सबकी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी होंगी। जिनकी नहीं हुई वो कल सुबह तक भागदौड़ करके कर ही लेंगे। आख़िर हमारा स्वतंत्रता दिवस जो है, हम आज़ाद हुए थे इस दिन। और हमें पूरी आज़ादी है हम कुछ भी कर सकते हैं। कुछ भी…। है ना? कल हम 15 अगस्त ख़ूब ज़ोरदार तरीक़े से मनाएंगे। सड़कों पर गाड़ियां दौड़ाएंगे। शोर मचाएंगे, हल्ला करेंगे। इतना जोश दिखाएंगे की कुछ लोग तो अपने होश भी खो बैठेंगे। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, की हम इस तरह कि हरकतें करके साबित क्या करना चाहते हैं। अगर आप ये सोचते हैं की ये सब आप इसलिए करते हैं की आप देश भक्त हैं तो आप सरासर ग़लत हैं। क्योंकि इसे देश भक्ति नहीं दिखावा कहते हैं। और हम तो वो दिखावा भी ज्यादा देर तक नहीं कर पाते। दो-तीन घंटे हो हल्ला और दो-चार जगहों पर फ़ोकट का चाय-नाश्ता कर हम उसी तिरंगे को कहीं सड़क के किनारे फेंक कर चले जाते हैं। जिसकी शान के लिए इतना पाखंड कर रहे थे। इसे आज़ादी नहीं कह सकते और देशभक्ति तो बिल्कुल भी नहीं।
स्वतंत्रता दिवस यानि आज़ादी का जश्न मानते-मानते हम कुछ ज्यादा ही आज़ाद हो गए हैं। तभी तो आजकल कहीं भी, कोई भी, किसी का भी बलात्कार कर देता है, और फिर आराम से खुला घूमता है। क्योंकि हम आज़ाद है। कोई भी राह चलते किसी को भी लूट लेता है। और कोई कुछ नहीं कर पाता। क्योंकि वो आज़ाद है। हम जब चाहें, जहाँ चाहें भीड़ बनकर किसी की भी जान ले लेते हैं, क्योकि हम आज़ाद हैं। हम कभी गाय के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर आये दिन हुड़दंग करते रहते हैं, क्योकि हम आज़ाद हैं। हम कुछ चंद लोगों के बहकावे में आकर कभी हड़ताल करते हैं तो कभी भारत बंद करते हैं। क्योकि हम आज़ाद हैं।
जब सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में जरा भी कहीं चूक जाती है, तो सरकार निकम्मी है। लेकिन हम कभी देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझ ही नहीं पाते। हम दोष देते हैं सरकार को जब टमाटर 100 रुपये किलो बिकता है, लेकिन जब टमाटर 10 रुपये किलो होता है तो। हम सरकार को दोष देते हैं की बेरोज़गारी बहुत है, लेकिन क्या कभी उन लोगों ने सरकार के नाम पर एक भी धन्यवाद कहा, जिनकी सरकारी नौकरी लगती है। हम दोष देते हैं, सरकार को की शहर में गन्दगी बहुत होती है, लेकिन जब तक स्वच्छ भारत मिशन नहीं आया उससे पहले क्या हम आस-पास ऐसी सफाई रखते थे। बेशक़ हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं, लेकिन हमारे देश में अवसरों की भी कमी नहीं है। लेकिन हम कभी उन अवसरों को पहचान ही नहीं पाते।
आज हर बात को राजनीतिक से जोड़ दिया जाता है, और बात-बात पर सरकार को दोष दिया जाता है। बिजली नहीं आती तो सरकार को दोष, पानी नहीं आता तो सरकार को दोष, बरसात ज्यादा होती है, तो सरकार को दोष, बरसात नहीं होती है, तो सरकार को दोष। ये दोष, वो दोष। कभी खुद के अंदर झांककर देखा है की कितने दोष है। अगर आज़ादी का सही मतलब समझते हो तो आज़ादी का जश्न भले ही मनाओ या मत मनाओ। मगर हम सब देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझें और अपने कर्तव्यों को पूरी लगन और मेहनत से पूरा करें। डेढ़ सौ करोड़ की जनसंख्या वाला देश दस-बीस हज़ार लोगों की कोशिशों से महान नहीं बन सकता। अगर देश को विश्व गुरु बनाना है तो समस्त लोगों को एक साथ प्रयास करने होंगे।