जयपुर। सैयां भये कोतवाल तो फिर डर काहे का ? शायद इसे ही डेमॉक्रेसी का दुरूपयोग कहते हैं। डिमॉक्रेसी में तभी घुन लगता है जब सत्ताधारी पार्टी और उससे जुड़े नेताओं-मंत्रियों में यह भावना घर कर जाती है कि ‘जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का’। भले ही राज्य सरकार के मुखिया गहलोत और उनके आला मंत्री कानून व्यवस्था में सुधार की बात करते हो लेकिन स्थिति बिल्कुल इसके उलट है।

दरअसल, करौली में ठेके के सफाईकर्मियों के बिलों को प्रमाणित करने के मामले में पहले तो नगरपरिषद सभापति राजाराम गुर्जर पर परिषद के स्वास्थ्य निरीक्षक ने पिटाई का तथ्यहीन आरोप लगाया। वहीं अब पुलिसिया डंडे के सहारे दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि राजाराम गुर्जर किसी तरह के कोई हार्डकोर अपराधी नहीं है। फिर भी कथित पूछताछ के लिए 20 से ज्यादा पुलिसकर्मियों का सभापति के घर पहुंचना सत्ताधारी पार्टी की मानसिकता को जाहिर करता है।

वहीं, सूत्रों की माने तो मंत्री रमेश मीणा और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के कहने पर ही स्वास्थ्य निरीक्षक ने बुधवार शाम कोतवाली थाने में सभापति के खिलाफ मारपीट, धमकी तथा नौकरी को खतरे में डालने की एफआईआर दर्ज कराई थी। वहीं नगरपरिषद सभापति राजाराम स्पष्ट तौर पर कह चुके हैं कि मारपीट के आरोप निराधार है। सफाई व्यवस्था में होने वाले फर्जीवाड़े को बंद कर दिया है। जिससे कुछ कर्मचारियों में बौखलाहट है। इतना ही नहीं कुछ राजनीतिकद्वेष के चलते कर्मचारियों को गुमराह भी किया जा रहा है।

सभापति राजाराम की पत्नी सौम्या गुर्जर ने ट्वीट कर कांग्रेस सरकार और उनके मंत्री को आडे हाथ लिया है। उनका कहना है कि राजनीतिक षडयंत्र के चलते सरकार के इशारों पर पुलिस ऐसा कर रही है। जबकि सभापति जी ने हमेशा से जनसेवा को परम धर्म मानकर भ्रष्टाचार मुक्त व स्वच्छ राजनीति का समर्थन किया है।