करने पूरा गांव आया। विदाई ऐसी की बच्चे तो बच्चे, गांव के बड़े-बूढ़े भी रो रहे थे। गांव की बूढ़ी औरतें आशीष को सीने से लगाकर रो रही थीं। आशीष को झोली भर भर आशीष दे रही थीं। ऐसा लग रहा था, अपने घर का बच्चा दूर जा रहा है। बच्चे यूं लिपटकर रो रहे थे जैसा वो अपने पक्के दोस्त के दूर जाने पर रोते हैं।
आशीष और गांव वालों की ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी फ़ैल गयी।जिन्हें कईं लोगों ने देखा। जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी देखा तो उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्होंने टीचर का ट्रांसफ़र होने के बाद उनसे मिलकर शॉल ओढ़ाकर सम्मान भी दिया।
Students and villagers bid emotional goodbye to school teacher in Uttarakhand,Villagers of seven villages and children in Uttarkashi’s Kersu valley couldn’t believe that their favourite teacher was going away. pic.twitter.com/MhIzZMPabI
— Mukul Adhikary (@MukulAdhikary5) August 24, 2019
चार साल से आशीष सर की पहली पोस्टिंग यहीं
आशीष सर रुद्रप्रयाग जिले के रहने वाले हैं। उनकी पहली पोस्टिंग उत्तरकाशी में थी। वो चार साल से यहां थे। वैसे तो देश मे सभी जगहों पर टीचर्स का सबसे बड़ा फोकस यही रहता है कि किसी दूर-दराज़ की दुरूह पोस्टिंग से बचना। तमाम तिकड़मों से किसी भी तरह टीचर ऐसी पोस्टिंग से बचने की कोशिश करते हैं। ऐसे में उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए ये बात कुछ अधिक महत्व रखती है। इस तरह के रिमोट गांव में रहने वाले बच्चे, उनके घरवाले स्कूली पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर काफी चिंता में रहते हैं। आशीष को इस दूर के गांव में नियुक्ति से कभी कोई शिकायत नहीं रही। वो पूरी मेहनत और लगन से बच्चों को पढ़ाते थे। बच्चों के मां-बाप भी आशीष को चाहते थे। पूरे गांव के लोगों के लिए वो किसी हीरो से कम नहीं थे।
गांव वाले कहते हैं, आशीष काफी मिलनसार हैं। छुट्टी के दिन तो वो गांव में किसी के भी खेत में चले जाते थे। वहां लोगों का हाथ बंटाते थे। खेती से जुडी कई जानकारियां देते। हर प्रकार की दिक्कत-परेशानी में गांववालों के साथ खड़े होते। उनकी सहायता करते। घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करते कि उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को महत्वता देनी चाहिए। वो लोगों को शिक्षा की अहमियत समझाते। आशीष सिर ने पूरे गांव को अपना परिवार बना लिया था। गांववालों को भी लगता की आशीष उनके अपने हैं, सगे हैं।
@TheEllenShow This is from India. A local govt. school teacher in the village of uttarkashi in Uttarakhand state got transfered after 3 years and students and parents are getting emotional. Just thot of sharing. #This_is_rare BTW #IamaEllenFan https://t.co/ZE3QTUB2ne
— Maitrey Salvi (@maitreysalvi) August 23, 2019
टीचर का ट्रांसफ़र हो जाने के बाद भी लोग उन्हें वीडियो कॉल करते हैं
ट्रांसफ़र के समय आशीष ने वादा किया था कि ये गांव हमेशा उनका घर रहेगा। वो हर तीन महीनों में गांव वालों से मिलने भी आया करेंगे। टीचर का ट्रांसफ़र होने के बाद आशीष को जो नई पोस्टिंग मिली है, वो भी ऐसे ही दुर्गम इलाके में है। मगर आशीष को इससे भी कोई शिकवा नहीं है। लेकिन हां, भगोली गांव के लोग चाहते हैं कि आशीष टीचर का ट्रांसफ़र फिर से उनके गांव में हो जाए। गांव के कई बुजुर्ग उन्हें विडियो कॉल भीकरते हैं। शायद उनका चेहरा देखकर बात करने को दिल करता होगा।