राजस्थान के उदयपुर में चिकित्सकों ने दक्षिणी एशिया में सबसे छोटी व कम वजनी मात्र 400 ग्राम की नन्ही बच्ची को जीवनदान देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उदयपुर शहर स्थित जीवंता हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने 7 महीनों तक जीवन और मौत के बीच चले लंबे संघर्ष के बाद बच्ची को जीवनदान दिया है। इस नन्हीं बच्ची के जीवन संघर्ष की कहानी थोड़ी अलग है। दरअसल, कोटा जिले की रामगंज मंडी तहसील के साकल खेड़ी निवासी गिरिराज बैरवा की पत्नी सीता को शादी के 35 वर्षों बाद मां बनने का सौभाग्य मिला है।
दम्पती को आईवीएफ से संतान-सुख तो प्राप्त हुआ, लेकिन हो रही थी यह परेशानी
कोटा के दम्पती गिरिराज व सीता को आईवीएफ टेक्नोलॉजी के जरिए संतान—सुख तो प्राप्त हुआ लेकिन गर्भावस्था के साढ़े छह माह में ही बीपी ज्यादा होने से सोनोग्राफी में पता चला कि भ्रुण को रक्त प्रवाह बराबर नहीं हो रहा है, साथ ही उसका विकास भी नहीं हो रहा है। इस कारण इमरजेंसी आॅपरेशन करके 15 जून, 2017 को नीलकंठ आईवीएफ हॉस्पिटल में डिलीवरी करवाई। जन्म के वक्त बच्ची का वजन मात्र 400 ग्राम के करीब था। ऐसे में बच्ची को बचाने की संभावना नहीं के बराबर थी।
जीवंता हॉस्पिटल के डॉक्टरों की सहायता से बच्ची को मिला जीवनदान:
बच्ची के पिता गिरिराज बैरवा ने बताया कि, जब बच्ची दुनिया में आई तो उसका वजन मात्र 40 ग्राम था। ऐसे में बच्ची के बच पाने की संभावना बहुत ही कम थी। लेकिन हमने जीवंता हॉस्पिटल के बारे में सुना था कि, यहां कई 500—600 ग्राम के अविकसित बच्चे भी ठीक होकर गए हैं, इसलिए हमारी थोड़ी आशा बनी और हमने बच्ची को जीवंता हॉस्पिटल में भर्ती कराया। हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. सुनील ने हमें ऐसे केस में सभी संभावनाएं और खर्च के बारे में विस्तार से बताया, जिस पर हम सहमत हो गए। गिरिराज ने आगे बताया कि इसके बाद डॉ. सुनील और डॉ. निखिलेश नैन एवं उनकी टीम के द्वारा शिशु का विशेष निगरानी में उपचार शुरू हुआ।
400 ग्राम की बच्ची को बचाना बड़ी चुनौती थी डॉक्टर्स की टीम के लिए:
डॉ. सुनील जांगिड़ ने बताया कि इतने कम वजन के शिशु को बचाना हमारी टीम के लिए बहुत बडी चुनौती थी। अब तक भारत एवं पूरे दक्षिण एशिया में इतने कम वजनी शिशु के अस्तित्व की कोई रिपोर्ट नहीं है। इससे पहले भारत में अब तक 450 ग्राम वजनी शिशु का मोहाली चंडीगढ में सन 2012 में इलाज हुआ था। ऐसे में शिशु की 210 दिनों तक गहन चिकित्सा इकाई में विशेष देखरेख की गई। नियमित रूप से मस्तिष्क एवं ह्रदय की सोनोग्राफी भी की गयी जिससे आतंरिक रक्तस्त्राव तो नहीं हो रहा है को सुनिश्चित किया गया। 7 महीने की कठिन मेहनत के बाद इस बच्ची का वजन 2.400 किलोग्राम हो गया है, और अब यह पूरी तरह से स्वस्थ है। बड़ी कामयाबी मिलने पर हॉस्पिटल की टीम और बच्ची के माता—पिता आज बहुत खुश हैं। उनके लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। नर्सिंग स्टाफ ने बच्ची को मानुषी नाम दिया है।
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राजे सरकार और अस्पताल की मदद से आई गरीब माता-पिता के घर में खुशियां:
बच्ची के पिता गिरिराज ने बताया कि राजस्थान सरकार और अस्पताल के वे ताउम्र आभारी रहेंगे। सरकार और अस्पताल की मदद से ही उनके घर में शादी के 35 वर्षों बाद खुशियां आई है। बता दें, गिरीराज कोटा माइंस में पत्थर मजदूरी करते हैं। और इसी से उनकी रोजी—रोटी चलती है। वे मजदूरी कर महीने के 5000—6000 रुपये कमा पाते हैं। ऐसे में बच्ची के इलाज का पूरा खर्चा उठाना उनके लिए बहुत मुश्किल था। राजे सरकार और अस्पताल की मदद से उनका संतान प्राप्ति का सपना पूरा हो सका है। बच्ची को मिले जीवनदान की खुशियां मनाते हुए मकर संक्रांति के अवसर पर नीलकंठ (आईवीएफ केन्द्र) फर्टिलिटी हॉस्पिटल ने रत्नागिरी कन्या गौरव उद्यान में पौधरोपण भी किया।