विधानसभा में लेखानुदान पेश करते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत

13 फरवरी 2019, राजस्थान की विधानसभा में नयी कांग्रेस सरकार के पुराने मुख्यमंत्री और राज्य के नए वित्त मंत्री माननीय श्री अशोक गहलोत जी ने राजस्थान राज्य के वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए लेखानुदान पेश किया। उन्होंने लेखानुदान पेश करने से पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा कही गयी पंक्तियों को दोहराया…

आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सबसे जरूरी हैं, जिससे हम अपने सबसे बड़े दुश्मन… ग़रीबी और बेरोज़गारी से लड़ सकें।

तो मुख्यमंत्री जी ने ये शब्द दोहराते हुए लेखानुदान तो पेश कर दिया, लेकिन ग़रीबी और बेरोज़गारी से लड़ने के लिए इन्होंने क्या किया? जब हमने कांग्रेस सरकार द्वारा पारित किया गए बज़ट का गहन अध्यन किया तो पाया कि कांग्रेस प्रदेश की ग़रीबी और बेरोज़गारी को दूर करने के नाम पर राज्य की ग़रीबी, बेरोज़गार जनता को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने ऊपर निर्भर बनाया है। जिससे ना तो ग़रीबी हटेगी और ना ही बेरोज़गारी मिटेगी। उल्टा  प्रदेश में बेगारी और बढ़ेगी।

जब बिना काम किये भत्ता मिल जायेगा तो नौकरी कौन करना चाहेगा

नहीं हम ऐसा नहीं कह रहे हैं। इसका मतलब ये बिलकुल भी नहीं कि प्रदेश के लाखों बेरोज़गारों को रोज़गार या  नौकरी की कतई ज़रूरत नहीं है। लेकिन इसकी दो वजह हैं। पहली, क्या सरकार वाकई में प्रदेश की बेरोजगारी को जड़ से ख़त्म करना चाहती है। तो सरकार को भत्ते का लालच न देकर हर व्यक्ति के रोज़गार का पुख़्ता इंतज़ाम करना चाहिए। वरना ये भी एक तरह का लालच ही है, कि आप आलोचकों का मुँह बंद करने की लिए, और जनता के आक्रोश को भी शांत करने के लिए, व सत्ता हासिल करने के लिए ही कांग्रेस सरकार ने बेरोज़गारी भत्ते की घोषणा की। जिसे देकर ये ना तो किसी पर कोई एहसान कर रही है और ना ही किसी का भला।

 

दूसरी वजह…

यदि किसी व्यक्ति को चतुर्थ श्रेणी सरकारी नौकरी भी मिलती है, तो उसकी न्यूनतम मासिक आय 18-19 हज़ार रुपये होती है। तो फिर जो न्यूनतम आय सरकार द्वारा तय है, और जो 3500/- रुपये भत्ता सरकार दे रही है, उसमे कितना अंतर है। सरकारी नौकरी लगाने के बाद भी एक आम आदमी कहता है, कि महंगाई की मार से घर चलाना बेहद मुश्किल है। ऐसे में गहलोत सरकार एक सारणी बनाकर दें कि 3500/- रुपए में कोई कैसे अपना घर चला पायेगा। इसलिए अगर सरकार को प्रदेश की ग़रीबी और बेरोज़गारी दूर करनी ही है तो भले ही कुछ साल और ले लें, लेकिन सही में रोज़गार दें। रोज़गार के नाम पर लालच और बेरोज़गारी भत्ते के नाम पर मज़ाक ना करें। क्योंकि बेरोज़गारी भत्ता तो पिछली सरकार भी दे ही रही थी। फिर सिस्टम तो आपका भी लगभग-लगभग उनके जैसा ही है ना।

लेखानुदान में ना तो रोज़गार ना नए सरोकार

अधूरी योजनाएं
अधूरी योजनाएं

गहलोत जी ने लेखानुदान में जितनी भी घोषणाएं की वो पिछली सरकार द्वारा पहले से ही की जा चुकी थी। ऐसे में हर वर्ग, क्षेत्र और विभिन्न तबकों को वही सबकुछ मिला जो पहले ही मिलता आ रहा है। नयी सरकार द्वारा कोई भी नयी घोषणा नहीं की आयी। जिसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि ये सरकार ही दस साल पुरानी है। फिर घोषणाएं नई कहां से करेगी। और ना ही बज़ट किसी भी प्रकार के नए रोज़गार सृजन की आधिकारिक घोषणा की गयी। ये तो बस दस साल पुरानी योजनाओं को ही पुनः शुरू करने में लगे हुए हैं। अगर आपकी योजनाएं इतनी ही अच्छी थीं, तो आपकी सरकार रहते हुए ही कई योजनाएं शुरू क्यों नहीं हो पायी। एक बात और यदि पिछली सरकार ने काम नहीं किया, विकास नहीं किया। जनकल्याणकारी योजनाएं नहीं चालयी।

एएसपी द्वारा रीट लेवल प्रथम अभ्यर्थियों से मारपीट
एएसपी द्वारा रीट लेवल प्रथम अभ्यर्थियों से मारपीट

चुनावी रैलियों में क्या कहा था…

तो फ़िर चुनावी रैलियों से ही आप बार-बार ये बयान क्यों देते आ रहे हैं कि चाहे कुछ भी हो जाये, हम भाजपा सरकार द्वारा चलायी योजनाओं को बंद नहीं करंगे। ये आपकी मौन स्वीकृति है कि सरकार ने तो सही विकास कार्य किये। बस हमने ही सत्ता हांसिल करने के लिए भाजपा पर कीचड़ उछाला था। आपने बजट में ना तो कोई नयी जनकल्याणकारी योजना की बात कही और ना ही किसी रोज़गार भर्ती की। बल्कि आप ही के लोगों द्वारा लगवाई गयी, जिस रीट लेवल प्रथम भर्ती प्रक्रिया रोक को जैसे-तैसे कोर्ट ने हटाया था। उस पर शिक्षा राज्य मंत्री डोटासरा द्वारा नियुक्ति से आदेश दे दिए जाने के बावजूद भी मात्र दो दिन बाद ही फिर से रोक लगा दी जाती है। और नियुक्ति पत्र पाने के इंतज़ार में अभ्यर्थी विरोध करते हैं, तो उन्हें एएसपी द्वारा बाल खींच कर, थप्पड़ मार कर मारा-पीटा जा रहा है।

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