राजस्थान में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। परिपाटी के मुताबिक राज्य में सत्ता बदलती रहती है, लेकिन सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे चुनाव नहीं हारते। 2003 से ही वसुंधरा राजे झालरापाटन में हैं। ये सिलसिला पिछले 20 सालों से चला आ रहा है। झालावाड़ की झालरापाटन सीट पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाला नेता अभी तक नहीं मिल पाया है।
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद दो बार की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे झालावाड़ के झालरापाटन से विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही हैं। उनके खेमे के विधायक, पूर्व विधायक और नेता भी उन्हें दोबारा सीएम की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। यही वजह है कि बीजेपी की 41 उम्मीदवारों की पहली सूची में वसुंधरा खेमे के नेताओं के टिकट कटने के बाद विरोध और बगावत के स्वर मुखर होने लगे हैं। ‘वसुंधरा नहीं, तो सत्ता नहीं’ जैसा माहौल बीजेपी के असंतुष्ट धड़े को जन्म दे रहा है। इसे राजनीतिक कूटनीति और शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है।
राजस्थान की परंपरा रही है कि सत्ता विरोधी लहर के कारण एक बार सत्ता कांग्रेस और दूसरी बार भाजपा के पास जाती है। जनता पिछले 30 वर्षों से द्विदलीय प्रणाली के आधार पर हर बार सत्ता में ये परिवर्तन करती आ रही है। बीजेपी में वसुंधरा राजे का दबदबा आज भी कायम है। बीजेपी में बदलाव के दौर के बीच चुनाव में यह भी एक बड़ा फैक्टर है।
भले ही एक तरफ मोदी का चेहरा और कमल का फूल है, लेकिन दूसरी तरफ जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं की अंदरूनी मांग है कि चुनाव में स्थानीय नेतृत्व और सीएम का चेहरा हो, जिसके बिना चुनाव लड़ना नुकसानदेह साबित हो सकता है। माना जा रहा है कि अगर राजे खेमे के 35-40 नेता टिकट कटने के बाद बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ते हैं तो ये वोटकटवा उम्मीदवार बीजेपी के वोटों को बांटकर चुनाव में भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसका सीधा फायदा कांग्रेस प्रत्याशियों को होगा, यही पार्टी की सबसे बड़ी चिंता भी है।
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे राजघराने की बेटी और धौलपुर के राजघराने की बहू होने के बावजूद जनता के विश्वास, मजबूत पकड़, अपने क्षेत्र में जनसुनवाई और विकास कार्यों के दम पर चुनाव जीतती रही हैं। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे 5 बार विधायक और 5 बार सांसद रह चुकी हैं। झालरापाटन को वसुंधरा राजे की सीट कहा जाता है।
साल 2018 में कांग्रेस ने झालरापाटन से मानवेंद्र सिंह जसोल को टिकट देकर वसुंधरा को कड़ी चुनौती देने की योजना बनाई थी, लेकिन वह महारानी के सामने टिक नहीं सके। पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवन्त सिंह जसोल के बेटे मानवेन्द्र सिंह की हार के बाद राजे ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनके गढ़ में उन्हें कोई नहीं हरा सकता। इससे पहले सचिन पायलट की मां रमा पायलट भी 2003 में झालरापाटन से चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन रमा पायलट को भी वसुंधरा राजे से हार का सामना करना पड़ा था।