राज्य की राजनीति से निकलकर वैसे तो काफी नेताओं ने केन्द्रीय राजनीति में अपना परचम लहराया है। और बात अगर राजस्थान की करें तो भैरोंसिंह शेखावत और जसवंत सिंह दो बड़े ऐसे नाम हैं। जिन्होंने राज्य की राजनीति से निकलकर देश में प्रदेश का नाम रौशन किया है। भैरोंसिंह शेखावत ने जहां उपराष्ट्रपति तक का सफर तय किया, तो वहीं जसवंत सिंह वित्त और रक्षामंत्री का जिम्मा संभाल चुके हैं। और अब इस फेहरिस्त में एक नाम और जुड़ गया है। जो अब राज्य की राजनीति से निकलकर आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए संकटमोचन का काम करने वाली हैं। सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया।
वसुंधरा राजे को केन्द्रीय राजनीति में लेने से कुछ लोग ये मान रहे हैं कि उनकी राज्य की राजनीति को खत्म किया जा रहा है। इसलिए केन्द्रीय नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। जबकि, सच तो ये है कि कई ऐसे बातें हैं जो राजे को न केवल राजस्थान में बल्कि, अन्य राज्यों में भी प्रभावशील बनाता है। वसुंधरा राजे ग्वालियर राजघराने की बेटी हैं। ऐसे में ग्वालियर अंचल के साथ साथ एमपी के अधिकांश हिस्सों में तो उनका प्रभाव हैं ही साथ ही साथ ही मध्यप्रदेश से सटे राजस्थान के धौलपुर राजघराने की बहू के नाते वसुंधरा राजे देश के कई राज्यों में प्रभावी जाट वोट बैंक पर भी अपना असर रखती हैं। मराठी भाषी होने के नाते महाराष्ट्र में और भाषाई पकड़ के चलते दक्षिणी राज्यों में भी अच्छी पकड़ राजे रखती हैं।
ऐसे में वसुंधरा राजे आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए संकटमोचन का काम करने वाली है। साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पीएम मोदी की गैरमौजूदगी में एनडीए में नितिन गडकरी के बाद सबसे ज्यादा असर वाली एकमात्र नेता वसुंधरा राजे सिंधिया हैं। लेकिन, ये भी सच है कि राजे को सुकून राजस्थान में ही मिलता है। ऐसे में उम्मीद यही है कि लोकसभा चुनाव में ‘मिशन 25’ को पूरा कर वसुंधरा राजे फिर से राजस्थान की सक्रिय राजनीति में लौटेगीं।