जयपुर। इस साल के अंत में राज्यों में चुनाव होना है, उसमें राजस्थान भी शामिल है। फिलहाल यहां अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार है। इस साल सबकी निगाहें राजस्थान के सियासी दंगल पर टिकी है। बड़े राज्यों में यही एक राज्य है जहां फिलहाल कांग्रेस की सरकार है। बीजेपी यहां सत्ता छीनने के मकसद से जोर-शोर से जुटी है। राजस्थान में पिछले 6 चुनाव से बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती है। ये सिलसिला 1993 से जारी है। 1993 से यहां कोई भी पार्टी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी है। परंपरा कायम रहने के हिसाब से देखें, तो सत्ता की दावेदारी बीजेपी की बन रही है। लेकिन राज्य में पार्टी की सबसे वरिष्ठ और कद्दावर नेता वसुंधरा राजे के बिना बीजेपी की राह मुश्किल है।
सीएम चेहरे में सबसे ऊपर वसुंधरा राजे का ही नाम
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा का बड़ा चेहरा हैं। भले ही पार्टी ने अभी तक किसी नेता का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित नहीं किया लेकिन भावी मुख्यमंत्री के दावेदारों में सबसे ऊपर वसुंधरा राजे का ही नाम है। राजस्थान में भाजपा की राजनीति वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द है। सब जानते हैं कि उन्हें नाराज करना पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है क्योंकि राजे पार्टी के सबसे लोकप्रिय चेहरे के रूप में विख्यात हैं।
प्रदेश में राजे का गजब का रुतबा
साल 2003 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री घोषित किया था। जब राजे दिल्ली से जयपुर आई तो उनका भव्य स्वागत किया गया। राज परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वे लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रही। राजे के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में परिवर्तन यात्राएं निकाली गई। इसका नतीजा यह रहा कि राजस्थान में भाजपा ने 120 सीटें जीती थी और बीजेपी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही। राजे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। उनके कार्यकाल में उनका इतना रुतबा रहा कि विधायक और अफसर तो क्या मंत्री भी उनके किसी निर्णय पर असहमत होने की हिम्मत नहीं कर पाते थे।
1985 के बाद राजे ने कभी कोई चुनाव नहीं हारा
वसुंधरा राजे ने अपने राजनैतिक जीवन का पहला चुनाव 1984 में मध्यप्रदेश के भिंड लोकसभा से लड़ा था, लेकन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उन दिनों देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभती का माहौल था। ऐसे में राजे चुनाव हार गई थी। अगले ही साल 1985 में पार्टी ने उन्हें धौलपुर से विधानसभा चुनाव का टिकट दिया तो राजे ने जीत दर्ज की। पार्टी के प्रति समर्पण के चलते 1989 के विधानसभा चुनावों में उन्हें झालावाड़ से लोकसभा सांसद के रूप में मैदान में उतारा। इस चुनाव में भी राजे ने जीत हासिल की। 1985 के बाद राजे ने कभी कोई चुनाव नहीं हारा।
राजे के नेतृत्व में दूसरी बार बीजेपी की रिकॉर्ड जीत
साल 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सुराज संकल्प यात्रा निकाली गई। पूरे राजस्थान में राजे को दूसरी बार अपार जनसमर्थन मिला। 2013 के चुनावों में कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट गई जबकि बीजेपी को 153 सीटों पर जीत मिली थी। राजे को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। पूरे 5 साल राजे ने राजशाही ठाटबाट के साथ काम किया। वर्ष 2018 के चुनाव से पहले राजे के नेतृत्व में राजस्थान गौरव यात्रा निकाली गई लेकिन बीजेपी बहुमत हासिल नहीं कर सकी।
राजपूत, जाट और गुर्जर राजघरानों के बीच संबंध
8 मार्च 1953 को जन्मीं वसुंधरा राजे ग्वालियर राजघराने की पुत्री हैं। उनके पिता का नाम जीवाजीराम सिंधिया और माता का नाम विजया राजे सिंधिया है। राजे का विवाह राजस्थान के धौलपुर जाट राजघराने में हुआ। राजे के एक पुत्र है जिनका नाम दुष्यंत सिंह है। दुष्यंत सिंह झालावाड़ लोकसभा सीट से सांसद हैं। दुष्यंत सिंह का विवाह गुर्जर राजघराने की निहारिका सिंह के साथ हुआ। वसुंधरा राजे धार्मिक मान्यताओं में आस्था रखती है। कई बार वे देव दर्शन यात्राएं भी निकाल चुकी हैं।
राजे से बेहतर कोई चेहरा नहीं है
वसुंधरा दो बार राजस्थान की सीएम रह चुकी हैं और लोकप्रियता के मामले में उनके सामने कोई भी बीजेपी नेता राजस्थान में नजर नहीं आता। वसुंधरा को नेतृत्व नहीं देने पर वसुंधरा समर्थक केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती देने को तैयार बैठे हैं। वसुन्धरा राजे के करीबी सात बार के विधायक देवीसिंह भाटी ने साफ कहा है कि राजस्थान में वसुन्धरा राजे से बेहतर कोई चेहरा नहीं है जो बीजेपी को दोबारा सत्ता में ला सके। अगर वसुंधरा को चेहरा नहीं बनाया गया तो उनके समर्थक तीसरा मोर्चा बनाएंगे। जिस तरह से भाजपा में जननेताओं और स्थानीय नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है। ये बीजेपी के लिए अच्छा नहीं है। अगर राजस्थान में ऐसा हुआ तो बीजेपी को यहां भी हार का सामना करना पड़ेगा।