राजस्थान में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या 32 के पार हो गई है। 860 से ज्यादा पॉजिटिव मरीज सामने आ चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग के दावों की पोल खुलती जा रही है तो सरकार मौन साधे मानो साधना में बैठी है। लोग मर रहे हैं, विपक्ष इस पर कुछ भी बोले तो सरकार और उनके नुमाइंदे कहते हैं विपक्ष इसे राजनीतिक मुद्दा बना रहा हैं। अब गहलोत सरकार को कौन समझाएं, कि जनता की पीड़ा तो आपको नज़र नहीं आ रही। ऐसे में अब जनता की आवाज बनकर विपक्ष सवाल करें गहलोत सरकार को राजनीतिक मुद्दा लगता है।
प्रदेश में स्वाइन फ्लू से मौत का आंकड़ा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। सोमवार को ही स्वाइन फ्लू के 64 नए मामलों की पुष्टि हुई है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि स्वाइन फ्लू को लेकर विभाग अलर्ट है। जबकि सच तो ये है कि देश में स्वाइन फ्लू के मामले में राजस्थान दूसरे स्थान पर है। हालांकि, हेल्थ मिनिस्टर डॉ.रघु शर्मा ने प्रदेश की जनता से अपील करते हुए कह रहे हैं कि स्वाइन फ्लू के शुरुआती लक्षण सामने आते ही तुरंत नजदीकी चिकित्सा केंद्र में पहुंचे, क्योंकि स्वाइन फ्लू का अगर समय रहते उपचार लिया जाए तो ये जानलेवा नहीं है।
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मंत्री जी को कौन समझाएं कि स्वाइन फ्लू को लेकर जनता तो जागरूक हो रही है। लेकिन आपका विभाग इसे लेकर कौमा में है। लोगों का कहना है कि स्वाइन फ्लू को लेकर स्वास्थ्य महकमा बिल्कुल गंभीर नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में स्वाइन फ्लू को लेकर स्थिति ज्यादा विकट है। सरकारी अस्पतालों में जांच की व्यवस्था न होने के कारण मरीजों को निजी लैब में जांच के लिए जाना पड़ रहा है। जिसके कारण मरीजों से मनमाने पैसे वसूले जा रहे हैं, लेकिन प्रशासन इन सब मुद्दों पर कोई कदम नहीं उठा रहा है। कुछ बड़े सरकारी अस्पतालों में जांच की सुविधा है लेकिन वहां मरीजों की भीड़ से हालत बदतर है।
खैर, राजस्थान की जनता के लिए दुखद लेकिन, प्रदेश सरकार के लिए ये सुखद खबर है कि मरने वालों की संख्या अभी तक 35 ही है। क्योंकि कांग्रेस सरकार का कहना है कि पिछले साल यानि 2018 में 221 लोगों की मौत हुई थी। प्रदेश में अभी हालात बेहतर है। पर उससे भी ज्यादा सोचनीय ये बात है कि, जिस प्रदेश में करोड़ों रुपया स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर खर्च हो रहा है। वहां एक पखवाड़े में 35 लोग काल का ग्रास बन चुके हैं।