जयपुर। राजस्थान में दो साल पहले बड़ा सियासी संकट पैदा हुआ था। इस संकट की वजह से कांग्रेस सरकार गिरने तक की नौबत आ गई थी। उस वक्त सचिन पायलट अपने कुछ साथी विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे। सरकार को 34 दिन होटलों में बिताने पड़े थे। उस सियासी भूचाल के अब दो साल पूरे हो चुके हैं। दो साल गुजरने के बावजूद गहलोत-पायलट खेमे के बीच की तल्खियां कम नहीं हुई है। हर बार उनके बयानों में मनमुटाव साफ झलकता है। ऊपरी तौर पर दावे सब कुछ ठीक होने के किए जाते हैं लेकिन हर बार इन दावों की कलई खुलकर सामने आ जाती है।
पायलट ने गंवाया कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री का पद
दो साल पहले सियासी संकट के बाद पायलट कांग्रेस में तो बने रहे लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम का पद उन्हें गंवाना पड़ा। अब दो साल बाद भी पायलट ना तो संगठन में ही कोई पद पा सके हैं और ना ही सत्ता में उनकी एंट्री हो पाई है। हालांकि उनके साथ जाकर मंत्री पद गंवाने वाले रमेश मीणा और विश्वेन्द्र सिंह फिर से गहलोत कैबिनेट में शामिल हो चुके हैं।
गहलोत-पायलट के बीच कुर्सी की लड़ाई जारी
साल 2020 के घाव अभी तक भरे नहीं हैं। बार-बार ये घाव कुरेदे जाते रहे हैं। आज भी गहलोत-पायलट के बीच कुर्सी की लड़ाई जारी है। पायलट अपने साथ गए विधायकों को मंत्रीमंडल और राजनीतिक नियुक्तियों में पद दिलवाने में कामयाब रहे लेकिन उनके खुद का हाथ अभी तक खाली हैं।
आगामी दिनों में कुछ बड़े उलटफेर की संभवना
पिछले दिनों राहुल गांधी ने पायलट के धैर्य की सराहना की थी लेकिन सियासी हलकों में चर्चा यही है कि आखिर इस धैर्य का सिला क्या मिलेगा? उधर इस दो साल के दौरान गहलोत परेशान भले ही रहे हों लेकिन सत्ता पर पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे। इसके साथ ही गहलोत सचिन पायलट खेमे के कई विधायकों को भी अपने करीब लाने में कामयाब रहे हैं। अब पार्टी की नजर मिशन 2023 पर है और आगामी दिनों में कुछ बड़े उलटफेर संभव है।