कहते है ना। ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखो आय’ कहने का मतलब है-बहुत कम मेहनत के अच्छा परिणाम मिलना। लेकिन राजस्थान की राजनीति में तो बिना कुछ किए ही अच्छा परिणाम आ गया है। सिर्फ यही नहीं, पूर्ववर्ती वसुन्धरा सरकार के किए हुए कार्यों का क्रेडिट भी बिना कुछ किए वर्तमान गहलोत सरकार के खातों में जमा होने जा रहा है। अब क्या कर सकते हैं। इसके कहते हैं सत्ता का असर। असल में हुआ कुछ यूं कि पिछले साल जब राजे सरकार सत्ता में थी, तब एक लाख से अधिक किसानों का 50 हजार रुपए तक का ऋण माफ किया गया था। इस कार्य में राज्य सरकार के सिर पर करीब 8 हजार करोड़ रुपए का भार आया था। अब तक करीब आधे किसानों को कर्जमाफी के सर्टिफिकेट बांटे जा चुके हैं और करीब 25 हजार किसानों को दिए जाने शेष हैं। अब प्रदेश में सरकार आ चुकी है गहलोत साहब की।
उन्होंने निर्णय लिया है कि अब से जो कर्जमाफी के सर्टिफिकेट बांटे जाएंगे, उनपर तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की फोटो नहीं लगी होगी। उस समय जारी किए गए ऋणमाफी प्रमाण प्रत्रों में वसुन्धरा राजे का फोटो लगा था, लेकिन अब जारी होने वाले प्रमाण पत्र में वसुन्धरा राजे का फोटो नहीं होगा। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने समीक्षा मीटिंग के दौरान इस बदलाव को मंजूरी दी है।
इस फैसले के तहत, नए जारी प्रमाण पत्रों में न तो राजे की फोटो होगी, न अशोक गहलोत की और न ही किसी अन्य मंत्री की। अब यही से शुरू होती है असली राजनीति। अभी तक राजे की योजनानुसार 25 हजार किसानों का 171 करोड़ रुपए का ऋण माफ किया जाना है। अब उन सभी को नई राजस्थान सरकार द्वारा यह सर्टिफिकेट जारी किए जाने का आश्वासन हुआ है और शायद किए भी जाएंगे लेकिन नाम जाएगा नई गहलोत सरकार का, राजे का नहीं। मंत्री मेघवाल का यह भी कहना है कि हो सकता है कि केवल संदेश में सीएम और मंत्री का फोटो लग जाए। यानि कुल मिलाकर राजे सरकार के कर्जमाफी का क्रेडिट सीधे-सीधे कांग्रेस सरकार लेने की तैयारी में है।
दूसरी ओर, चुनावों से पहले अपने चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने किसानों को पूर्ण कर्ज माफी का आश्वासन दिया था। चुनाव जीतने के 5 दिन बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने मंच से कर्ज माफी की घोषणा तो जोरशोर से कर दी लेकिन शपथ ग्रहण के एक महीने से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी अभी तक कर्ज माफी दी नहीं गई है। कांग्रेस सरकार अब इस पर एक कमेटी का गठन कर समीक्षा के बाद कर्ज माफी देने का बोल पल्ला झाड़ रही है। इसी को कहते हैं ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखो आय’।
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