जब से राजस्थान के शासन की कमान माननीय वसुन्धरा राजे ने संभाली है, प्रदेश का चहुमुखी विकास रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है। केन्द्र व राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं, बहुआयामी कार्यक्रमों व सार्थक अभियानों की बदौलत आज राजस्थान हर क्षेत्र में सुनहरे विकास की कहानी लिख रहा है। विकास का यह दौर सीमावर्ती व दूरदराज के पहाड़ी क्षेत्रों तक में भी मुखर होता देखा जा सकता है। ऐसी ही एक कहानी है सातपुलिया गांव की जिसकी पूरी रूपरेखा मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और उनकी जारी की गई सरकारी योजनाओं ने बदल कर रख दी है।
राजसमन्द जिले के अंतिम छोर पर बसा और पाली जिले की सीमा को छूता हुआ यह गांव चारों ओर से पहाड़ों व नदी-नालों से घिरा हुआ है। पहाड़ी और घाटीदार क्षेत्र होने की वजह से यहां बिजली लाना मानो एक स्वप्न साबित हो रहा था। शाम होते ही यहां कामकाज बंद हो जाता था और पूरी रात केवल दिए या लालटेन की रोशनी में गुजारनी पड़ती थी। लेकिन अब यकीन ही नहीं होता कि प्रदेश सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के कारण इस गांव ने सदियों से पसरे अंधेरों को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है। यहां तक की 2 नवम्बर, 2017 को इस सम्पूर्ण ग्राम के सौर ऊर्जा विद्युतीकृत होने की विधिवत घोषणा हो चुकी है।
गांव की कायापलट के बारे में दिवेर ग्राम पंचायत के वार्ड पंच हीरासिंह बताते हैं कि बिजली न होने से रोजमर्रा के काम भी प्रभावित होते, और बच्चों की पढ़ाई भी। जंगली जानवरों का भय भी बना रहता। नौकरीपेशा के साथ ही काम-धन्धे व खेती-बाड़ी में लगे क्षेत्र के ग्रामीणों को अपने मोबाईल को चार्ज करने के लिए 9-10 किलोमीटर दूर दिवेर जाना पड़ता था। अब सातपुलिया गांव में सभी 65 घरों पर सौर ऊर्जा उपकरण लगाये गए हैं व गांव भर के लोग इसका लाभ ले रहे हैं। सूरज की रोशनी से अंधेरों के खात्मे का जो सुकून मिला है, उसकी तारीफ करते ग्रामीण फूले नहीं समाते।
बता दें कि गांव के लोग स्वच्छता के प्रति भी जागरूक हैं। हर घर में शौचालय बने हुए हैं। नैसर्गिक सौन्दर्य से लक-दक सातपुलिया गांव का विहंगम दृश्य उत्तराखण्ड की वादियों में बसे किसी पर्वतीय ग्राम से कम नहीं लगता। ग्रामीण विकास के सरकारी प्रयासों ने इस गाँव के लोगों को चौतरफा विकास का जो सुकून दिया है, वह इनके हंसते-मुस्कुराते और खिलखिलाते चेहरों से पढ़ा जा सकता है।
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