राजस्थान की जनता ने कांग्रेस के ऊपर जो विश्वास और भरोसा दिखाया, उस भरोसे को तो कांग्रेस ने दो दिन में ही तोड़ दिया है। जिनके पास कभी कोई रणनीति ही नहीं थी। उन्हें जनता ने पूरा रण दे दिया। राजस्थान विधानसभा चुनावों के नतीजों को आये हुए दो दिन हो चुके हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों से अभी तक मुख्यमंत्री की घोषणा नहीं की जा रही है। अब ये बात अलग है कि मुख्यमंत्री की घोषणा जान बुझ कर नही की जा रही या फिर कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री पद के लिए कोई एक चेहरा तय नहीं कर पा रही है। या फिर कांग्रेस की अंतर्कलह ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही है।
चुनावों से पहले तो कांग्रेस ने जनता को बहला-फुसला कर या झूठ बोलकर वोट हासिल कर लिए लेकिन अब इनकी सच्चाई स्पष्ट तौर पर सबके सामने दिखाई दे रही है। कहते हैं वर्चस्व की लड़ाई हर जगह होती है। लेकिन राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यकर्ता पिछले लम्बे समय से अपनी पार्टी में ही अपने वर्चस्व के लिए लड़ते आये हैं। जिसके बारे में जनता को भली-भांति पता है। कांग्रेस का ‘मेरा बूथ, मेरा गौरव’ हो या फिर टिकट वितरण। हर बार इनकी लड़ाई जनता ने देखि। फिर भी जनता ने कांग्रेस पर उनकी घोषणाओं पर विश्वास दिखाकर कांग्रेस को मत एवं समर्थन दिया। लेकिन कांग्रेस ने आज भी मुख्यमंत्री पद के नाम का खुलासा नहीं कर के साफ़ कर दिया है कि ये सरकार ज्यादा चलने वाली नहीं है।
खुद कांग्रेस के कार्यकर्ता तीन धड़ों में बंटे
11 दिसंबर को कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिलने के साथ ही मुख्यमंत्री पद के लिए कयास लगाए जा रहे हैं। राजस्थान के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए एक ओर तो अशोक गहलोत का नाम लिया जा रहा है। राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत पहले दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसलिए राजस्थान की जनता का एक बड़ा तबका चाहता है, अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। इसका एक कारण ये भी है कि अशोक गहलोत राजस्थान के गांधी कहे जाते हैं। दूसरा, वो राजनीति के काफी अनुभवी भी हैं।
वहीं दूसरी ओर वो चेहरा है। जिसने पांच साल पहले राजस्थान में बुरी तरह पिट चुकी कांग्रेस को फिर से खड़ा किया, और इस काबिल बनाया की वो भाजपा के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ सके। वो शख्स कोई और नहीं सचिन पायलट है। साल 2014 में लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस की करारी हार के बाद जब सचिन पायलट हार गए तो कांग्रेस ने उन्हें दिल बहलाने के लिए राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी का प्रदेशाध्यक्ष बनाकर भेजा। फिर वही हुआ जो सबके साथ होता है। खिलौनों से खेलते-खेलते बच्चे अक्सर बड़े हो जाते हैं। सचिन पाइलट भी बड़े होने लगे और बड़े होने के साथ साथ उनके मन में एक सपना पलने लगा। राजस्थान का सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री बनने का। जिस प्रकार से मात्र 26 वर्ष की अवस्था में हिंदुस्तान के सबसे युवा सांसद होने का रिकॉर्ड बनाया था। उसी तरह उन्हें लगा कि वो हिंदुस्तान के सबसे युवा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए तो शायद राजस्थान के सबसे युवा मुख्यमंत्री बन जाये। लेकिन जब वो सांसद बने तब में और अब में काफी फर्क है। उस वक़्त उन्हें सुहानुभूति वोट मिल गए थे, इसलिए वो सांसद बन गए। लेकिन अब ना कोई सुहानुभूति है, ना किसी प्रकार की दया। अब है तो सिर्फ और सिर्फ सत्ता पाने की लालसा। इसलिए शायद सचिन पायलट ने अपने प्रशंसकों के माध्यम से अशोक गहलोत के गृह क्षेत्र में भी सेंध लगवाकर, सचिन पायलट बनेगा मुख्यमंत्री के नारे और पोस्टर दोनों लगवा दिए।
तीसरी धड़ा वो है जो कह रहा है कि सत्ता तो कांग्रेस के हाथों में आ ही गयी। अब आलाकमान जिसे भी मुख्यमंत्री बनाएगा वो उन्हें मंज़ूर होगा। लेकिन फिर भी जिस तरह से कांग्रेस के नेता आपस में लड़ते रहे हैं, उस हिसाब से तो दबे-दबे शब्दों में ये आवाज आ रही है कि राजस्थान कांग्रेस के कुछ सीनियर नेता कह रहे हैं कि जब 18 साल पहले राजनीति में आने वाला कल का छोकरा मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर सकता है तो फिर हम पिछले 40-40 साल से क्या झक मार रहे हैं। हम भी तो मुख्यमंत्री बन सकते हैं।
इन सबके बीच पिछले दो दिनों से राहुल गांधी लगातार अशोक गहलोत, सचिन पायलट, अविनाश पांडेय और कांग्रेस के अन्य नेताओं से बातचीत करने में लगे हुए हैं। इसके आलावा राहुल गांधी ने 12 तारीख को राजस्थान में विधायक दल की बैठक में सभी नए विधायकों से फोन पर बात करके उनकी राय भी जानी। और दो दिनों की माथापच्ची के बाद राहुल गांधी इस असमंजस में हैं की मुख्यमंत्री किसको बनाया जाये। अशोक पायलट, सचिन गहलोत, सीपी जोशी या बीडी कल्ला को। रामेश्वर डूडी और गिरिजा व्यास के नाम पर कोई मंथन नहीं कर रहा है।
Source: Mahendra Verma
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