जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव अब बिल्कुल सामने है। इसी साल राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें फिलहाल मध्य प्रदेश ही एकमात्र राज्य है, जहां बीजेपी की सरकार है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल 14 जनवरी 2018 को खत्म हो रहा है। ऐसे में यहां नवंबर-दिसंबर में चुनाव हो सकता है। राजस्थान में कोई भी पार्टी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी है। इस परंपरा के लिहाज़ से इस बार बीजेपी की बारी है। यह बीजेपी के लिए प्लस पॉइंट हो सकता है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट की साझा ताक़त के सामने पिछले 6 बार से चली आ रही परंपरा को क़ायम रखना बीजेपी के लिए आसान नहीं रहने वाला। उसमें भी जब पार्टी अपनी सबसे वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे की अनदेखी कर रही हो। राजे के बिना बीजेपी राजस्थान पर फतह हासिल नहीं कर सकती। अब आलाकमान को भी समझ में आ गया कि वसुंधरा राजे को तवज्जोह नहीं देना पार्टी के लिए ख़तरनाक हो सकता है।
सियासत का लंबा अनुभव
70 वर्षीय पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के पास सियासत का लंबा अनुभव है। साल 1984 में भारतीय जनता युवा मोर्चा से राजनीतिक करियर का आगाज करने वाली वसुंधरा 1985 में पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुईं और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वसुंधरा 1989 में पहली बार लोकसभा पहुंचीं और 2003 तक बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकारों में अलग-अलग मंत्रालयों के कार्यभार भी संभाले।
गहलोत के मुकाबले बड़ा चेहरा
प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुकाबले वसुंधरा राजे बड़ा चेहरा हैं। साल 2003 के चुनाव से राजस्थान की सत्ता इन दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी की सबसे लोकप्रिय नेता भी हैं। अभी जुलाई महीने में ही सी वोटर का सर्वे आया था जिसमें बीजेपी की ओर से सीएम पद के लिए 36 फीसदी लोगों ने वसुंधरा राजे को अपनी पहली पसंद बताया था। 2018 के चुनाव में जब तमाम ओपिनियन पोल के नतीजे बीजेपी को खारिज कर रहे थे, तब भी पार्टी ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी और 200 में से 73 सीटें जीती थीं।
60 सीटों पर सीधा इम्पैक्ट
वसुंधरा राजे 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा की 60 सीटों पर सीधा इम्पैक्ट रखती हैं। ये भी एक बड़ा कारण था कि पार्टी 2018 में खराब हालात के बीच भी 70 से अधिक सीटें जीतने में सफल रही। बात सिर्फ इन 60 सीटों तक ही सीमित नहीं है। वसुंधरा राजे सभी दो सौ सीटों पर पार्टी की मजबूत और कमजोर कड़ी जानती हैं। उन्हें जमीनी फैक्ट पता हैं। वसुंधरा जानती हैं कि कहां कौन सा समीकरण काम कर सकता है।
20 साल से सूबे की राजनीतिक में सक्रिय
साल 2003 के विधानसभा चुनाव से वसुंधरा राजस्थान की राजनीति में लौट आईं और पिछले 20 साल से सूबे की सियासत में ही सक्रिय हैं। कर्नाटक चुनाव में बीएस येदियुरप्पा जैसे वरिष्ठ नेता की अनदेखी का खामियाजा पार्टी बड़ी हार के रूप में भुगत चुकी है। ऐसे में बीजेपी लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले होने जा रहे विधानसभा चुनाव में वसुंधरा की नाराजगी का रिस्क नहीं लेना चाहेगी।
संगठन से लेकर कार्यकर्ताओं तक पकड़
पूर्व सीएम राजे की इमेज जमीनी नेता की है। वसुंधरा कार्यकर्ताओं के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। लंबे समय से सियासत में सक्रिय वसुंधरा की संगठन पर भी मजबूत पकड़ है। 2018 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन के लिए भी दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की संगठन शक्ति और कार्यकर्ताओं पर मजबूत पकड़ को श्रेय दिया गया। यही वजह थी कि बीजेपी ने 2003 में वसुंधरा के राजस्थान की राजनीति में सक्रिय होने के बाद सांगठनिक नियुक्तियों में उनकी पसंद का खयाल रखा।
वोट बेस का अंब्रेला
वसुंधरा राजे की सबसे बड़ी खासियत एक चेहरे पर वोट बेस का अंब्रेला है। वसुंधरा राजे ने सत्ता में रहते हुए महिलाओं के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की थी। एक तो वसुंधरा का महिला नेता होना और दूसरा उनकी सरकार की योजनाएं, ये दोनों मिलकर जाति-धर्म की भावना से ऊपर उठकर आधी आबादी का एक अलग ही वोट बैंक सेट करते हैं जिसका नतीजा है कि वसुंधरा उस झालरापाटन सीट से लगातार जीतती आ रही हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद अधिक है।
पार्टी को उच्चे मुकाम पर पहुंचाया
महिला वोट बैंक में मजबूत पैठ के साथ ही अलग-अलग जातियों के बीच भी उनका मजबूत आधार है। वसुंधरा राजे का वोट बेस राजपूत के साथ ही जाट, गुर्जर और आदिवासी वोट बैंक में भी है। वसुंधरा के होने से महिला, राजपूत-जाट-गुर्जर और आदिवासी वोट बेस का जो अंब्रेला बनता है, वह बीजेपी के परंपरागत ब्राह्मण-बनिया वोट बैंक के साथ मिलकर पार्टी के वोटों का गणित अलग मुकाम पर ले जा सकता है।
दौसा में लगे नारे- हमारी सीएम वसुंधरा राजे जैसी हो
जयपुर से नारायणी माता धाम जाते वक्त पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का सैंथल बाइपास पुलिया पर बीती रात कार्यकर्ताओं ने जोरदार स्वागत किया। जहां उनके समर्थकों ने हमारी सीएम कैसी हो, वसुंधरा राजे जैसी हो के नारे लगाए। पूर्व सीएम ने शहर मंडल अध्यक्ष समेत कई समर्थकों से संवाद भी किया। स्वागत में भीड़ देखकर राजे गदगद नजर आईं। कई दावेदारों ने राजे को बायोडाटा भी दिए। इसके बाद वे थानागाजी इलाके में स्थित नारायणी माता धाम में आयोजित सैन समाज के विशाल मेले में शामिल होने के लिए रवाना हुई। ऐसा पहली बार नहीं है जब ऐसे नारे लगे हो। राजे को सीएम चेहरा घोषित करने की मांग को लेकर मारवाड से शेखावाटी तक कई बार ये नारे लग चुके है।