जयपुर। राजस्थान में चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी सांसदों के साथ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मीटिंग कर जीत का मंत्र दिया और रणनीति पर चर्चा की। मीटिंग में प्रदेश के सभी सांसद मौजूद रहे। इस मीटिंग में सबसे चौंकाने वाली बात थी प्रदेश की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की मौजूदगी। वैष्णव सांसद तो हैं, लेकिन ओडिशा से राज्यसभा के सांसद हैं। उधर, राजे वर्तमान में सांसद नहीं हैं। वसुंधरा राजे और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की मौजूदगी के सियासी जानकार अलग अलग सियासी मायने निकाले रहे है। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने के बाद राजस्थान को लेकर यह पहली मीटिंग थी, जिसमें वसुंधरा राजे मौजूद रहीं। क्या उन्हें फिर से कोई नई कमान सौंपने की तैयारी चल रही है।
वसुंधरा राजे को मीटिंग में क्यों बुलाया गया
राजस्थान के सांसदों के साथ खास मीटिंग में पीएम मोदी ने जो संवाद किया वो आगामी विधानसभा-लोकसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण रहेगा। पीएम मोदी ने इस मीटिंग में सांसद न होते हुए भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उनके राजनीतिक अनुभव का लाभ लेने के लिए बुलाया है। राजे राजस्थान की एक मात्र नेता है जो किसी लोकसभा क्षेत्र से पांच बार स्वयं सांसद रही हैं। वे केन्द्र में मंत्री रही हैं और दो बार प्रदेशाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री रही हैं। पांचवीं बार झालरापाटन से विधायक हैं। उनके संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रहे झालावाड़-बारां से वर्तमान में उनके पुत्र दुष्यंत सिंह लगातार चौथी बार सांसद हैं।
सबसे ज्यादा बड़े वोट बैंक पर राजे की अच्छी पकड़
राजे को पिछले साढ़े चार साल से कोई विशेष भूमिका नहीं दी हुई थी, लेकिन राजस्थान के चुनावों की गणित और समीकरण जानने वाली वे सबसे अनुभवी नेता हैं। राजस्थान में जो समुदाय सबसे ज्यादा बड़े वोट बैंक हैं, उनमें भी राजे की पकड़ मानी जाती है। हाल ही स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी तंज कसते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री बनने लायक चेहरा तो केवल राजे का है, बाकी नेता अभी तक खुद को तैयार भी नहीं कर पाए हैं।
राजे के अनुभव का लाभ उठाना चाहते हैं पीएम मोदी
पीएम मोदी प्रदेश की पूर्व सीएम राजे के इसी अनुभव का लाभ उठाना चाहते हैं। उन्हें इस मीटिंग में शामिल करने के राजनीतिक मायने भी यही है कि वे अब चुनावों तक भाजपा की हर रणनीति में मुख्य किरदार की तरह होंगी। पीएम मोदी द्वारा उन्हें वेटेज (महत्व) देने का मतलब इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि राजस्थान के चुनावों को मोदी स्वयं बहुत गंभीरता से ले रहे हैं।
कद्दावर नेताओं की पार्टी को जरूरत
राजे चूंकि दो बार प्रदेश की सीएम रही हैं और जब भी वे कोई सभा करती हैं तो भीड़ जुटाना उनके लिए कोई मुश्किल नहीं होता। ऐसे में राजस्थान भर में प्रचार करने के लिए मोदी के बाद कुछ और कद्दावर नेताओं की भी पार्टी को जरूरत है।
राजस्थान भाजपा में वसुंधरा का रहा है दबदबा
दो बार मुख्यमंत्री और दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहने की वजह से वसुंधरा की राजस्थान की राजनीति पर अच्छी पकड़ है। भाजपा में उनके समर्थकों की कमी भी नहीं हैं। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया से उनकी अदावत किसी से छिपी नहीं है। पूनिया को हटाने की एक वजह यह भी है कि वह सभी गुटों को एकजुट नहीं रख सके। अब प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी को जो जिम्मेदारी मिली है, उसमें पार्टी को एकजुट रखना अहम है।
गहलोत ने भी दी है राजे को चेहरा बनाने की चुनौती
सांसदों की बैठक में राजे की मौजूदगी यह भी संदेश देती है कि भाजपा एकजुट है। जो भी गुटबाजी थी और नाराजगी थी, उसे दूर कर लिया गया है। फोकस जीत पर है और वह किसी भी हालत में छिटकनी नहीं चाहिए। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही चुनौती दे डाली कि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाइए। इससे भी भाजपा खेमे में हलचल को बढ़ा दिया है।