आज शीतलाष्टमी है। शीतलाष्टमी होली के ठीक 8 दिन बाद चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की मनायी जाती है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के हिसाब से शीतला माता चेचक और खसरा की देवी हैं। शीतला माता के आशीर्वाद से चिकन पॉक्स, चेचक और खसरा जैसे रोग ठीक हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी शीतला सप्तमी और अष्टमी का व्रत रखता है और तन-मन से पूजा करता है माता शीतला उसके कष्टों का निवारण करती हैं। आम भाषा में छोटी माता जैसी बिमारियों से दूर रखने के लिए शीतलाष्टमी पूरे उत्तर भारत में मनाई जाती है। माता को ठंडा भोजना भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
क्यों मनाते हैं शीतलाष्टमी
शीतला अष्टमी के दिन व्रत रखने से और विधिवत पूजन से बीमारियां घर से दूर रहती हैं और परिवार के सदस्य निरोगी बने रहते हैं। इस दिन घर की रसोई में हाथ की पांचों अंगुलियों से घी दीवार पर लगाया जाता है। उसके बाद उस पर रोली और चावल लगाकर शीतला माता की आरती गायी जाती है। इसके अलावा घर के पास के चौराहे पर भी जल अर्पित किया जाता है जो स्वच्छता का प्रतीक होता है।
शीतला देवी का रूप
शीतला माता के हाथ में झाड़ू और कलश रहता है। झाड़ू सफाई का प्रतीक है और यह लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करता है। साथ ही इनके हाथ में कलश भी होता है जिसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के हिसाब से शीतला माता चेचक और खसरा की देवी हैं। उनके आशीर्वाद से ये रोग दूर हो जाते हैं। शक्ति के दो रूप माने जाते हैं देवी दुर्गा और देवी पार्वती। शीतला माता को शक्ति के इन दोनों रूपों का अवतार माना जाता है।
पूजा का मुहूर्त
अष्टमी की शुरूआत 9 मार्च (शुक्रवार) को सुबह 3.44 बजे से 10 मार्च को सुबह 6 बजे तक रहेगी। लेकिन शीतलाष्टमी पूजा का मुहूर्त शुक्रवार को सुबह 6.41 बजे से शाम 6.21 बजे तक रहेगा। पूजा की अवधि लगभग 12 घंटे तक रहेगी।
भोग की विधि
शीतलाष्टमी के दिन माता को भोग लगाने के लिए बासी खाना तैयार किया जाता है जिसे बसौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन बासी खाना माता को नैवैद्य के रूप में चढ़ाया जाता है जिसे बाद में भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद बासी खाना बंद कर देना चाहिए। शीतलाष्टमी के दिन माता शीतला को भोग लगाने के बाद घर में चूल्हा नहीं जलता। परिवार के सभी सदस्य वही प्रसाद खाकर ही पूरा दिन बीताते हैं। शीतला माता की पूजा विशेष रूप से बसंत और ग्रीष्म ऋतु में होती है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ की अष्टमी को शीतला माता की पूजा का विधान है।
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