जयपुर। हाल ही में एक खबर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है। भाजपा के जयपुर स्थित कार्यालय में बैठक के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की कार को सतीश पूनियां की कार ने पोर्च में जगह नहीं दी। वैसे तो यह कोई बड़ा मामला नहीं है और ना ही पहली बार है। लेकिन सियासी गलियारों में आजकल भाजपा की गुटबाजी खुलकर सामने आ चुकी है, जिसके बाद से राजनीतिक पंडित हर छोटे से छोटे वाकये को भी एक बड़े घटनाक्रम की तरह पेश कर रहे हैं।

वैसे भाजपा में जारी राजे-पूनियां की गुटबाजी में एक बात तो क्लियर है कि सतीश पूनियां अब वसुन्धरा राजे को पूरी तरह साइड-लाइन करने का मन बना चुके हैं। वहीं वसुन्धरा राजे पहले की भांति भाजपा की एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में जनता के बीच में है। हाल ही में राजे का सोशल मीडिया पर क्रेज भी काफी बढ़ा है। कार्यकर्ता उनके नाम से फेसबुक, ट्विटर व व्हाट्सएप्प पर ग्रुप्स व पेज बनाकर वसुंधरा राजे द्वारा किए गए कामों की सराहना कर रहे हैं। लेकिन लगता है राजे की यह लोकप्रियता प्रदेशाध्यक्ष जी को रास नहीं आ रही है। यही कारण है कि वह हर बैठक व कॉन्फ्रेंस में वसुंधरा को नजरअंदाज करते नजर आ रहे हैं। वैसे सतीश पूनियां की यह डेढ़ होशियारी अब उन पर ही भारी पड़ती नजर आ रही है। राजे की अच्छी खासी फैन फॉलोविंग होने के कारण अब कार्यकर्ताओं का पूनियां से मोहभंग होता जा रहा है।

 रही बात वसुंधरा की कार को पोर्च में जगह नहीं देने की। तो पूनियां को यह समझना चाहिए कि भाजपा में वरिष्ठ नेताओं का सम्मान एक प्रचलित प्रथा है। लेकिन शायद पूनियां जी में पार्टी के संस्कारों का अभाव है। उन्हें अपने से वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करना सीखना चाहिए। वे ये कभी ना भूलें कि भाजपा एक लोकतांत्रिक पार्टी है, यहां प्रदेशाध्यक्ष पद पर आज आप हैं तो कल कोई और आएगा। तब पार्टी कार्यालय में आपकी जो दुर्गति होगी उसे देखकर आंसू मत बहाना। क्योंकि राजे तो सर्वमान्य नेता हैं, कई बार सांसद व विधायक के साथ ही दो बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। लेकिन आप तो मात्र एक बार विधायक रहे हैं, वो भी वसुंधरा राजे के कारण ही। इसलिए इस कुर्सी पर जब कोई और आएगा तो एक सर्वमान्य नेता के रूप में राजे को तो बराबर का दर्जा मिलेगा, लेकिन पूनियां को सामने की तरफ कौनसी पंक्ति में जगह मिलेगी, यह अनुमान लगाना भी मुश्किल है।

मोरल ऑफ द स्टोरी : फिलहाल सतीश पूनियां भाजपा में “थोथा चना, बाजे घना” साबित हो रहे हैं। क्योंकि बिना योग्यता के जब किसी को बड़ा पद मिल जाता है तो वह अक्सर घमंडी मानसिकता का शिकार हो बैठता है। खुद को भावी मुख्यमंत्री कहलवाने वाले पूनियां अभी उसी मानसिकता के दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन शायद उन्हें राजे की लोकप्रियता का अंदाजा नहीं है। फिलहाल भाजपा की कमान पूनियां के हाथ में हैं और राजनेताओं की किस्मत भविष्य के गर्भ में। जो वक्त आने पर ही सामने आएगा। तब तक आप मस्त रहिए, तंदुरुस्त रहिए और जहां तक हो सके, घर पर ही रहिए। क्योंकि पेट्रोल के दाम 100 को पार कर चुके हैं।