जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में फतह हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने परिवर्तन यात्राओं के जरिए माहौल तैयार करने में जुटी है। इसके अलावा कांग्रेस के खिलाफ लगातार रणनीति भी तैयार की जा रही है। चुनाव से पहले तक बीजेपी कई और मुद्दों के जरिए कांग्रेस सरकार को घेरेगी। तमाम रणनीतियों और दांव-पेंच के बावजूद टिकटों का सही वितरण पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विधायकों, पूर्व विधायकों और सांसदों की परिवार तथा रिश्तेदारों को टिकट दिलाने की मंशा पूरी नहीं होगी।

बीजेपी में टिकट बंटवारे को लेकर टकराव
विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने अपने स्तर पर पूरी तैयारियां कर ली है। लेकिन बीजेपी में टिकट बंटवारे को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है। बीजेपी की हर बार जीत दिलाने वाली सीटों पर इस बार कलह मची हुई है। इस बार ये सीटें बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है। दरअसल, इन सीटों से बीजेपी जीत की हैट्रिक लगा चुकी है। जितने वाले अधिकांश विधायक वसुंधरा राजे कैंप के माने जाते हैं। लेकिन इस बार बीजेपी आलाकमान इन सीटों पर सिटिंग विधायकों को टिकट काटने के मूड में है।

नए चेहरे को मिल सकता है टिकट
नए चेहरों को टिकट देना चाहता है। इन सीटों पर पेच फंसा हुआ है। पार्टी तय नहीं कर पा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी वसुंधरा राजे समर्थकों को साइडलाइन नहीं करना चाहती है। ऐसे में बगावत का खतरा बढ़ सकता है। इस बार ये सीटें बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है। 15 से लेकर 20 साल से ये सीटें बीजेपी के पास है।

यहां पर जीत के लिए तरस गई कांग्रेस
राजनीतिक जानकारों के अनुसार राजस्थान में 200 में 52 सीटें ऐसी है, जहां से बीजेपी जीत के लिए तरस गई है। इन सीटों पर कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है। बीजेपी इस बार नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतर ही है। जबकि कांग्रेस चाहती है कि इस बार बीजेपी के गढ़ों में सेंध लगाई जाए। पार्टी से जुड़े सूत्रों के अनुसार खींवसर, नागौर, मड़ेता सीटी, जैतारण, सोजत, पाली, मारवाड़ जंक्शन, बाली, भोपालगढ़, सूरसागर, सिवाना, भीनमाल, रेवदर, सिरोही उदयपुर, घाटोल, कुम्भलगढ़, राजसमंद, आसींद, भीलवाड़ा, बूंदी, लाडपुरा, कोटा दक्षिण, रामगंज मंड़ी, झालरापाटन और खानपुर वो सीटें हैं जिनके लिए कांग्रेस पिछले तीन चुनाव से संघर्ष कर रही है।

इस बार युवाओं पर फोकस
बताया जा रहा है कि इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों का फोकस युवाओं पर है। कांग्रेस ने उदयपुर संकल्प शिविर में युवाओं को आगे रखने का निर्णय लिया है। संगठन और टिकटों में 50 प्रतिशत हिस्सा युवाओं को देने पर सहमति बनी है। छत्तीसगढ़ अधिवेशन में भी इस पर फोकस रहा। बीजेपी लगातार 75 साल या उससे ज्यादा उम्र के विधायकों को टिकट नहीं देने की पैरवी करती आई है। इसके बावजूद दोनों पार्टियां चुनाव के वक्त उम्रदराज नेताओं को टिकट देने पर मजबूर हो जाती हैं।

येदियुरप्पा को साइट करना बीजेपी को पड़ा भारी
सियासी जानकारों का कहना है कि उम्रदराज नेताओं के टिकट काटना या बदलना पार्टियों के लिए एक बड़े रिस्क की तरह होता है। कई बार युवा चेहरों से वे सफलता हासिल करते हैं, मगर ज्यादातर नुकसान होता है। हाल ही में कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को साइड करने का असर बीजेपी देख चुकी है। ऐसे में कई तरह से ये नुकसान करता है। ऐसे में पार्टियों के सामने इस तरह के बड़े संकट खड़े हो जाते हैं।

वंशवाद को बढ़ावा नहीं चाहती पार्टी
बीजेपी में विधायकों, पूर्व विधायकों और सासंदों के परिजनों तथा रिश्तेदारों की टिकट के लिए लंबी कतार लगी है। कई सीनियर विधायक टिकट की दौड़ से हटने को तैयार हैं लेकिन शर्त यह कि उनके बेटे या परिवार में से किसी को टिकट मिले। लेकिन बीजेपी दो वजह से इस दफा रिश्तेदारों को टिकट बांटने से परहेज करना चाहती है। नंबर वन एक तो पार्टी की राजनीति में वंशवाद को बढ़ावा न देने की नीति दूसरा 2018 के चुनाव के नतीजे।

पिछले रिकॉर्ड का अध्ययन करेगी बीजेपी
बीजेपी ने विधायकों और नेताओं के रिश्तेदारों के चुनाव जीतने के पिछले रिकॉर्ड का अध्ययन कराया। पिछली रिपोर्ट ही इस उम्मीद को लाल झंडी दिखा रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में ही बीजेपी ने विधायकों और पूर्व विधायकों के परिवार तथा रिश्तेदारों को 15 विधानसभा सीटों पर मैदान में उतारा था। लेकिन उनमें से सिर्फ 3 सीट पर ही वे जीत पाए। 15 में से 12 सीट पर नेताओं के रिश्तेदार चुनाव हार गए।

बीजेपी यह अपना रही है रणनीति
पार्टी साल 2018 में हारी हुई सीटों के कारणों को टटोलने और जीतने की रणनीति पर काम करने के साथ ही इस बार उन सीटों पर भी विशेष फोकस कर रही है, जहां पिछले तीन चुनावों में पार्टी लगातार हार रही है। यही कारण है कि जयपुर से लेकर दिल्ली तक मंथन लगातार जारी है। पार्टी सूत्रों की मानें तो परिवर्तन यात्राओं के बाद टिकटों को लेकर पार्टी रायशुमारी कर सकती है। इसके लिए बड़े नेताओं को संभागवार रायशुमारी के लिए भेजा जा सकता है। बीजेपी को भरोसा है कि परिवर्तन यात्राओं के जरिए चुनावी माहौल तैयार हो गया है।