जयपुर। राजस्थान में शनिवार 25 नवंबर को 199 सीटों पर विधानसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न हो गया है। श्री करणपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए शनिवार को मतदान नहीं हो सका, क्योंकि कांग्रेस के उम्मीदवार गुरमीत सिंह कूनर (75) की मृत्यु के कारण चुनाव प्रक्रिया रोक दी गई थी। दो दिन बाद चुनाव का परिणाम जारी किया जाएगा। इससे पहले बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों की ओर से ऐसे निर्दलीयों से संपर्क साधने की कोशिश हो रही है जो स्पष्ट रूप से जीत रहे हैं। साल 2018 में करीब 12 निर्दलीय जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को एक विधायक कम पड़ रहा था। इस कारण निर्दलीयों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई थी। संभावना जताई जा रही है कि इस बार भी निर्दलीयों की संख्या और भी अधिक रहने वाली है। क्योंकि दोनों ही पार्टियों से बागी उम्मीदवारों की संख्या इस बार ज्यादा है। उनमें से बड़ी संख्या में बागी प्रत्याशी के जीतने की संभावना है।
निर्दलियों के लिए गेम प्लान
बीजेपी और कांग्रेस पार्टियों के बागियों को उनके अपने ही दल से अंदरुनी सपोर्ट मिल रहा है। बागियों को उनकी अपनी ही पार्टी के दिग्गजों का आशीर्वाद मिला हुआ है। प्रदेश की पांच दर्जन सीटों पर बागियों ने अपनी पार्टी की उम्मीदवारों की हालात खराब कर रखी थी। भाजपा में 32 बागी नेता है व कांग्रेस में 22 बागी नेता अंतिम समय तक चुनाव मैदान में डटे रहे। बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गेमप्लान इन निर्दलियों को लेकर ही है।
वसुंधरा समर्थक बागी प्रत्य़ाशी
पूर्व सीएम राजे ने अपने समर्थक उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया। लेकिन जो उम्मीदवार पार्टी से अलग होकर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे थे वहां पर प्रचार नहीं किया। वसुंधरा के समर्थकों की बात करें तो कैलाश मेघवाल कई बार मंत्री और सांसद रह चुके हैं। इस बार केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से हुए विवाद के बाद बीजेपी से उनको निष्कासित कर दिया गया। कैलाश मेघवाल निर्दलीय चुनाव लड़े हैं और उनके जीत की संभावना भी ज्यादा बन रही है। इसी तरह से भवानी सिंह राजावत कोटा की लाडपुरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। राजावत भी वसुंधरा के करीबी नेताओं में शामिल हैं। यूनुस खान वसुंधरा के सबसे करीबी माने जाते रहे हैं। यूनुस खान भी बागियों की लिस्ट की शोभा बढ़ा रहे हैं। अनीता सिंह नगर भी वसुंधरा की करीबी रही हैं। पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर वो भी निर्दलीय चुनाव लड़ी हैं। चित्तौड़गढ़ सीट पर भाजपा के मौजूदा विधायक चंद्रपाल सिंह भी टिकट न मिलने पर बागी हो गए हैं।
जानिए क्या है वसुंधरा का गेम प्लान
ऐसा कहा जाता है कि अशोक गहलोत ने साल 2018 के चुनावों में चाल चली थी कि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत न मिल सके। गहलोत ने कांग्रेस के करीब डेढ़ दर्जन बागियों को भी चुनाव उतार दिया था। इनमें करीब दर्जन भर के जीतने की संभावना थी और परिणाम में भी यही हुआ है। 2018 में गहलोत ही नहीं पार्टी के सभी लोग यही समझ रहे थे कि कांग्रेस अगर बहुमत में आती है तो सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनना तय था। लेकिन गहलोत की प्लानिंग काम आई। राजस्थान के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि 2018 में राजस्थान में जो हुआ वैसा ही 2023 में होने वाला है। वसुंधरा राजे की यही प्लानिंग है कि बीजेपी को 85 से 90 सीट ही मिले। राजे के करीब खास 20 लोग बागी की हैसियत से चुनाव मैदान में भाग्य आजमा रहे हैं। ये जीतते हैं तो वसुंधरा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी के साथ आएंगे।